परित्यक्त गाँव (नेपाल) भाद्रपद अमावस्या साहित्य संयुक्ताङ्क, २०७७ वि., वर्ष-५, अङ्क-८९, बुधवार

परित्यक्त गाँव (नेपाल)

दनुआर लोग
जो कभी फूँकते रहते थे प्राण
इन प्रस्थों के ऊपर,
ग्रस लिये गये
अधपके अरबी सपनों
और
नागर गुहा-मुखों द्वारा ।

जहाँ कभी पण्य और पंसार
के थे प्रसार ,
वहाँ बचे केवल अब
भूले स्वप्न
और
मृत पुरनियों के प्रेत।

Eurasian Collared-dove धवल कपोतक। चित्र सर्वाधिकार: आजाद सिंह, © Ajad Singh, सरयू आर्द्र भूमि, माझा, अयोध्या-224001, उत्तर प्रदेश, June 07, 2020

Eurasian Collared-Dove धवल कपोतक

धवल पण्डुक के नर और मादा अभिज्ञान में समान रंग-रूप के होते हैं। इनका वर्ण तनिक भूरा सिलेटी होता है। ग्रीवा पर पार्श्व में अर्ध वलयाकार कृष्ण वर्णीय पट्टिका होती है जिससे इसकी पहचान सरल हो जाती है।

वस्त्र गाथा और नारीवाद

वस्त्र गाथा

भाँति भाँति का फैशन क्या है और महिलाओं में वस्त्रों को लेकर प्रतिस्पर्धा कहाँ से आई? इस प्रश्न का एक शब्द में उत्तर है बाजारवाद। कुछ दिन पहले टहलते समय मेरी लगभग दस साल की बेटी ने प्रश्न किया कि क्या बड़े होने पर लड़कियों को छोटे कपडे नहीं पहनने चाहिए?

मघा : भाद्रपद अमावस्या साहित्य संयुक्ताङ्क, २०७७ वि., वर्ष-५, अङ्क-८९, बुधवार

अमावस आकृतियाँ

आज अमावस्या के दिन सूर्य चंद्र के साथ मघा नक्षत्र पर विराजमान हैं। सिंह राशि में पड़ने वाले मघा नक्षत्र का प्रतीक है राजसिंहासन और इसके नाम के मूल मघ को समृद्धि, सम्पदा, ऐश्वर्य आदि से समझा जा सकता है। उससे पूर्व का अश्लेषा आलिङ्गन है।

प्रच्छन्न अनुच्छेद

प्रच्छन्न अनुच्छेद

लक्ष्मी-वाहन को लक्ष्मी के अतिरिक्त भी किसी अन्य लाभ की आकांक्षा हो सकती है यह जान कर शुक्राचार्य को आश्चर्य हुआ। उन्होंने उलूक से कहा,“हे पक्षिराज! उलूक-मंतव्य सामान्य जनों हेतु सदा स्पष्ट नहीं होते! आप अपना वांछित स्वयं कहें!”

अनाम प्रेमिका की अनाम (अफगानिस्तान से) भाद्रपद अमावस्या साहित्य संयुक्ताङ्क, २०७७ वि., वर्ष-५, अङ्क-८९, बुधवार

अनाम प्रेमिका की अनाम (अफगानिस्तान)

लिखा है मेरी देह पर, प्रीतम का नाम
धुल जायेगा, न करूँ स्नान

सब पहनेंगे स्वच्छ वस्त्र, कल उत्सव के दिन
पहनूँ मैं वे ही मैल कुचैल, प्रियतम के सब गन्ध

अर्थ की गति : श्रीधर जोशी

अर्थ की गति

शब्द यदि शिव है, तो अर्थ ही उसकी शक्ति है। निरर्थक शब्द अप्रयुक्त माने जाते हैं, साथ ही अर्थज्ञान से रहित को यास्क ने ठूँठ कहा है। यास्क कहते हैं,कि जैसै बिना ईंधन के अग्नि नहीं जल पाती है, उसी प्रकार अर्थज्ञान के विना शब्द प्रयोग व्यर्थ है

