Five Trillion Economy पचास खरब की अर्थव्यवस्था
देश की परिभाषा बहुसंख्यक जनता के हितों से आती है। हम देश को मिस्र के अति सम्पन्न एवं शिल्प कौशल में समय के कीर्तिमान किन्तु मृत जन को संरक्षित रखते पिरामिडों के समान तो नहीं बनाना चाहते न?
देश की परिभाषा बहुसंख्यक जनता के हितों से आती है। हम देश को मिस्र के अति सम्पन्न एवं शिल्प कौशल में समय के कीर्तिमान किन्तु मृत जन को संरक्षित रखते पिरामिडों के समान तो नहीं बनाना चाहते न?
Let go बीती ताहि बिसार दे जैसी उक्तियों में यही बात है। अतीत को भूल वर्तमान में जीने का दर्शन तो निर्विवाद सनातन ही है। ‘बंधनम् मुच्यते मुक्ति’।
Basic features of Youtube यूट्यूब की कुछ सामान्य सुविधाएँ हमारे समक्ष रहती हैं परन्तु या तो हम उनकी उपेक्षा करते हैं या न जानने के कारण उपयोग नहीं कर पाते। इस लेख में मैं ऐसी ही सुविधाओं की बात करूँगा।
गुरुपत्नी राजपत्नी मित्रपत्नी तथैव च । पत्नीमाता स्वमाता च पञ्चैताः मातरः स्मृताः ॥ (गुरु, राजा, मित्र, पत्नी की मातायें एवं अपनी माता, इन पाँच को माता माना जाता है।) सुदर्शन एवं दिव्यरूपधारी चन्द्र ने अपने गुरु बृहस्पति की पत्नी तारा को लुभा लिया। वह आश्रम तज अपने प्रेमी के घर आ गई। बड़ी…
शिवहंस ग्रेब(पनडुब्बी) परिवार का सबसे बड़ा पक्षी है। परन्तु प्रजनन काल में नर के सिर पर एक काली चोटी निकल आती है और गले का भाग कत्थई चटक रंग का हो जाता है।
सरल संस्कृत पर कुछ दिनों पूर्व हमने लेखशृङ्खला आरम्भ की थी जिस पर विराम लग गया। हमने सीधे बोलने से आरम्भ किया था। सम्भवत: वर्णमाला से आरम्भ न करने के कारण यह विघ्न आया क्यों कि पहले देव आराधना तो होनी चाहिये थी। देव आराधना का क्या अर्थ है?
मनोविज्ञान में इसे अस्थायी कटौती (temporal discounting) भी कहते हैं, दीर्घकालिक लाभ की दूरदर्शी सोच के स्थान पर अल्पकालिक क्षणिक सुख के प्रलोभन में उलझना।
प्रकृति माता है और माता का मातृत्त्व जब अमृत बन कर बरसता है तो उसका एक रूप महुआ के रूप में भी सामने आता है।
स्वयं हेतु, अपने परिवार हेतु, पर्यावरण हेतु, धरती माता हेतु, नदी माता हेतु एकलप्रयोग प्लास्टिक को निश्चित रूप से अपने जीवन से दूर करें। यह आगामी पीढ़ियों के स्वास्थ्य हेतु भी बहुत ही आवश्यक है।
Eclipse ग्रहण … समुद्र-मंथन से चन्द्रमा की उत्पत्ति, राहु-केतु के अमरत्व तथा उनके द्वारा सूर्य-चन्द्र के ग्रहण का तात्पर्य क्या है?
छांदोग्य में ऋग्वैदिक दृष्टि की पुष्टि …. जो अन्न भोग करता है, जो देखता है, जो प्राण धारण करता है और जो इस ज्ञान का श्रवण करता है, वह मेरी सहायता से यह सब करता है। और जो मुझे मानते-जानते नहीं, वे नष्ट हो जाते हैं। हे प्राज्ञ मित्र ! तू सुन, तुझे मैं श्रद्धेय ज्ञान को कहती हूँ।