लहरता दिनमान प्रस्थान और विश्राम बीच – ऑक्तावियो पाज़

लहरता दिनमान प्रस्थान और विश्राम बीच, निजी पारदर्शिता के मोह में।  वर्तुल तिजहर खाड़ी अब, थिरता में जग डोलता जहाँ। दृश्यमान सब और सब मायावी, सभी निकट और स्पर्श दूर। कागज, पुस्तक, पेंसिल, काँच,  विरमित निज नामों की छाँव में। दुहराता समय स्पंदन मेरे केनार वही अपरिवर्तित रक्त अक्षर। बदले प्रकाश में उदासीन भीत भुतहा…

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प्रेम-पंथ

“क्षमा भ्रातृजाया! यदि इस अधम से अनजाने कोई अपराध हो गया हो तो अन्य कोई भी दंड दे लें, किन्तु…! अरे! मैंने दो – दो प्रेमी – युगलों की पीड़ा बहुत निकट से देखी है. यह प्रेम – पंथ मुझ जैसे व्यक्तियों हेतु है ही नहीं! मुझे तो बस क्षमा ही करें भ्रातृजाया!”
एक उन्मुक्त हास्य से अलिंद आपूरित हो उठा. कार्तिक पूर्णिमा की चंद्रिमा आश्रम पर पसरी हुई थी. मनोरमा की उंगलियाँ वीणा के तारों पर थिरक रही थीं…. पिंग … पिंग.. बुंग… पिंग … पिंग.. बुंग….पिंग … पिंग.. बुंग….

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सनातन बोध, अनुकृत सिद्धांत – 9

पिछले लेखांश में हमने सांख्य का सरल मनोवैज्ञानिक विश्लेषण पढ़ा, जिसमें हमने आधुनिक मनोविज्ञान के समानांतर सोचने की दो प्रणालियों को परिभाषित किया। आधुनिक मनोविज्ञान में जहाँ भी इन दो प्रणालियों की चर्चा आती है सांख्य के इस प्रतिरूप से एकरूपता दिखती है। कोई विरोधाभास नहीं. पश्चिमी मनोविज्ञान में सोचने के इस तरीके और हमारे…

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ऋतुगीत : झूम उठते प्राण मेरे

ऋतुगीत : झूम उठते प्राण मेरे त्रिलोचन नाथ तिवारी मुग्ध हो कोमल स्वरों में, मैं बजाता बांसुरी, और, थिरक उठते चरण तेरे, झूम उठते प्राण मेरे॥ तुम हमारी तूलिका और मैं तेरा भावुक चितेरा, भावनाओं में तुम्हारी, रंग भरते प्राण मेरे॥०॥ नाचती बन मोरनी तूं, थाम कर मेरी उंगलियां। मैं तेरी हर भंगिमा पर, लुटा…

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दोहे

दोहे राजेंद्र स्वर्णकार [वर्षा संगीत] शीतल सरस सुहावनी गंधिल बहे बयार । रविशंकर की बज रही, मानो मधुर सितार ॥ मद्धम लय घन गरजते, मंद सुगंध समीर । विष्णु पलुस्कर का मनो, गायन गहन गंभीर ॥ तबले पर ज्यों मस्त हो’ दी हुसैन ने थाप । बादल गरजे आ गई बरखा हरने ताप ॥ सावन…

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प्रेम – एक लघुकथा

प्रेम – एक लघुकथा अनुराग शर्मा “ए हरिया, कहाँ है तेरी घरवाली? कल रात क्यों लड़ रहा था उससे?” रात को सर्वेंट क्वार्टर से आती आवाज़ों के बारे में मैंने चौकीदार हरिया से पूछा। “मैं नहीं लड़ता हूँ मालिक। उसी ने मुझसे झगड़ा करने के बाद अपने भाई को बुलाया और उसके साथ मायके चली गई।” “और अब…

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रजत थाल – नथन आल्टरमन

और धरा थमती जाती है, अम्बर का रक्ताभ नयन भी शांत हो रहा धूम्राच्छादित सीमा पर जाकर राष्ट्र उठा जब, फटा हुआ दिल, साँस ले रहा, आशा है बस चमत्कार की, चमत्कार बस   और उठेगा, पर्व निकट आने दो, और बढ़ेगा, उन्नत चंद्रकिरण में होगा, संंत्रास और आनंद से घिरा कदमताल कर एक तरुण,…

