अथातो ब्रह्म जिज्ञासा

गिरिजेश जी के प्रयासों में भी मूल भावना जिज्ञासा ही थी। हम भी इस जिज्ञासा की यज्ञाग्नि प्रज्वलित रखें तथा उन्हीं के सदृश ओरों को भी इसी मार्ग के यात्री बनने में सहायता करें। यही उनके प्रति वास्तविक श्रद्धाञ्जलि होगी।
जब ज्ञान प्राप्ति एवं सनातन धर्म की रक्षा के मार्ग कण्टकाकीर्ण लगें तो यह तथ्य आत्मसात करें कि मार्ग में मिलने वाले वृक्षों की छाया यात्री का पथ्य नहीं होती।

सखा गिरिजेश

गिरिजेश की चिन्ताओं में एक बड़ी चिन्ता हमारी आगामी पीढ़ियों की चिन्ता थी और यह अपने बच्चों तक सीमित नहीं थी। गिरिजेश आगामी पीढ़ियों के लिये पहले से अधिक सुघड़ संसार छो‌ड़ने के पक्षधर थे और इसके लिये अपनी पूरी क्षमता से लगे रहे और विनम्रता इतनी कि कइयों पर अकेले भारी पड़ने वाले व्यक्ति, अनेक पत्थरों को छूकर स्वर्ण करने वाले पारस के ब्लॉग का नाम “एक आलसी का चिट्ठा” है क्योंकि गिरिजेश एक जीवन में कई जीवनों का कार्य पूर्ण करना चाहते थे।

भैया जी

एक निरुद्देश्य भटकने वाले यायावर को आपने एक उद्देश्य दिया। जिन विषयों के बारे में मैंने केवल सुना भर था, आपने “उत्प्रेरक” का कार्य कर मुझे उन विषयों में गहराई में जाने के लिए प्रेरित किया।

The catalyst who helped many to realize the eternal travel (सनातन कालयात्रा)

I confess that some of the best life-learnings for my this life, came in last 20 years by this medium. I had many opportunities to learn, unlearn and grow with the help of selfless guidance by like-minded travelers. Girjesh ji has special place in these travelers and I will forever live indebted to him until I travel on the same path and act as enabler for many fellow-travelers. I mean it, I don’t want to live life in debt. I will walk on the same path!

सनातन कालयात्री

सनातन कालयात्री

जी हाँ इसी नाम में वो आकर्षण था जिसने मुझे फेसबुक के आभासी संसार से तनिक आगे बढ़कर यथार्थ के धरातल पर कुछ कार्य करने के लिए प्रेरित किया था। पहले तो फेसबुक के माध्यम से ही वार्तालाप होता था लेकिन समय के साथ दूरभाष पर होने लगा।

सोऽहं हंसः

सोऽहं हंसः — मुख से मन की बात न पूछो

हंस से जुड़ी रूढ़ियाँ अनगिन हैं तथा प्रत्येक रूढ़ि एक कोमल किन्तु सुदृढ़ रहस्य का प्रतीक है। और इन रूढ़ियों की यही कोमल रहस्यात्मकता इसे भारतीय साहित्य, कला, दर्शन एवं तन्त्र में एक महत्वपूर्ण अवयव के रूप में स्थापित करती है। सांस्कृतिक रूप से समृद्ध तथा भावप्रवण भारतीय चिन्तना ने जितने भी प्रतीक गढ़े हैं उनमें हंस शब्द के रहस्य का घनत्व एवं विस्तार दोनों ही सबसे अधिक है।

हास्यबोध वाला यह व्यक्ति

इतने अच्छे हास्यबोध वाला यह व्यक्ति एक छटपटाहट से जूझ रहा है। छटपटाहट, जो किसी व्यक्तिगत सुख के लिए नहीं थी अपितु इसलिए थी कि अपना धर्म, राष्ट्र, सँस्कृति पुनः अपना खोया हुआ गौरव प्राप्त कर सके। …मैंने फोन करके कहा कि आप बहुत लोड ले रहे हो और मुझे आपकी चिन्ता हो रही है। हँसते हुए बताने लगा कि कितना कुछ हार्ड ड्राईव में सँजो रखा है और कितना अभी व्यवस्थित करना शेष है।

