Valmikiya Ramayan प्रमदावन विध्वंसक हनुमान

विभीषण सुंदरकांड [धर्मार्थविनीतबुद्धिः परावरप्रत्ययनिश्चितार्थः] – ४९

विभीषण सुंदरकांड – आप कुछ को आदेश दें कि शत्रु पर आप की शक्ति दर्शाने हेतु वे अभियान करें, उन दो राजपुत्रों को पकड़ लायें।

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Vegetarianism Vegan शाकाहार : सनातन बोध – ६४

Vegetarianism Vegan शाकाहार, पश्चिमी देशों में अत्यधिक मांसाहार तथा उसके व्यवसाय ने सदियों से यह भ्रम बना रखा था कि क्रीड़ा, स्पर्धा इत्यादि के लिए मांसाहार उपयुक्त है तथा शाकाहार में पर्याप्त प्रोटीन नहीं होता। अनेक अध्ययनों में ये बातें असत्य सिद्ध हुई हैं।

Calendar Reform Saptarshis कस्ध्रुवं? कुतः सप्तर्षयः?

‘पञ्चाङ्ग-संशोधन तथा एक नवीन सम्वत की आवश्यकता’ किसी स्वप्नदर्शी का एक वृहदाकार स्वप्न है। इस स्वप्न में अनेक प्रश्न अन्तर्निहित हैं तथा उन प्रश्नों के सम्भावित उत्तरों के साथ अनेकानेक विसंगतियाँ संश्लिष्ट हैं।

Death मृत्यु से भय कैसा? : सनातन बोध – ६१

Death मृत्यु से भय कैसा? इसका संज्ञान सुखी जीवन की ओर ले जाता है। इस दर्शन का अलौकिक लाभ हो न हो, मनोवैज्ञानिक लाभ तो स्पष्ट ही है।

Vyanjan Sandhi व्यञ्जन सन्धि या हल्‌ संंधि – २ : सरल संस्कृत – १०

त्र्यम्बकम् . यजामहे . सुगन्धिम् . पुष्टिवर्धनम् । उर्वारुकम्. इव. बन्धनात् . मृत्योः . मुक्षीय . मा . अमृतात् ॥ इसमें बन्‍धनात्‌ एवं मृत्योर्मुक्षीय की सन्‍धि में प्रथम शब्द के अन्तिम ‘त्‌’ के पश्चात मृत्यु का म्‌ आया है अत: संधि पश्चात त्‌ का परिवर्तन सवर्गी अनुस्वार न्‌ में हो कर बन्धनान्‌ हो जायेगा।उच्चारण शुद्धि हेतु श्री सूक्त में देखें।

Political Correctness नयसत्यता व कुल संस्कार प्रभाव : सनातन बोध – ६०

जीव विज्ञान तथा आनुवंशिकी का संदर्भ देकर कुल, संस्कृति इत्यादि के प्रभाव को नकारने वाले ये भूल जाते हैं कि संस्कृति, धर्म, परिवेश तथा जाति (Ethnicity) का व्यक्तित्व पर गहरा प्रभाव होता है।

Maheshvara Sutra Shiva Sutra Panini पाणिनीय माहेश्वर सूत्र : सरल संस्कृत – ८

Maheshvara Sutra Shiva Sutra Panini पाणिनीय माहेश्वर सूत्र किसी सूत्र के एक वर्ण से आरम्भ हो आगे के किसी सूत्र के ‘इत्‌’ या ‘अनुबन्‍ध’ तक के बीच के समस्त वर्णों को संक्षिप्त रूप में दर्शाते हैं। स्पष्टत: इनमें ‘इत्‌’ वर्ण नहीं लिये जाते। इन्हें प्रत्याहार कहते हैं।

सौत्रामणियागस्य स्वरूपम्

मनुना प्रोक्तं यत् वेदाः अस्माकं पथप्रदर्शकाः जीवनविद्यायिकाः एकमात्रं शरणाश्च सन्ति । वेदाः एव धर्मस्य प्रतिपादकाः । वस्तुतस्तु सर्वेषां धर्माणां मूलं वेदाः ।

गुरु आधारित संवत्सर चक्र एवं पञ्चाङ्ग संशोधन की आवश्यकता – दैत्यगुरु शुक्र, देवगुरु बृहस्पति एवं शनि

