जिहादी मुल्क एवं बनिया देश
चूँकि युद्ध एवं विनाश एक दूसरे के पर्याय हैं, कोई भी विकसित उत्पादक समाज युद्ध नहीं चाहता, जब कि लुटेरा सदैव चाहता है जिसकी युद्ध की अपनी परिभाषा होती है — संरक्षण हेतु नहीं, लूट हेतु। जिहाद उसी प्रकार का युद्ध है।
चूँकि युद्ध एवं विनाश एक दूसरे के पर्याय हैं, कोई भी विकसित उत्पादक समाज युद्ध नहीं चाहता, जब कि लुटेरा सदैव चाहता है जिसकी युद्ध की अपनी परिभाषा होती है — संरक्षण हेतु नहीं, लूट हेतु। जिहाद उसी प्रकार का युद्ध है।
आधुनिक भारत की समस्या उसके प्रबुद्ध वर्ग के घोर पतन की है। जन सामान्य सदैव ऐसे ही रहे हैं। वांछित सुखद परिवर्तन प्रबुद्ध वर्ग की उत्कृष्टता में अभिवृद्धि से होते हैं, उनके पतन से देश का पतन होता है। प्रबुद्ध वर्ग निराशा भरा है।
स्वयं हेतु, अपने परिवार हेतु, पर्यावरण हेतु, धरती माता हेतु, नदी माता हेतु एकलप्रयोग प्लास्टिक को निश्चित रूप से अपने जीवन से दूर करें। यह आगामी पीढ़ियों के स्वास्थ्य हेतु भी बहुत ही आवश्यक है।
Ammonia significant ingredient in smog, नवीन शोधों में अमोनिया धुंध के बड़े कारणों में सामने आया है। इसे पकड़ना वैज्ञानिकों के लिए चुनौती भरा मार्ग रहा।
पाँच दिनों का पर्व समुच्चय है यह, जीवन की अर्थसिद्धि हेतु तत्पर हों, अप्रतिहत उद्योगी बनें। निश्चित नीति के साथ श्री, विजय, विभूति प्राप्ति के पथ पर अग्रसर हों।
परित्यक्त भवन में ही सही, मैंने विद्यालय खुला रखा है। कन्हैया हो या कृष्णा, पढ़ने आ सकते हैं। इस आशा के साथ कि आप का कार्यालय भी खुला हुआ है।
Original sin स्वपन देबबर्मा : एक रश्मि सबको जोड़े हुये है, विविध मत मतान्तर आदि में व्याप्त है। वह रश्मि है – मनुष्य की मौलिक अच्छाई पर चरम विश्वास।
धर्मचक्रप्रवर्तन पूर्णिमा : सहस्राब्दियों तक जिसकी अनुगूँज सम्पूर्ण विश्व में प्रतिध्वनित होनी थी, उसके श्रोता हाथ की अंगुलियों की संख्या इतने ही थे। समर्पण युक्त उत्सुकता का फलित होना भारतीय वाङ्मय की विशेषता है।
प्रत्येक वर्ष प्रतिपदा चै. शु. 1 युगादि नवसंवत्सर आता है, बैसाखी आती हैi देश में विविध नामों से नववर्ष के रूप में मनाया जाता है। लोग यह प्रश्न भी पूछते हैं कि यह क्या चक्कर है? कुछ पञ्चाङ्ग व पण्डितों को कोसने भी लगते हैं। कोई चक्कर वक्कर नहीं है बल्कि अनेक नववर्ष भारत की प्राचीनता एवं रंग बिरंगे वैविध्य के प्रमाण हैं।
मरते भाषा-शब्द : अ-कृत्रिम शिशुओं के जन्म की सम्भावनायें तो हैं ही, अ-कृत्रिम इस कारण कि वे रोबो न हो कर हाड़ मांस के मानव ही होंगे। उस समय क्या होगा? शब्द, भाषा, लिङ्ग इत्यादि के लुप्त होने, निज हस्तक्षेप एवं अवांछित उत्प्रेरण होने को ले कर आज का मनुष्य कितना सशङ्कित है! क्यों है?
इसरो ISRO : ऊर्जा बढ़ानी होगी, अंतर पाट कर ऊँची कक्षा में जाना होगा। ‘विकसित’ होता भारत स्वयं की प्रतीक्षा में है, अपने अंतरिक्षीय दूरदर्शी यंत्र की प्रतीक्षा में है कि पौराणिक काल यात्राओं को आधुनिक समय के मानकों के अनुसार अनुभूत कर सके, अपनी अपार सम्भावनाओं से गँठजोड़ कर सके।
आज भारतीय जन को ‘सुरक्षा’ के प्रति सजग हो समीक्षा एवं कार्रवाई करने की आवश्यकता है। जीवनशैली, मान्यतायें, क्रियाकलाप एवं सबसे अधिक चिंतन पद्धति विषाक्तता से ग्रसित हो चुके हैं। चेतिये! समय की पुकार तीव्र है।