स्वर्ग व दैवत मत परिवेशजन्य : सनातन बोध – ९०
नृविज्ञान में १९६० से प्रारम्भ हुए शोधों में एक रोचक सिद्धांत यह निकला कि मरुभूमि तथा शस्य-श्यामला धरती वाले वर्षा-वन में रहे पूर्वज वाले मानवों की धार्मिक तथा सांस्कृतिक मान्यताएँ भिन्न होते हैं। वैश्विक स्तर पर एकेश्वरवाद प्रसार वैविध्य की दृष्टि से अपेक्षतया संकेंद्रित है जोकि मरुस्थली पशुचारियों में व्यनुपाती रूप से अधिक पाया जाता है, जबकि वनप्रांतर में रहने वालों के असामान्य रूप से बहुदेववादी होने की सम्भावना अधिक रहती है।
मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत्
उपाय यह है कि सर्वाङ्गीण अभिवृद्धि में लगे रह कर सुखपूर्वक यह जीवन जियो और अपने पीछे अपने जैसे ही छोड़ जाओ। सबको अपने उत्तर स्वयं ढूँढ़ने दो, सबको जीने दो। परंतु अपनी रक्षा करने में कोई चूक नहीं करो क्योंकि वे जो समस्त प्रश्नों के सटीक उत्तर जानने की बातें करते हैं, तुम्हारे लिये चिर सङ्कट बने रहेंगे। कोलाहल के बीच शान्ति ‘सुनने’ वाले अत्यल्प ही रहे हैं।
Purple sunbird शकरखोरा
शकरखोरा एक छोटी सी सुन्दर चिड़िया है, जो हमारे खेतों व पुष्प-उद्यानों में इधर-उधर उछलती फुदकती, फूलों का रस चूसते प्राय: दिखाई पड़ जाती है। शीतकाल में नर का वर्ण जनित अभिज्ञान भी मादा समरूप ही हो जाता है, बस चोंच से लेकर उदर तक एक गहन नीललोहित वर्ण की पट्टी आ जाती है (इस प्रकार के पंखों को Eclipse Plumage कहते हैं) । प्रजनन काल में नर का वर्ण अभिज्ञान अति सुन्दर, कान्तिमान नील व नीललोहित हो जाता है।
मयूरभट्ट व उसके मयूराष्टक का ललित अनुशीलन
यह मयूरभट्ट था कौन? वामहस्त-प्रशस्ति के रूप में इसका परिचय मात्र इतना प्राप्त होता है कि यह बाणभट्ट का श्यालक था, हर्षवर्धन की राज्यसभा में था तथा इसकी बाण से कुछ प्रतिद्वन्द्विता थी। इतिहास जहाँ पर तथ्यों को अङ्कित करने में अपने पृष्ठ मूँद लेता है, वहाँ तथ्यों को सँजोने का कार्य लोक-जिह्वा करती है। किन्तु लोक की संचय-रीति तथ्यात्मक नहीं होती, वह कथात्मक हो जाती है। अतः लोक में प्रचलित मयूरभट्ट के सम्बन्ध में एक कथा है किन्तु उस कथा के पूर्व एक उपकथा भी है।
वनौषधि वर्ग अमरकोश से : लघुदीप – ३७
चीनी विषाणु के काल में उपचार के अनेक उपाय किये जा रहे हैं। पारम्परिक वैद्यकी व ज्ञान भी प्रयोग में लाया जा रहा है। ऐसे में सहज ही आयुर्वेद पर ध्यान जाता है। आयुर्वेदिक उपचार पौधों पर अत्यधिक निर्भर है। आयुर्वेद के निघण्टु शास्त्र आदि तो नहीं, अमरकोश से देखते हैं कुछ पारिभाषिक शब्द, कुछ नाम व कुछ पर्याय। शब्दों के प्रचलित व रूढ़ हो चुके अर्थों से कुछ भिन्न हो सकते हैं।