भारत के पाँव बँधे अवरोधक
अर्थव्यवस्था में सुधार हेतु शीघ्र ही नीतिगत उपायों की अपेक्षा है क्यों आगामी पाँच वर्षों में जिन उपलब्धियों का लक्ष्य है, उनकी प्राप्ति में वर्तमान स्थिति के लम्बे समय तक बने रहने से कठिन बाधायें उठ खड़ी होंगी।
अर्थव्यवस्था में सुधार हेतु शीघ्र ही नीतिगत उपायों की अपेक्षा है क्यों आगामी पाँच वर्षों में जिन उपलब्धियों का लक्ष्य है, उनकी प्राप्ति में वर्तमान स्थिति के लम्बे समय तक बने रहने से कठिन बाधायें उठ खड़ी होंगी।
सामाजिक संसर्ग या सम्वाद की जो ‘दक्षता’ होती है, वह शनै: शनै: लुप्त हो रही है। परिवार संस्था पर भयानक दबाव है, इतना कि बाल या किशोरावस्था की अपनी संतानों से माता पिता भी बहुत खुल कर सम्वादित नहीं हो पा रहे। आवरण को बड़ा आकर्षक नाम भी दे दिया गया है – ‘निजी स्पेस’।
भारत में अभियाननाद नहीं, आर्तनाद ही चल रहा है। भारतविद्या एवं भारत की उन्नति के इच्छुक गम्भीर युवाओं को इन सब प्रवृत्तियों से मुक्त हो कर्मसंलग्न होना होगा। हम मिथ्या गौरवबोध में जीने को आतुर हैं, वह हमारा अंग बन चुका है। पुरातन का अध्ययन, उनका वैज्ञानिक एवं सत्यनिष्ठ विश्लेषण तथा आक्रमणों के सटीक उत्तर, ये सब होने चाहिये किंतु उसके स्थान पर हो क्या रहा है?
Square Meal दो जून की रोटी – जनसंख्या का पेट भरने हेतु किये जा रहे अंधाधुंध दोहन एवं स्वार्थ के कारण हम अपना मृत्युगीत लिख रहे हैं।
उत्तिष्ठ हरि शार्दूल। भीरुता की परिपाटी तोड़ने के लिए समय-समय पर नए हनुमान प्रस्तुत करना ही हमारा उद्देश्य होना चाहिए। इस देश में हरि शार्दुल तभी पैदा हो पाएंगे।
पीढ़ियाँ बीतीं, समय पहुँचा एक हिंदू पश्तून शिल्पी बत्रा तक जिसे पञ्जाबी बता कर पाला पोसा गया था। भारत आये पुरखों ने अपना अभिजान छिपा लिया था।
ऐसी सरकार चुनने हेतु मतदान करें जिस पर आगे के सुधारों हेतु आप दबाव बना सकें — श्रीरामजन्मभूमि पर भव्य मन्दिर निर्माण हेतु, भीषण गति से बढ़ती अनुत्पादक जनसंख्या पर अंकुश हेतु, कैंसर बन चुके कश्मीर को सामान्य राज्य बनाने हेतु, शैक्षिक तंत्र में आमूल चूल परिवर्तन हेतु … समस्यायें अनेक हैं, सुलझी सरकार से ही सुलझनी हैं, लॉलीपॉप दे लुभाने वाली अकर्मण्य भ्रष्ट सरकार से नहीं। सरकार अर्थात सर्वकार, मतदान सोच समझ कर करें, अवश्य करें।
चार दिन का है खेला रे; को नृप होंहि हमहिं का हानी को जीते हम दीर्घ लाभ नहीं देखते। संसार के किसी भी वाङ्मय में ऐसा कुछ भी अनूठा नहीं है जो हमारे यहाँ नहीं।
बहुत दिनों तक प्रगति का नेतृत्त्व पश्चिम ने किया, अब पुरातन एशियाई जगत भी आगे निकलने को अँगड़ाइयाँ लेने लगा है। प्रश्न यह है कि हम उनमें कौन हैं, कहाँ हैं, क्या कुछ अनूठा कर रहे हैं? जब मैं अनूठा कह रहा हूँ तो किसी बड़े प्रकल्प की बात नहीं कर रहा। मैं एक व्यक्ति के रूप में, परिवार के रूप में, संस्था के रूप में नवोन्मेष की बात कर रहा हूँ, साथ ही उस अनुशासन की भी जो कि न्यूनतम आवश्यकता है। देश बड़े तभी होते हैं जब उनके नागरिक बड़े होते हैं।