निर्मोही

07 अगस्त 2016 का दिन था, जो जीवनपर्यन्त अविस्मृत रहेगा। पिताजी को सुबह हृदयाघात हुआ था। मैं दिल्ली में और भैया चेन्नई थे। पिताजी की जीवन रक्षा हेतु हम दोनों आतुर एवं व्यग्र थे किन्तु भैया की अधीरता नहीं भूलती, पिताजी संध्या काल पर्याण कर गए। अगले दिन जब भैया गाँव पहुंचे तो उन्होंने मुझे अङ्क में छिपा लिया, अपने सारे अश्रु पी गए।

विनम्र परन्तु हठी नवयुवक

पहली मुलाक़ात कुछ विशेष नहीं थी। विवाह के उपरान्त विदाई के समय ठीक से निहारा था उनको। उम्र कच्ची थी। उनकी भी और मेरी भी। एक विनम्र परन्तु हठी नवयुवक की धारणा बनी। जो अन्त तक रही। कालान्तर में विभिन्न अवसर और स्थान बदले पर यह नवयुवक नहीं बदला।

आत्मीय। अद्भुत। अद्वितीय। विलक्षण।

पढ़ाई और पेशे से अभियन्ता, आईआईटियन, और वेदपाठी। वेद, पुराण, उपनिषद, खण्डहरों, और मूर्तियों पर लिखते तो लिखते ही चले जाते। लोक गीतों, जीउतिया और नाग पञ्चमी जैसे पर्वों के अस्तित्व और उद्भव पर कैसी-कैसी अद्भुत बातें बतायी उन्होंने। कैसी अद्भुत दृष्टि!

एक कालयात्री जो सनातन था

गिरिजेश राव जी की कई फेसबुक प्रोफाइल थीं और वे बदल-बदल कर उपयोग करते थे ऐसे में उनको ढूंढना पड़ता था। पहले तो ढूँढने में कठिनाई होती थी किन्तु धीरे-धीरे उनकी शैली को पहचाने लगा।

वनौषधि वर्ग अमरकोश से : लघुदीप – ३७

वनौषधि वर्ग अमरकोश से : लघुदीप – ३७

चीनी विषाणु के काल में उपचार के अनेक उपाय किये जा रहे हैं। पारम्परिक वैद्यकी व ज्ञान भी प्रयोग में लाया जा रहा है। ऐसे में सहज ही आयुर्वेद पर ध्यान जाता है। आयुर्वेदिक उपचार पौधों पर अत्यधिक निर्भर है। आयुर्वेद के निघण्टु शास्त्र आदि तो नहीं, अमरकोश से देखते हैं कुछ पारिभाषिक शब्द, कुछ नाम व कुछ पर्याय। शब्दों के प्रचलित व रूढ़ हो चुके अर्थों से कुछ भिन्न हो सकते हैं।

भारती संवत संवत्सर नाम

भारती संवत : संवत्सर नाम, मास एवं तिथियाँ (१, महाश्रावण, मास तप)

भारती संवत : संवत्सर नाम – इस वर्ष अस्त के पश्चात गुरु का उदय श्रावण नक्षत्र में होगा, अत: यह संवत्सर हुआ – महाश्रावण। मास : तप-मृगशिरा।
भारती संवत में महीना पूर्णिमा से आरम्भ हो कर शुक्ल चतुर्दशी को समाप्त होगा।
तिथि का गणित वही रहेगा जो है किन्तु यदि तिथि परिवर्तन सूर्योदय से सूर्यास्त के पूर्व कभी भी हो गया तो उस दिन वह तिथि मान ली जायेगी, भले उदया न हो। उदाहरण के लिये, कल पूर्णिमा सूर्य के रहते ही हो गई थी, अत: पूर्णिमा कल की मानी जायेगी।

अयनांत विशेषाङ्क : भारती संवत – १, गुरु-शनि युति, विषम विभाजन व अभिजित

अयनांत विशेषाङ्क : भारती संवत – १, गुरु-शनि युति, विषम विभाजन व अभिजित

नक्षत्रों के नाम देखें तो स्पष्ट होता है कि बहुधा उनके नाम योगताराओं के या मुख्य तारकों की समूह आकृतियों के आधार पर रखे गये। यथा चित्रा का योगतारा spica क्रांतिवृत्त के निकट का प्रकाशमान तारा है तथा मात्र आधे अंश के देशांतर भेद पर स्थित स्वाति के अति प्रकाशमान योगतारा से मिल कर सरल अभिज्ञान के साथ साथ सु+अति (अत्युत्तम) की सञ्ज्ञा का पात्र है। मृगशिरा निकटवर्ती त्रिकाण्ड से मिल कर वास्तव में एक मृग के सिर की भाँति प्रतीत होता है। कृत्तिका के छ: तारे एक गँड़ासी की आकृति बनाते हैं जोकि काटने में प्रयुक्त होती है। साथ ही कृत्तिका के देवता अग्नि की भाँति ही वह समूह आकाश में दप दप करते प्रतीत होते हैं।

