quran

Love jihad नहीं, यौन जिहाद। न, न, अब्राहमी आक्रमणों का प्रतिकार ऐसे नहीं!

अल्पकालिक हो या दीर्घकालिक, जीर्ण हो या त्वरित; किसी भी समस्या से निपटने या उसके समाधान हेतु जो कुछ किया जाता है, वह व्यक्ति, समूह या तन्त्र में अन्तर्निहित उसकी सकल निर्मिति पर निर्भर होता है तथा परिणाम की गति व दिशा भी उसी पर निर्भर होते हैं। निर्मिति मूल मान्यताओं, मूल्यों, प्राथमिकताओं और प्रवृत्ति की देन होती है जो एक दिन में नहीं बन जाती, दीर्घकालिक सम्यक सतत कर्म की देन होती है। चरित्र महत्त्वपूर्ण होता है।

Corruption is Contagious

भ्रष्टाचार, कुसंग और दण्ड : सनातन बोध – ८६

शोध इस बात को इंगित करते हैं कि यदि हम अन्य लोगों को भ्रष्ट आचरण करते हुए देखते हैं तो हम भी उससे प्रभावित होते हैं। हमें यह एक सामान्य प्रक्रिया लगने लगती है। उत्कोच एक संक्रामक महामारी की तरह है।

पुरा नवं भवति

पुरा नवं भवति

भारत में इतिहास को काव्य के माध्यम से जीवित रखा गया। स्वाभाविक ही है कि ऐसे में कवि कल्पनायें नर्तन करेंगी ही। कल्पना जनित पूर्ति दो प्रकार की होती है, एक वह जो तथ्य को बिना छेड़े शृङ्गार करती है, दूसरी वह जो तथ्य को भी परिस्थिति की माँग के अनुसार परिवर्तित कर देती है। दूसरी प्रवृत्ति की उदाहरण रामायण एवं महाभारत, दो आख्यानक इतिहासों, पर आधारित शताधिक रचनायें हैं जिनमें पुराण भी हैं। आख्यान का अर्थ समझ लेंगे तो बात स्पष्ट होगी। आख्यान आँखों देखी रचना होते हैं।

मूल में भी क्षेपक जोड़े गये जिनका अभिज्ञान कठिन है किन्तु असम्भव नहीं।

विमूढा नानुपश्यन्ति पश्यन्ति ज्ञानचक्षुष:

विमूढा नानुपश्यन्ति पश्यन्ति ज्ञानचक्षुष: – सनातन बोध -८५

संसार में ज्ञान का अभाव नहीं है, प्रत्यक्ष प्रमाणों का भी नहीं है। परंतु ज्ञान का अनुभव में आना सदा ही दुष्कर रहा है। विज्ञान सहित ज्ञान किस प्रकार दुर्लभ है, इस पर भगवान स्वयं कहते हैं –
मनुष्याणां सहस्रेषु कश्चिद्यतति सिद्धये । यततामपि सिद्धानां कश्चिन्मां वेत्ति तत्त्वतः ॥
अर्थात् सहस्रो मनुष्यों में कोई एक वास्तविक सिद्धिके लिये प्रयत्न करता है और उन प्रयत्नशील साधकों में भी कोई ही यथार्थ तत्त्व से जान पाता है।

Twenty Lakh Crore बीस लाख करोड़, मनु, कौटल्य, रामायण व महापद्मनन्द

Twenty Lakh Crore बीस लाख करोड़, मनु, कौटल्य, रामायण व महापद्मनन्द

मगध के नन्द वंश का एक राजा महापद्म क्यों कहा जाता था? क्योंकि उसके राजकोश में उतनी स्वर्णमुद्रायें थीं किन्तु उनका उपयोग जनहित हेतु न होने से असन्तोष की स्थिति थी जिसका दोहन कर कौटल्य ने नन्दवंश के स्थान पर चन्द्रगुप्त हो आसीन किया। चाणक्य नीति एवं कौटल्य के अर्थशास्त्र से आरम्भ कर रामायण तक जाने एवं पुन: कौटल्य तक लौटने का उद्देश्य यह है कि आप अपने शास्त्र आदि पढ़ें जिससे परम्परा की निरंतरता का ज्ञान हो।

Jungle Babbler/Seven Sisters सतबहिनी चरखी। चित्र सर्वाधिकार: आजाद सिंह, © Ajad Singh, सरयू नदी तट, माझा, अयोध्या-224001, उत्तर प्रदेश, March 07, 2017

Jungle Babbler Seven Sisters सतबहिनी चरखी : Argya striata

सतबहिनी चरखी भारत का बारहमासी पक्षी है और लगभग १० इंच के इस चञ्चल पक्षी को पूरे भारत के गाँवों के खेत खलिहान, उद्यानों एवं जंगलो में भूमि पर भोजन खोजते या पेड़ों की निचली शाखाओं पर कलरव कोलाहल (हहोलिका नाम इस कारण से) करते ७-१० के झुण्ड में देखा जा सकता है।

Ayodhya lights, Deepotsav with 5,84,572 diyas Guinness world record. November 2020. (C) Ajad Singh, Ayodhya

दीपावली पर्व विविध

समाज के एकीकरण के लिये भारत में ४ राष्ट्रीय पर्व हैं – होली, दुर्गापूजा, दीपावली एवं रक्षा-बन्धन। समाज में व्यवसायों की उन्नति के लिये भी ४ वर्ण थे – ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र।
चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं गुणकर्म विभागशः (गीता, ४/१३)

प्रसन्न सार्थक सफल सुखी जीवन, सनातन व पश्चिम : सनातन बोध – ६२

प्रसन्न सार्थक सफल सुखी, अमेरिकी स्वतंत्रता घोषणा में लिखे शब्द pursuit of happiness को अधिकांशतया लोग जीवन का लक्ष्य मानते हैं। प्रसन्नता एवं सार्थकता के बीच अर्थहीन से प्रतीत होते विभाजन पर अनेक गम्‍भीर अध्ययन हुए हैं।

Vyanjan Sandhi व्यञ्जन सन्धि या हल्‌ सन्धि – अन्तिम भाग : सरल संस्कृत – ११

Vyanjan Sandhi व्यञ्जन सन्धि – भगवद्गीता में ‘श्रद्धावान् लभते ज्ञानं तत्पर:’ का पाठ ‘श्रद्धावाल्‌ँलभतेज्ञानन्‍तत्पर:’ होगा।

सिनीवाली हे देवी सरस्वती! हमें लक्ष्मी दें। हे देवी लक्ष्मी! हमारी विद्या बढ़े।

पञ्चदिवसीय दीपपर्व पञ्चकोशीय देवी साधना-आराधना का पर्व है। पितरों के आह्वान पश्चात शारदीय नवरात्र से आरम्भ हो पितरों को विदा देने के आकाशदीपों तक का लम्बा कालखण्ड प्रमाण है कि यह विशेष है।