  गुरुपत्नी राजपत्नी मित्रपत्नी तथैव च । पत्नीमाता स्वमाता च पञ्चैताः मातरः स्मृताः ॥ (गुरु, राजा, मित्र, पत्नी की मातायें एवं अपनी माता, इन पाँच को माता माना जाता है।)   सुदर्शन एवं दिव्यरूपधारी चन्द्र ने अपने गुरु बृहस्पति की पत्नी तारा को लुभा लिया। वह आश्रम तज अपने प्रेमी के घर आ गई। बड़ी…

श्रीमान् उपाध्याय एवं मिस्टर स्मिथः : सरल संस्कृत – ४

इस लेख में सरल लेखन की वाक्य संरचना का प्रदर्श है। साथ में दिये हिंदी अनुवाद के संगत वाक्यों से तुलना कर इन दो भाषाओं के परस्पर सम्बन्ध एवं भिन्नताओं को देखा जा सकता है।

कृष्ण जन्माष्टमी व पुराण

The Classical Hindu Law : Chapter 03

Classical Hindu Law, in its various branches is probably the most detailed system of law to be discovered. Its conception of legal liability is broad and perspicuous, and although it has generally retained the eighteen divisions of topics of litigation as described by Manu, that has not in any way stinted its growth or prevented it from embracing within its range the various aspects of juridical relations which the complexity of human affairs may usually bring about.

History of Indian Science भारतीय विज्ञान का इतिहास

भारतीय साहित्य हमें विज्ञान के इतिहास के सम्बन्ध में उपयुक्त एवं स्तरीय साक्ष्य उपलब्ध करवाता है। इस इतिहास की कालानुक्रमिक समय रेखा पुरातात्विक अभिलेखों से प्राप्त होती है। जिसका अनुरेखण लगभग ७००० ईसा पूर्व की एक अविभक्त परम्परा द्वारा प्रस्तुत किया जा चुका है।

कृष्ण जन्माष्टमी व पुराण

The Classical Hindu Law : Chapter 02

Classical Hindu Law, in its various branches is probably the most detailed system of law to be discovered. Its conception of legal liability is broad and perspicuous, and although it has generally retained the eighteen divisions of topics of litigation as described by Manu, that has not in any way stinted its growth or prevented it from embracing within its range the various aspects of juridical relations which the complexity of human affairs may usually bring about.

कृष्ण जन्माष्टमी व पुराण

The Classical Hindu Law : Chapter 01

Classical Hindu Law, in its various branches is probably the most detailed system of law to be discovered. Its conception of legal liability is broad and perspicuous, and although it has generally retained the eighteen divisions of topics of litigation as described by Manu, that has not in any way stinted its growth or prevented it from embracing within its range the various aspects of juridical relations which the complexity of human affairs may usually bring about.

Indian Philosophy vs Western Philosophy : सनातन बोध – 48

उपनिषद भौतिक लक्ष्य से परे का दर्शन है। जबकि यूनानी दर्शन (प्लेटो) अनुसार मनुष्य अपनी ऊर्जा से भौतिक जीवन के उन्नत रूपों (forms) को पा सकता है। कठोपनिषद का लक्ष्य उन्नत रूप तथा भौतिक सुख के स्थान पर आत्म-अन्वेषण, बुद्धि और परम लक्ष्य की दिशा में है। यूनानी दार्शनिकों ने सनातन दर्शन के अनेक सिद्धांतों को अपना कर उन्हें पश्चिमी जनमानस के लिए पुनर्संस्कृत किया।

Babylonian and Indian Astronomy बेबिलॉन एवं भारतीय ज्योतिष – अन्तिम भाग

प्रतीत होता है कि सौर राशि चिह्नों को आज जैसा हम जानते हैं, उनका उद्भव भारत में हुआ जहाँ उनका सम्‍बन्‍ध नक्षत्रों के अधिष्ठाता देवताओं से है।

Vedic Aesthetics वैदिक साहित्य शृंगार – 5 : अथर्ववेद

Vedic Aesthetics वैदिक साहित्य शृंगार अथर्ववेद;अपने हाथों तेरे भग परनीलाञ्‍जन, कूट, खस और मधूक। तेरा रतिजन्य खेद हर दूँ!आ! तनिक तुझे उबटन कर दूँ!!॥३॥