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मघा सहित सूर्य चंद्र

मघा नक्षत्र में सूर्य प्रति वर्ष प्राय: अंतर्राष्ट्रीय सौर दिनाङ्क 17 अगस्त से 30 अगस्त तक रहते हैं। ऐसे में यदि चंद्र का संयोग भी मघा के साथ बने तो इन ‘तीनों के साहित्य’ पर साहित्य अङ्क आना चाहिये, कल की अमावस्या और आज की शुक्ल प्रतिपदा की युति के नेपथ्य में यही भाव है।  …

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पिहू Pheasant–Tailed Jacana

फोटो का स्थान: सरयू का कछार अयोध्या फैजाबाद उत्तर प्रदेश। फोटो का दिनांक: १६ अप्रैल, २०१७ Pheasant–Tailed Jacana वैज्ञानिक नाम (Zoological Name): Hydrophasianus Chirurgus हिन्दी नाम (Hindi Name): पिहू, पिहुया, जल मयूर, कमलपक्षी, चित्र बिलाई संस्कृत नाम (Sanskrit Name): जलमंजर,जलकपोत Kingdom: Animalia Phylum: Chordata Class: Aves Order: CHARADRIFORMES Family: JACANIDAE Genus: Hydrophasianus Species: Chirurgus Category:…

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कहानी सी, नमस्ते

“हर शाम के जैसे मैं अपने ऑफिस में बैठा था। ईश्वर की दया से पिछले कुछ महीने से काम ठीक-ठाक चल रहा था।  सिर खपाई तो पहले जैसी ही थी लेकिन सप्ताह में औसतन एक डील  मैच्योर भी हो रही थी। मकान खरीदने और बेचने वालों से इतना कमीशन आ जाता था कि दाल-रोटी अच्छे…

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राजदरी-देवदरी : कहि न जाय का कहिये

विन्ध्याचल निवासिनी गिरीन्द्रनन्दिनी ने स्वकीया परिभ्रमण लीला में विचरण करते हुए इस जल प्रपात में समोद मज्जन किया था। राज राजेश्वरी के अवगाहन तथा सर्वदेवशरीरजा की जल लीला-विहार के चलते इस पावन प्रपात का नाम राजदरी-देवदरी हो गया। इस स्थली को देख सर्वसत्वमयी जयन्ती चमत्कृता हो गयीं थीं अतः पार्श्वभूमि का नाम आज भी चमत्कृता (चकिया) नाम से विश्रुत है।

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संस्मरण सा शम्भू

आज पता चला ‘शम्भू’ नहीं रहा। शम्भू  एक परंपरा की आखिरी कड़ी था। बहुत कुछ ऐसा था जो उसके साथ ही चला गया। उसकी कमी मुझे महसूस होगी। आजीवन। जिन्होंने भी उसे जाना लगभग सबको होगी। मुझे याद नहीं अपने परिवार के बाहर शम्भू के अतिरिक्त कोई भी और है जिससे मैं हर बार गाँव जाने…

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अरण्यानी देवता – ऋग्वेद Araṇyānī Devatā – Ṛgveda 10.146

गिरा दिया वृक्ष किसी ने हाँक पार रहा कोई गैया
उतरी साँझ में वनबटोही समझ रहा चीख किसी की!
वनदेवी कभी न हनती जब तक न आये अरि हत्यातुर
खा कर सुगन्धित इच्छित फल जन लेते विश्राम ठहर।

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संस्कृत गल्पवार्ता (सम्प्रतिवार्ता न)

संस्कृत गल्पवार्ता अलंकार शर्मा इयं आशाकवाणी, गल्पवार्ता पठ्यन्ताम्। प्रलेखकः अलङ्कारः। अद्य प्रातःकाले सूर्यः न उदित स्म, बहवः अभ्राः सूर्यस्य मार्गं अवरुद्धः कृता। सूर्यः उदिते अशक्नोत् एतेषां अभ्राणां कारणेन। संपूर्ण जगते अन्धकारस्य शासनः अस्ति उलूकाः प्रत्येक वृक्षस्य शाखोपरि स्थिताः च। अस्य उद्यानस्य का स्थिति भविष्यति इति दर्शनीयः। अद्य हारुलगान्धीवर्यः अमेरिका देशस्य नोबेलपुरस्कारविजेता वैज्ञानिकानां संभाषणं भारतीय वेद-शास्त्र-दर्शन…

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