भारती सम्वत प्रस्ताव - गिरिजेश राव - vernalequinox-e

भारती संवत : प्रस्तावना (शीत अयनान्त एवं गुरु-शनि युति एक साथ)

भारती संवत – जब कि भारतीय परम्परा में शीत अयनांत के साथ नववर्ष आरम्भ के दृढ़ प्रमाण हों, नयी संवत्सर पद्धति आरम्भ करने का सबसे उत्तम अवसर है। मासानां मार्गशीर्षोऽहम्‌ (श्रीकृष्ण, भगवद्गीता, १०.३५)। कल अग्रहायण या मार्गशीर्ष मास की शुक्ल प्रतिपदा है, अमान्त पद्धति से मार्गशीर्ष मास का आरम्भ। इस दिन से मैं एक नये ‘भारती संवत’ का प्रस्ताव करता हूँ। अब्द, संवत, वर्ष, era, epoch आदि नामों के अर्थों की मीमांसा में न जाते हुये कहूँगा कि जैसे विक्रमाब्द, शालिवाहन शकाब्द आदि विविध संवत्‌ प्रचलित हैं, ऐसे ही यह नया संवत होगा।

पुरा नवं भवति

पुरा नवं भवति

भारत में इतिहास को काव्य के माध्यम से जीवित रखा गया। स्वाभाविक ही है कि ऐसे में कवि कल्पनायें नर्तन करेंगी ही। कल्पना जनित पूर्ति दो प्रकार की होती है, एक वह जो तथ्य को बिना छेड़े शृङ्गार करती है, दूसरी वह जो तथ्य को भी परिस्थिति की माँग के अनुसार परिवर्तित कर देती है। दूसरी प्रवृत्ति की उदाहरण रामायण एवं महाभारत, दो आख्यानक इतिहासों, पर आधारित शताधिक रचनायें हैं जिनमें पुराण भी हैं। आख्यान का अर्थ समझ लेंगे तो बात स्पष्ट होगी। आख्यान आँखों देखी रचना होते हैं।

मूल में भी क्षेपक जोड़े गये जिनका अभिज्ञान कठिन है किन्तु असम्भव नहीं।

Andropogon muricatus usira उशीर Vetiver खस और बुद्ध : लघु दीप - ३१

Andropogon muricatus usira उशीर Vetiver खस और बुद्ध : लघु दीप – ३१

Andropogon muricatus usira उशीर ‍~ तुम्हारे कल्याण के लिये कहता हूँ – जैसे खस के लिये लोग उसीर को खोदते हैं, वैसे ही तुम तृष्णा की जड़ खोदो। नळ उस धरा पर बहुलता से होने वाला तृण है जिस पर कभी बुद्ध भ्रमण करते थे। उसकी जड़ें बहुत दूर तक पहुँचती हैं। अगले अङ्क में भी तो कुछ जानना है न?

Bauhinia vahlii मालुवा चाम्बुली

Bauhinia vahlii Maluva चाम्बुली, मालू, Camel’s foot creeper और बुद्ध : लघु दीप – 30

Bauhinia vahlii Maluva चाम्बुली ~मेरी प्रेमिका मालुवा लता सी लिपटी। प्रमत्त होकर आचरण करने वाले मनुष्य की तृष्णा मालुवा लता की भाँति बढ़ती है। भारतीय वाङ्मय में अपने परिवेश, जन, अरण्य, पशु-पक्षियों व वनस्पतियों के प्रति अनुराग और जुड़ाव बहुत ही सहज रूप में दिखता है। अब उपेक्षा और अज्ञान इतने बढ़ चुके हैं कि आज के भारतीय जन को देख कर तो लगता ही नहीं कि यह वही धरा है, उसी के लोग हैं!