पिछले कुछ वर्षों में शरद ऋतु के आगमन के साथ ही हम लोग धुंध (smog) शब्द का सूचनाओं में भी बढ़ जाना अनुभव कर रहे हैं। शीत के आगमन पर कोहरा अब अन्य कई विषयों के साथ हमारे दैनिक वार्तालाप का भाग बन जाता है एवं दिल्ली की धुन्ध बड़े स्तर पर राष्ट्रीय सञ्चार माध्यमों का प्रमुख अंग बनने लगती है।
निकट समय में ही ‘नेचर‘ पत्रिका में छपे एक नवीन शोध में पहली बार आँकड़ों और तथ्यों के साथ अमोनिया के घटक को लेकर महत्वपूर्ण संकेत दिए गए हैं। फ़्रांस और बेल्जियम के शोधकर्ताओं ने आठ वर्षों तक उपग्रहों से प्राप्त चित्रों एवं अन्य कई स्रोतों की सहायता से एक वैश्वीकृत मानचित्र बनाया जो अमोनिया के स्रोतों की उपस्थिति वाले स्थानों को चिह्नित करता है। सुनने में यह जितना सरल लगता है उतना सरल कार्य नहीं था।
अमोनिया की उपस्थिति वातावरण में पता लगाना अत्यंत जटिल कार्य रहा है क्योंकि यह कुछ ही घंटों में वायु के अन्य घटकों के साथ क्रिया कर रूप परिवर्तन कर लेती है। यह इतनी सूक्ष्म और जटिल क्रिया होती है कि वैज्ञानिकों का कहना है कि पिछले कई वर्षों से धरती पर उपस्थित उपकरणों से युक्त पर्यावरण निरीक्षण केन्द्रों की पकड़ से बाहर ही रही। इसी कारण यह एक उपेक्षित या गौण घटक रही। २००७ में एक कृत्रिम उपग्रह IASI को छोड़ा गया जिसमें दूर संवेदी प्रक्रिया के द्वारा ऐसे आँकड़े जुटाए जाने थे।
आरम्भ में वैज्ञानिक दूर संवेदी विधा से प्राप्त आँकड़ों के प्रति सशंकित थे परन्तु आठ वर्षों तक उन्होंने उपग्रह से प्राप्त चित्रों और आँकड़ों को संकलित किया। गूगल मैप व अन्य अनेक आँकड़ों को अधिकाधिक मात्रा में संग्रहीत किया गया। इन सभी आँकड़ों को संगणन एवं जटिल अल्गोरिथ्म के द्वारा प्रसंस्कृत करने पर जो तथ्य प्राप्त हुए वे उनके लिए चौंकाने वाले थे। जिस अमोनिया को अभी तक गौण समझा गया था, वह मुख्य घटक बनकर उभरी।
इससे पूर्व के वैज्ञानिक आँकड़ों में एक मुख्य समस्या यह थी कि वैश्विक स्तर पर सभी देशों से सटीक आँकड़े मिलने कठिन थे जिनमें बहुत से देश ऐसे भी थे जहाँ पर्यावरण को लेकर ठोस राष्ट्रीय नीतियाँ तक नहीं थी। जिन देशों से आँकड़े प्राप्त हो भी रहे थे उनका शोधन एवं सत्यापन भी जटिल था। कृत्रिम उपग्रह के दूर संवेदी सूचनाओं के रूप में उन्हें एक स्वतन्त्र मार्ग मिला जो अभी तक के साक्ष्य जुटाने के मार्गों पर निर्भरता कम करता था।
अब सामने आये परिणामों में अनेक नए स्थानों और स्रोतों का पता लगा है जो पूर्व में नहीं जाने गए थे। वैज्ञानिकों ने पशुधन और उर्वरक उद्योग कारखानों को अमोनिया उत्सर्जन के मुख्य स्रोतों के रूप में बताया है। मांस उद्योग के लिए बनाये पशुओं के बाड़े (livestock), उर्वरक बनाने वाले कारखाने और वहाँ से उर्वरकों का कृषि योग्य भूमि में पहुँचना अमोनिया उत्सर्जन का कारण बनता है। उर्वरकों से कई तत्व वर्षा जल, नदी आदि के द्वारा जल स्रोतों में पहुँच कर उन्हें भी प्रदूषित कर देते हैं जो कालान्तर में पानी पर शैवाल के स्तर को बढ़ाता है तथा जलीय जंतुओं के जीवन की क्षति का कारण बनता है।
मानचित्र में एक अन्य महत्वपूर्ण बात यह उद्घाटित हुई है कि भारतीय उपमहाद्वीप का गंगा का मैदानी भाग उन गहरे लाल स्थानों में आया है जहाँ अमोनिया उत्सर्जन बृहद स्तर पर पाया गया। उत्तर भारत की धुंध हो या यूरोप की, वैज्ञानिकों का मानना है कि इन परिणामों से वे लोगों और सरकारों में अमोनिया घटक को लेकर ध्यान आकर्षित कर पाएंगे जो स्यात सरकारों को इस पर नीतियाँ बनाने के लिए प्रेरित कर सके। यह अध्ययन पर्यावरण सुधार के लिए योजनाओं का निर्माण करने वाले आयोगों को उनके लक्ष्य प्राप्त करने में सहायक हो, हम ऐसी कामना ही कर सकते हैं।
चित्र स्रोत : phys.org, Credit: Martin Van Damme and Lieven Clarisse / ULB
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