लघु दीप अँधेरों में tiny lamps in darkness : यदि इच्छाशक्ति हो तथा तदनुरूप कर्म हो तो बाधायें सिर झुका देती हैं, आँचल प्रमाण हैं। सुदूर मनाली के उत्तर में स्थित गाँव बुरुआ की आँचल।
शीर्षक पर न जायें! काव्यगत् दृष्टि में शृंगार पक्ष अद्भुत, किन्तु अब लुप्तप्राय। जैसा कि शीर्षक स्पष्ट कर रहा है, बारह मास से ही अभिप्राय है। लोक भोजपुरी में होली के अवसर पर गाया जाने वाला विरह शृंगार गीत। साहित्यिक हिन्दी वालों के लिए विप्रलंभ शृंगार। आइये, तनि गहरे गोता मारिये न! … लगभग तेरह…
मानवता के निजी सङ्कट : सामूहिक छ्ल एवं वर्ग स्वार्थ का उपयोग स्वहित वह लघु वर्ग करता रहा है जोकि किसी भी देश का शासक होता है। सामान्य जन को फुसलाना तथा बहका देना बहुत सरल है किंतु वह वर्ग जोकि चेतना के शीर्ष पर विराजमान है, भोलेपन का अभिनय क्यों कर रहा है? सुविधाजीवी बौद्धिक पाखण्ड का प्रभाव तो नहीं?
लघु दीप अँधेरों में : भारत में विभिन्न तीर्थ स्थलों एवं गंङ्गा, यमुना, नर्मदा इत्यादि अनेक नदियों में इसका बहुत ही प्रभावी उपयोग हो सकता है। सहमत हैं तो बात आगे एवं ऊँचे बढ़ाइये न!
इसरो ISRO : ऊर्जा बढ़ानी होगी, अंतर पाट कर ऊँची कक्षा में जाना होगा। ‘विकसित’ होता भारत स्वयं की प्रतीक्षा में है, अपने अंतरिक्षीय दूरदर्शी यंत्र की प्रतीक्षा में है कि पौराणिक काल यात्राओं को आधुनिक समय के मानकों के अनुसार अनुभूत कर सके, अपनी अपार सम्भावनाओं से गँठजोड़ कर सके।
उत्तरी इङ्ग्लैण्ड के लीड्स नामक नगर मेंं निर्धनता के कारण 10 वर्ष से अधिक आयु की बहुत सी लड़कियाँ माहवारी के समय प्रति माह एक सप्ताह विद्यालय नहीं जातीं। विकसित देश ब्रिटेन में भी ऐसा है।
आज भारतीय जन को ‘सुरक्षा’ के प्रति सजग हो समीक्षा एवं कार्रवाई करने की आवश्यकता है। जीवनशैली, मान्यतायें, क्रियाकलाप एवं सबसे अधिक चिंतन पद्धति विषाक्तता से ग्रसित हो चुके हैं। चेतिये! समय की पुकार तीव्र है।
1235 ई.। नालंदा विश्वविद्यालय अपनी पूर्व कीर्ति और वैभव की जर्जर स्मृति-मात्र रह गया था। उसके बचे भग्नावशेषों में गया के राजा बुद्धसेन और ओदंतपुरी निवासी ब्राह्मण शिष्य जयदेव के अनुदानों से 70 शिष्यों के साथ भदंत राहुल श्रीभद्र शिक्षा दीक्षा की परम्परा को जीवित रखे हुये थे। पहले के इस्लामी तुर्क आक्रमण से बचे…
कुभा, कु +भा। जिस नदी के जल की आभा मटमैली हो, कुभा, आज की काबुल नदी। कुभा से लगे नगर काबुल की वीथियों में घूमता मैं ऋग्वैदिक ऋषियों श्यावाश्व और प्रैयमेध का स्मरण करता हूँ, समय ने इस नगर पर ध्वंस के इतने प्रहार किये हैं कि इसकी कीर्ति कुभा के जल सी मटमैली हो…
हिमाद्रेः संभूता सुललित करैः पल्लवयुता
सुपुष्पामुक्ताभिः भ्रमरकलिता चालकभरैः
कृतस्थाणुस्थाना कुचफलनता सूक्ति सरसा
रुजां हन्त्री गंत्री विलसति चिदानन्द लतिका।