Did Rama eat meat during exile? – Part 2
Did Rama eat meat during exile
Did Rama eat meat during exile
Did Rama eat meat’ will be a long article in many parts as it will examine the whole Vālmīkīya Rāmāyaṇa (VR), not being speculative to the maximum extent possible, to find out what exactly comes out about the oft raised issue of meat eating in general and by Rāma during exile in particular. The article will be a ‘dynamic one’ as I’ll be revising and refining it basis new and relevant findings in other sources and new insights. Meat here should be taken as ‘cooked animal flesh’ taken as diet.
Sundarkand रामपत्नीं यशस्विनीम् – – मैंने पिघले कञ्चन के समान सुंदर वर्ण वाली सीता को देखा। उन कमलनयनी का मुख उपवास के कारण कृश हो गया था।
दिष्ट्या दृष्टा त्वया देवी रामपत्नी यशस्विनी॥ दिष्ट्या त्यक्ष्यति काकुत्स्थश्शोकं सीतावियोगजम्। यह सौभाग्य की बात है कि तुम श्रीराम की पत्नी यशस्विनी देवी सीता के दर्शन कर आये, अब देवी सीता के वियोग से उपजा काकुत्स्थ राम का शोक दूर हो जायेगा, यह भी सौभाग्य की बात है।
हनुमान सागर को एक विशाल जलपोत की भाँति पार कर रहे हैं। आकाश, क्षितिज और सागर मिल कर कैसा दृश्य उपस्थित कर रहे हैं!
सूर्य और चन्द्र दोनों दिख रहे हैं।
Sundarkand सुंदरकांड – ५२ : स्वयं को धिक्कारते चले गये, यदि दग्धा त्वियं लङ्का नूनमार्याऽपि जानकी। दग्धा तेन मया भर्तुर्हितं कार्यमजानता॥
लंकादहन की भूमिका – किरणों के घेरे में परम तेजस्वी सूर्य सम प्रकाशित मारुति द्वारा चलाये जाते परिघ का सम्पूर्ण बिम्ब भासमान हो उठता है।
यदि चास्त्येकपत्नीत्वं शीतो भव हनूमतः । शिशिरस्य इव सम्पातो लाङ्गूल अग्ने प्रतिष्ठितः! …
जो देवी सीता हैं न, हम सबकी आदर्श, उनके सतीत्व की अग्निपरीक्षा यह है। कोई और अग्निपरीक्षा कभी नहीं हुई। युद्ध पश्चात जो अग्निपरीक्षा का क्षेपक है, वह किसी की कल्पना मात्र है।
विभीषण सुंदरकांड – आप कुछ को आदेश दें कि शत्रु पर आप की शक्ति दर्शाने हेतु वे अभियान करें, उन दो राजपुत्रों को पकड़ लायें।
रामायण सुंदरकांड – वीरभाव से अत्यंत सौष्ठव के साथ व्यक्त हनुमान के अप्रतिम वचन सुन कर दशानन के नेत्र मारे क्रोध के वक्र हो गये।
वाल्मीकि रामायण – एक वानर, एक मनुष्य; दो नितांत भिन्न राजवंशों का, उनकी मैत्री की साखी बना उनका संयुक्त दूत कह रहा है, सुनो प्रभु!
अस्त्र से मुक्त होने पर भी हनुमान ने दर्शाया नहीं तथा राक्षस उन्हें घसीटते एवं बंधन में पीड़ित करते चले। वे क्रूर उन्हें लाठियों व मुक्कों से पीटते हुये रावण तक घसीट ले गये।
अक्षकुमार वध – भुजायें, जङ्घायें, कटि एवं गला टूट गये, अस्थियों का चूर्ण बन गया, आँखें निकल आईं। संधियों के भङ्ग होने के साथ साथ देहबन्ध भी ढीले पड़ गये।
काञ्चन मृग हो या ऐसे खर, रामायण अपनी प्राचीनता के अन्तर्साक्ष्य बारम्बार प्रस्तुत करता है। रामायण में वैदिक देवताओं के सन्दर्भ विपुल हैं तथा इन्द्र, वायु, मरुद्गण आदि की बड़ी महत्ता है।
Valmikiya Ramayan अत्याचारी स्वामी के सेवक उसकी मानसिक दुर्बलताओं एवं आशंकाओं का प्रयोग उसे मतिभ्रमित कर समस्या से ध्यान हटा स्वयं को बचाने हेतु करते हैं।
Valmikiya Ramayan : लघुतम कर्म की भी सिद्धि के लिये भी कोई एकल साधक हेतु नहीं। किसी कार्य को जो बहुविध सिद्ध करना जानता हो, कार्यसाधन में वही समर्थ होता है।
अल्पशेषमिदं कार्यं दृष्टेयमसितेक्षणा देवी सीता का दर्शन तो कर लिया, अब मेरे इस कार्य का अल्प अंश शेष रह गया है। त्रीनुपायानतिक्रम्य चतुर्थ इह दृश्यते…
शत्रु की सामर्थ्य एवं सुदृढ़ स्थिति के योग्य प्रतिरोधी समक्ष थे, सीता सब जान लेना चाहती थीं, अपनी सेना की सामर्थ्य, सबसे पहले यह कि सेना इस पार आयेगी कैसे?
विवाहिता नारी द्वारा बहुधा जो बातें पति से नहीं कही जातीं, देवर के माध्यम से बता दी जाती हैं – प्रियो रामस्य लक्ष्मणः, यथा हि वानरश्रेष्ठ दुःखक्षयकरो भवेत्।
देवी सीता के वचन सुन कर वाक्यविशारद कपिश्रेष्ठ हनुमान को सन्तोष हुआ एवं कहने लगे,” हे शुभदर्शना देवी ! आप ने जो कुछ कहा वह एक साध्वी एवं विनयसम्पन्न स्त्री के स्वभाव अनुसार है। पीठ पर अधिष्ठित हो विस्तीर्ण शतयोजनी सागर पारने में एक स्त्री समर्थ नहीं ही होगी।