वैदिक साहित्य शृंगार – 3 : अथर्ववेद
और मदिर अपने नयनों,
लहराते घने दीर्घ केशों
से काम-ज्वरित करती मुझको
प्रति-पल मुझमें कामाग्नि जला॥
और मदिर अपने नयनों,
लहराते घने दीर्घ केशों
से काम-ज्वरित करती मुझको
प्रति-पल मुझमें कामाग्नि जला॥
प्रतीत्यसमुत्पाद का सिद्धांत कहता है कि ब्रह्माण्ड में सब कुछ केवल दूसरी घटनाओं के कारण ही एक जटिल कारण-परिणाम के जाल में विद्यमान है। सनातन बोध : प्रसंस्करण, नये एवं अनुकृत सिद्धांत – 1 , 2 और 3 से आगे … विकासवादी मनोविज्ञान की ही तरह आधुनिक जीव विज्ञान की व्याख्या सनातन सिद्धांतों से कुछ…
आधुनिक विकासवादी मनोविज्ञान मानव की वर्तमान अवस्था को जिन पूर्वाग्रहों और असंतोष से पीड़ित बताती है उनका कोई सटीक हल नहीं बताती। यदि हम विश्व के दर्शनों में इसका हल ढूँढना चाहें तो आत्मनियंत्रण और प्राचीन भारत के ऊपर वर्णित सिद्धांतों से उत्तम हल कहीं नहीं मिलता और आधुनिक विज्ञान इसका समर्थन करता है।
जिस भाँति वृक्ष के सुघड़ तने से आ लिपटे एक नरम लता ।
मुझसे टिक कर निज अंग लगा॥
आ निकट प्रिये तूँ दूर न जा !
संस्कृते अङ्कानांसंख्यानांच प्रयोगः संस्कृत तकनीकी ग्रन्थेषु यथा ज्योतिष शास्त्रे, शुल्ब सूत्रे, आयुर्वेदे प्रायः अङ्कानां संख्यानां च प्रयोगे एका विशिष्टा शैली उपयुज्यते । अद्य एतोपरि चर्चा तथा उदाहरेण अवगन्तुं प्रयासं करिष्यामः । संस्कृतग्रन्थेषु गणितसंबन्धिने बहुधा छन्दप्रयोगः अभवत्, पद्यरुपाः अस्माकं ग्रन्थाः । छन्दबाहुल्यः संस्कृत परम्परायाः विशिष्टता अस्ति, बहवः प्रकारकाः छन्दाः भवन्ति । गायत्रीत्रिष्टुप्अनुष्टुप इत्यादि विभिन्न छन्दानां नामाः…
वैदिक साहित्य चेतना के स्तर अनुसार वेदों के मंत्र अपने कई अर्थ खोलते हैं। कतिपय विद्वानों की मान्यता है कि किसी श्रुति के छ: तक अर्थ भी किये जा सकते हैं – सोम चन्द्र भी है, वनस्पति भी है, सहस्रार से झरता प्रवाह भी। वेदों के कुछ मंत्र अतीव साहित्यिकता लिये हुये हैं। इस शृंखला…
बुद्ध द्वारा प्रस्तावित निवारण की विधियाँ मस्तिष्क की इस क्रमिक विकास से हुई परिणति से विपरीत उसे उलटी गति में ले जाकर सत्य का आभास कराती हैं। विकासवादी मनोविज्ञान और इस सनातन दर्शन में क्या एक ही बात नहीं है?
It seems that the leading people in the empire had a voice in the choice of the heir. On the death of Sri Ranga-I and his brother Rama, Venkata II ascended the Vijayanagar throne in 1586, to the exclusion of Tirumala, the son of Rama, and with the “unanimous vote of all the classes.”
वित्तीय गणित का सबसे प्रसिद्ध सूत्र ब्लैक शॉल्स और मेर्टन भौतिकी का ऊष्मा समीकरण भर है। इस वित्तीय समीकरण का भौतिकी में होना केवल संयोग नहीं है। एक जैसी प्रक्रिया का एक ही हल होने से इसे मौलिक आविष्कार तो नहीं कहा जा सकता? ठीक इसी तरह व्यावहारिक अर्थशास्त्र और मनोविज्ञान को पढ़ते हुए कई सिद्धांत जाने पहचाने लगते हैं।
यह विवरण ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के सिद्धांत बिग बैंग के ठीक उलट ‘बिग क्रंच’ कहे जाने वाले प्रतिपादन की ओर संकेत करता है। पॉल स्टाइनहार्ट और नील टुरोक के सिद्धांत के अनुसार तरंगों के रूप में कई ब्रह्माण्ड विद्यमान हैं और जब भी एक ब्रह्माण्ड की परत दूसरे से स्पर्श होती है तब वहाँ कृष्ण विवर (ब्लैक होल) बन जाता है और यह दूसरे ब्रह्माण्ड तक जाने का मार्ग होता है। यह तभी सम्भव है जब पदार्थ पूर्ण रूप से ऊर्जा में परिवर्तित हो सूक्ष्म क्वॉन्टम अवस्था में गमन करे। इस अवस्था में स्थूल शरीर नहीं केवल ऊर्जा रूपी प्राण होता है।
कुछ भारतीय शास्त्रज्ञों जैसे कि डॉ. चन्द्रशेखर त्रिवेदी आदि का मानना है कि ऋग्वेद में वर्णित त्वष्टा, विवस्वत या विश्वरूप वास्तव में डी.एन.ए. ही हैं। कुछ का मानना है कि जल के आयनीकरण से धनावेशित प्रोटान और ऋणावेशित हाइड्राक्सिल आयन के बनने की चर्चा ऋग्वेद में है:
देवानाम्.माने.प्रथमा.अतिष्ठन्.कृन्तत्राद्.एषाम्.उपरा.उदायन्।
