Holaka Krida(होलाका क्रीड़ा) : Annual Deva Yajna(देव यज्ञ) for Masses

ग्राफिक्स चित्र संदर्भ: http://newseastwest.com/wp-content/uploads/2017/01/lohri-celebrations.jpg http://img09.deviantart.net/183e/i/2010/087/3/8/holi_festival_2010_46_by_falln_stock.jpg  Holaka From the references of Sabara and Jaimini bhashya on Purvamimasa-sutra, it appears that the original word is होलाका. [1] होलाका is a festival of unmixed gaiety and frolics throughout India. Although, all parts of India don’t celebrate it same way, but one element is common across India i.e. element…

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शून्य – 4

सिद्धांत-शिरोमणि (लीलावती, बीजगणित, गोलाध्याय और ग्रहगणित) गणित का अद्भुत ग्रंथ है, आज भी। संभवतः उनकी गणितीय रचना से अधिक टीकायें और अनुवाद गणित के किसी पुस्तक की नहीं हुईं। यह रचना भारतीय शिक्षा पद्धति में किस तरह बसी होगी इसका अनुमान मैं इस बात से लगाता हूँ कि भास्कराचार्य के लगभग ८५० वर्ष पश्चात मुझे किसी ने गणित सिखाते हुए कहा था कि ‘मैं जो सिखाऊंगा वह चक्रवाल गणित है। इससे कोई सवाल बन जायेगा लेकिन परीक्षा में ऐसे मत लिखना।’ उस घटना के वर्षों पश्चात पता चला कि चकवाली विधि सच में एक गणितीय विधि है जिसके प्रणेता भास्कराचार्य थे।

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पातञ्जल योगसूत्र (Pātañjal Yoga Sūtra)

अहिंसा को मैं आठ-तल्ला भवन के पहले तल की पहली सीढ़ी मानता हूँ। इतना ध्यान में रखना है कि अहिंसा भारतीय संस्कृति के उन मूलभूत तत्वों में से एक है जो हमें सभी अभारतीय संस्कृतियों, पंथों, और समुदायों से अलग धरातल पर खड़ा करते हैं। अंग्रेज़ी के प्रचलित शब्द में यह भारतीय संस्कृति का पैराडाइम शिफ़्ट है।

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ऋतूनां कुसुमाकरः!

वृहद्संस्कृतवाङ्ग्मये ऋतुराजवसन्तप्रयोगाः प्रचुराः, तेन पठने-पाठने कामोद्दीपनं जायते अतः सावधानतया सुस्थिर मनसा तेषु पठनीयम् 🙂 यद्यपि ‘श्रीर्हरति मुनेरपि मानसं वसन्तः’।
विकसितसहकारभारहारिपरिमलपुञ्जितगुञ्जित द्विरेफ:।
नवकिसलयचारुचामरश्रीर्हरति मुनेरपि मानसं वसन्तः॥

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अवधी चिरइयाँ : गौरैया (Passer domesticus)

रूठी गौरैया को मनाने, उसे पुन: अपने आँगन, बगीचे में बुलाने के लिये ही विश्व गौरैया दिवस का प्रस्ताव रखा गया। ‘विश्व गौरैया दिवस’ मनाने का प्रारम्भ ‘नेचर फ़ॉरएवर सोसायटी’ द्वारा बाम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी, कार्नेल लैब्स ऑफ़ आर्निथोलोजी (यू एस ए), इकोसिस ऐक्शन फ़ाउण्डेशन (फ़्रांस) तथा वाइल्ड लाइफ़ ट्रस्ट, दुधवा लाइव के सहयोग से 20 मार्च 2010 को किया गया।

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प्रीतिः मंजरीषु इव

वह आनंद-बोध ही क्या जिससे हम स्वयं भी रिक्त रहें तथा हमारा परिसर भी रिक्त रह जाये? जो गगन को आपूरित नहीं कर सकता वह गीत तथा जो मन को आपूरित नहीं कर सकता वह उत्सव व्यर्थ है! यह आपूरण विधि-निषेधों से परे है। यह न आदेश देने पर आता है, न रोकने पर रुक ही सकता है। यह तो जातीय-प्रवाह है! जिस “जाति” की शिराओं में गाढ़ा लाल रक्त प्रवाहमान रहे उस जाति के लिये आपूरण के क्षण आये बिना नहीं रह सकते। जिस जाति ने अनंगोत्सव तथा रंगोत्सव की कल्पना की, योजना बनायी, परम्परा चलायी, वह तपश्चर्या से, संयम से तथा चिंतन से सामाजिक मर्यादा का वास्तविक मूल्य भली-भाँति जानती थी; किन्तु वह लोक-धर्म भी पहचानती थी, इसीलिये वसंतोत्सव को उसने लोकोत्सव का रूप दिया।

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