सीढ़ियाँ (बांग्लादेश से) भाद्रपद अमावस्या साहित्य संयुक्ताङ्क, २०७७ वि., वर्ष-५, अङ्क-८९, बुधवार

सीढ़ियाँ (बांग्लादेश)

हम सीढ़ियाँ हैं 

रौंदते हो जिन्हें
प्रतिदिन तुम
ऊँचे उठने को।

तब तुम
न रुकते कभी,
न देखते कभी मुड़।

तुम्हारे पाँव भी फिसलेंगे
एक दिन,
हमायूँ की भाँति।

मेरा इतिहास मेरा अपना नहीं (म्यान्मार) भाद्रपद अमावस्या साहित्य संयुक्ताङ्क, २०७७ वि., वर्ष-५, अङ्क-८९, बुधवार

मेरा इतिहास मेरा अपना नहीं (म्यान्मार)

मर कर भी मैं निर्वासित था
उन्होंने मेरे अवलम्ब प्रलेख भी पूरे न लिखे
मर कर भी मेरे पास
आवास अनुमति पत्र न था ।
उन्होंने मेरी मौत लिख दी है
उन्होंने मेरी मौत मरुत पर लिख दी है
उन्होंने … उन्होंने… उन्होंने मेरी मौत जल पर भी लिख दी है

जब मैं नहीं रहूँगा (भूटान से) भाद्रपद अमावस्या साहित्य संयुक्ताङ्क, २०७७ वि., वर्ष-५, अङ्क-८९, बुधवार

जब मैं नहीं रहूँगा (भूटान)

क्यों कि जब मैं नहीं रहूँगा, और तुम वियोगसिक्त,
जब मैं हो रहूँगा तुम्हारी पहुँच से दूर बहुत
तुम्हारे अनसुने शब्द हो रहेंगे तिरोहित मात्र,
तुम्हारी ऊष्मा हो रहेगी यूँ ही शीतल
और बेड़ियों में बच रहेगा तुम्हारा स्व शोकार्त।

अत: जब हो सक्षम, मुझसे करो प्यार!!!

Narad Puran नारदपुराण [पुराण चर्चा – 1, विष्णु दशावतार तथा बुद्ध – 7]

विष्णु के नयनों के जल से बिन्दुसर जिसमें स्नान से शङ्कर के हाथ से ब्रह्मा का कपाल छूटा, कपालमोचन तीर्थ बना। विष्णु काशी में बिन्‍दुमाधव नाम से विराजमान हुये

Sanskrit Riddles प्रहेलिका आलाप : Tiny Lamps लघु दीप – 17

प्रहेलिका – गुप्त, च्युत, कूट, आलाप – अन्तर्, बहिर् … आलापों के उत्तर हेतु पौराणिक घटनाओं एवं पर्यायवाचियों का ज्ञान परमावश्यक है।

Cruel to Be Kind हितकर कठोरता : सनातन बोध – 35

संसार में कुछ भी आनन्‍ददायक तब तक नहीं, जब तक हम उसमें पारङ्गत नहीं हो जाते और किसी भी विषय में पारङ्गत होने के लिए कठिन परिश्रम आवश्यक है।

खजुराहो – अतीत की वीथियां

पिताजी प्राय: कहा करते थे कि चंदेल राजवंश का अतीत बहुत गौरवशाली रहा है। समृद्ध एवं गौरवमय अतीत में झाँकने की उनकी प्रेरणा के कारण मेरे मन में बहुत इच्छा रहती थी कि अपने पुरखों की धरती ‘महोत्सव नगर’ (अब महोबा) का कभी भ्रमण करूँ। दो मित्रों श्री महेंद्र प्रताप (महोबा के मूल निवासी) और…

Valmiki Ramayan Sundarkand Valmikiya Ramayan वाल्मीकीय रामायण

वाल्मीकीय रामायण से – 35, सुन्‍दरकाण्ड [रामस्य शोकेन समानशोका]

रामस्य शोकेन समानशोका … हे वानर ! जो तुमने यह कहा कि राम का मन अन्य की ओर लगता ही नहीं एवं वे शोकनिमग्न रहते हैं, वह मुझे विषमिश्रित अमृत के समान लगा है ।