बुद्धिमत्ता का विज्ञान
मानव उद्विकास को जैव विकास के इतिहास की तरह समझें तो हम देखेंगे कि मानवों में बुद्धि और भाषा का विकास लगभग साथ साथ हुआ। यह स्थिति इतनी साम्य लिए हुए है कि कभी लगता है कि बुद्धि भाषा की प्रतिबिंब है या भाषा बुद्धि की। उदाहरण के लिये मानव-सम (Primates) और शिशुमार (Dolphin) जैसे…
आदिकाव्य रामायण से – 16 : [इत एहि इति उवाच इव तत्र यत्र स रावणः]
नथुनों में पेय और भक्ष्य अन्न पदार्थादि की दिव्य गंध के झोंके प्रविष्ट हुये जैसे कि स्वयं अनिल देव ने गंध रूप धर लिया हो। मधुर महा सत्त्वयुक्त गंध युक्त देव पुकार कर बता रहे थे – यहाँ आओ, यहाँ आओ! रावण यहाँ है। हनुमान को लगा जैसे कोई बंधु अपने बहुत ही प्रिय बंधु से कह रहा हो!
National Interest – Guṇatrayī Youth
Youth must have power and strength. The focus should be on getting both Śakti (शक्ति) and Bala (बल)! Śakti (physical strength and outward skills) and Bala (spiritual strength, mental strength, purity, ethics, self-control) are different. You cannot gain that in modern gyms. You must enroll in Ākhāḍā (आखाड़ा) or sports ground! Bala meant something of the Sūkṣma Śarīra (सूक्ष्म शरीर) ; not merely of the gross body or Sthūla Śarīra (स्थूल शरीर).
अवधी चिरइयाँ : टकाचोर Dendrocitta vagabunda
टकाचोर प्रवासी भारतीय पक्षी है जो पाकिस्तान, बँगलादेश में भी पाया जाता है, श्री लंका में नहीं पाया जाता। मुटरी हमारे देश में प्रायः सभी स्थानों पर पाई जाती है| हिमालय में 7000 फुट की ऊँचाई तक पाई जाती है। जंगल, उद्यान आदि स्थानों में रहने वाली यह चिड़िया मानव बस्ती में आती जाती रहती है। इसे घने वन प्रिय नहीं हैं। लम्बी दुम के कारण यह पेड़ों पर ही रहती है और प्राय: जोड़े में दिखती है। यह बहुत ही लजालु चिड़िया है इसलिये प्राय: पेड़ों की पत्तियों में छुपी रहती है, चित्र लेना कठिन होता है।
ऊर्जा चक्र, सनातन बोध : प्रसंस्करण, नये एवं अनुकृत सिद्धांत – 10
हम यदि बातों को अपने व्यवहार में लेकर आयेंं तो धीरे धीरे हमारी भावनायेंं उस स्तर पर स्वतः ही आ जाती हैं – ‘करत करत अभ्यास ते’ वाली बात। ऐसी कई बातें हमारी सोच को अनजाने प्रभावित करती रहती हैं। आधुनिक निर्णय शास्त्र (decision making) में प्रयुक्त होने वाले इस ‘नये सिद्धांत को पढ़ते हुए – संगति की सीख, वातावरण का प्रभाव – चाणक्य का ‘दीपो भक्षयते ध्वांतम कज्जलम च प्रसूयते’ या ‘तुलसी संगति साधु की’ जैसी कितनी पढ़ी हुई बातें याद आती हैं।