सोऽहं हंसः — मुख से मन की बात न पूछो
हंस से जुड़ी रूढ़ियाँ अनगिन हैं तथा प्रत्येक रूढ़ि एक कोमल किन्तु सुदृढ़ रहस्य का प्रतीक है। और इन रूढ़ियों की यही कोमल रहस्यात्मकता इसे भारतीय साहित्य, कला, दर्शन एवं तन्त्र में एक महत्वपूर्ण अवयव के रूप में स्थापित करती है। सांस्कृतिक रूप से समृद्ध तथा भावप्रवण भारतीय चिन्तना ने जितने भी प्रतीक गढ़े हैं उनमें हंस शब्द के रहस्य का घनत्व एवं विस्तार दोनों ही सबसे अधिक है।