त्रयस्.तपन्ति.पृथिवीम्.अनूपा.द्वा.बृबूकम्.वहतः.पुरीषम्॥ (10.27.23)
यदि आपका क्रेडिट कार्ड का बिल बाकी है और उसे आप आगे जारी नहीं रखना चाहते हैं तो जानबूझ कर विलम्ब कर कमी बेसी ‘सैटल’ करने के स्थान पर पूरा पैसा भरिये और बंद करवाइये। आप अपने किसी भी ऋण की किश्त यदि विलम्ब से भरते हैं तो भी बैंक या वित्तीय संस्था आपके इस व्यवहार को सिबिल में दी जाने वाली लेन-देन रिपोर्ट के रूप में सम्मिलित कर देते हैं।
अद्य नवसंवत्सर पर्वः अस्ति। सामान्यतया अस्माकं भारत देशे कार्यालयेषु, वित्तकोषेशु, विद्यालयेषु सामान्यजनाः व्यवहारे ख्रीष्ट वर्षपदः उपयुज्यते।
शून्य – 1, शून्य – 2 , शून्य – 3, शून्य – 4 से आगे … शून्य के वर्तमान गोले के रूप में लिखे जाने की परंपरा कब से आरम्भ हुई इसका ठीक ठीक पता नहीं पर ग्वालियर के चतुर्भुज मंदिर में अंकित शून्य ही प्रथम लिखित शून्य के रूप में मान्य है वैसे शून्य…
ऋत को जीवन में उतारने को उद्यत कवि की ऋचा ने एक विराट रूपक का आकार ले लिया जिसमें सात सवारियाँ थीं, सप्त नाम का अश्व जिसे खींचता, रथ ऐसा था कि उसमें बस एक चक्का था जब कि तीन धुरियाँ थीं। वह चक्का न ढीला पड़ता और न नष्ट होता जब कि रथ में विश्व भुवन स्थित थे!
अहिंसा को मैं आठ-तल्ला भवन के पहले तल की पहली सीढ़ी मानता हूँ। इतना ध्यान में रखना है कि अहिंसा भारतीय संस्कृति के उन मूलभूत तत्वों में से एक है जो हमें सभी अभारतीय संस्कृतियों, पंथों, और समुदायों से अलग धरातल पर खड़ा करते हैं। अंग्रेज़ी के प्रचलित शब्द में यह भारतीय संस्कृति का पैराडाइम शिफ़्ट है।
सिद्धांत-शिरोमणि (लीलावती, बीजगणित, गोलाध्याय और ग्रहगणित) गणित का अद्भुत ग्रंथ है, आज भी। संभवतः उनकी गणितीय रचना से अधिक टीकायें और अनुवाद गणित के किसी पुस्तक की नहीं हुईं। यह रचना भारतीय शिक्षा पद्धति में किस तरह बसी होगी इसका अनुमान मैं इस बात से लगाता हूँ कि भास्कराचार्य के लगभग ८५० वर्ष पश्चात मुझे किसी ने गणित सिखाते हुए कहा था कि ‘मैं जो सिखाऊंगा वह चक्रवाल गणित है। इससे कोई सवाल बन जायेगा लेकिन परीक्षा में ऐसे मत लिखना।’ उस घटना के वर्षों पश्चात पता चला कि चकवाली विधि सच में एक गणितीय विधि है जिसके प्रणेता भास्कराचार्य थे।
ग्राफिक्स चित्र संदर्भ: http://newseastwest.com/wp-content/uploads/2017/01/lohri-celebrations.jpg http://img09.deviantart.net/183e/i/2010/087/3/8/holi_festival_2010_46_by_falln_stock.jpg Holaka From the references of Sabara and Jaimini bhashya on Purvamimasa-sutra, it appears that the original word is होलाका. [1] होलाका is a festival of unmixed gaiety and frolics throughout India. Although, all parts of India don’t celebrate it same way, but one element is common across India i.e. element…
वह आनंद-बोध ही क्या जिससे हम स्वयं भी रिक्त रहें तथा हमारा परिसर भी रिक्त रह जाये? जो गगन को आपूरित नहीं कर सकता वह गीत तथा जो मन को आपूरित नहीं कर सकता वह उत्सव व्यर्थ है! यह आपूरण विधि-निषेधों से परे है। यह न आदेश देने पर आता है, न रोकने पर रुक ही सकता है। यह तो जातीय-प्रवाह है! जिस “जाति” की शिराओं में गाढ़ा लाल रक्त प्रवाहमान रहे उस जाति के लिये आपूरण के क्षण आये बिना नहीं रह सकते। जिस जाति ने अनंगोत्सव तथा रंगोत्सव की कल्पना की, योजना बनायी, परम्परा चलायी, वह तपश्चर्या से, संयम से तथा चिंतन से सामाजिक मर्यादा का वास्तविक मूल्य भली-भाँति जानती थी; किन्तु वह लोक-धर्म भी पहचानती थी, इसीलिये वसंतोत्सव को उसने लोकोत्सव का रूप दिया।
शून्य – 1, शून्य – 2 से आगे … ‘शून्य’ की प्रथम स्पष्ट गणितीय परिभाषा ब्रह्मगुप्त (628 ई.) के ब्राह्मस्फुटसिद्धान्त में मिलती है। यह वह युग था जब अंकगणित, बीजगणित और ज्यामिति वेदांग ज्योतिष से अलग गणित के रूप में लगभग स्वतंत्र पहचान बना चुके थे। आर्यभटीय ज्योतिष का पहला ग्रन्थ है जिसमें गणित के…