भ्रष्टाचार, कुसंग और दण्ड : सनातन बोध – ८६
शोध इस बात को इंगित करते हैं कि यदि हम अन्य लोगों को भ्रष्ट आचरण करते हुए देखते हैं तो हम भी उससे प्रभावित होते हैं। हमें यह एक सामान्य प्रक्रिया लगने लगती है। उत्कोच एक संक्रामक महामारी की तरह है।
शोध इस बात को इंगित करते हैं कि यदि हम अन्य लोगों को भ्रष्ट आचरण करते हुए देखते हैं तो हम भी उससे प्रभावित होते हैं। हमें यह एक सामान्य प्रक्रिया लगने लगती है। उत्कोच एक संक्रामक महामारी की तरह है।
भारत में इतिहास को काव्य के माध्यम से जीवित रखा गया। स्वाभाविक ही है कि ऐसे में कवि कल्पनायें नर्तन करेंगी ही। कल्पना जनित पूर्ति दो प्रकार की होती है, एक वह जो तथ्य को बिना छेड़े शृङ्गार करती है, दूसरी वह जो तथ्य को भी परिस्थिति की माँग के अनुसार परिवर्तित कर देती है। दूसरी प्रवृत्ति की उदाहरण रामायण एवं महाभारत, दो आख्यानक इतिहासों, पर आधारित शताधिक रचनायें हैं जिनमें पुराण भी हैं। आख्यान का अर्थ समझ लेंगे तो बात स्पष्ट होगी। आख्यान आँखों देखी रचना होते हैं।
मूल में भी क्षेपक जोड़े गये जिनका अभिज्ञान कठिन है किन्तु असम्भव नहीं।
गले कटवाते रहना घोर तामस है! जीवन्त जाति का लक्षण नहीं। हमें किसी का गला नहीं रेतना है किंतु कोई हमारा गला न रेत जाये, इसके लिये बली बनना है, शारीरिक रूप से भी, मानसिक रूप से भी।
Distance from self अनासक्ति – Solomon’s Paradox अन्य को सुझाव देना हो तो हम भली-भाँति विचार कर देते हैं पर स्वयं के लिए वैसा नहीं कर पाते। Distance from self तो स्पष्टतः निष्काम कर्म का विशेष रूप ही है — कार्य-फल की आकांक्षा से रहित हो – सम्बंध, सामाजिक विरोध, रचनात्मकता ही क्यों, जीवन का प्रत्येक कार्य ही निष्काम हो।
बड़ा चिलचिल लगभग १० इंच का एक चञ्चल पक्षी है जो बड़ी-बड़ी घासों के बीच में ७ से १० के झुण्ड में दिखाई पड़ता है। इसके नर एवं मादा एक जैसे होते हैं। समभौमिक क्षेत्रों का पक्षी है जो पंजाब से लेकर गांगेय क्षेत्रों से होते हुए ब्रह्मपुत्र के क्षेत्र, नेपाल की आर्द्रभूमि, असम, बंगाल और ओडिशा के महानदी के नदीमुख क्षेत्र तक पाया जाता है।
Did Rama eat meat during exile
धर्षण rape कोलाहल विद्या -कृत्रिम औचित्य के चक्कर में पुरुष अपने गुणों को ही गँवा देगा तो जो महती क्षति वह स्त्रियों को अधिक कुप्रभावित करेगी। किसी भी सभ्य समाज में जननी स्वरूपा स्त्री का सम्मान व सुरक्षा बड़े आदर्श होते हैं, हमारे यहाँ भी हैं और रहेंगे किंतु यह भी सच है कि उन्हें बनाये रखने हेतु मानसिक रूप से स्वस्थ, आत्मग्लानि या आत्मघाती वितृष्णा से मुक्त धर्मनिष्ठ साहसी पुरुष परम आवश्यक हैं, तब और जब कोई समाज चहुँओर आक्रमणों को झेल रहा हो।
इन्टरनेट, वेब ब्राउज़र आदि पर घूमते हुए आपको कभी ‘स्लग (Slug)’ यूआरएल का नाम सुनाई दिया। पर्मालिंक, शोर्ट लिंक, प्रीटी पर्मालिंक (Pretty Permalink) आदि शब्द। जी हाँ आज यही जानते हैं ये क्या है?
Andropogon muricatus usira उशीर ~ तुम्हारे कल्याण के लिये कहता हूँ – जैसे खस के लिये लोग उसीर को खोदते हैं, वैसे ही तुम तृष्णा की जड़ खोदो। नळ उस धरा पर बहुलता से होने वाला तृण है जिस पर कभी बुद्ध भ्रमण करते थे। उसकी जड़ें बहुत दूर तक पहुँचती हैं। अगले अङ्क में भी तो कुछ जानना है न?
Bengal bush lark अगिन, खुले मैदानों और खेतों में पाई जाने वाली चिड़िया है। जिसे खेतों में दाना चुगते या फिर झाड़ियों पर बैठे हुए देखा जा सकता है। इसका आवास जल स्रोतों के निकट अधिक होता है। इसकी लम्बाई लगभग ६ इंच होती है। अभिज्ञान या दिखने में इसके नर और मादा एक जैसे होते हैं।
CoViD-19 और भारतीय मीडिया – मनोरोगी व क्षुद्र अनियंत्रित नागरिकों से भरी इकाई नहीं, सुव्यवस्थित समूह जो निज-हित की प्राथमिकताओं से बद्ध हो।
छोटा बसंता की आवाज बहुत मीठी होती है जिसे सुनने पर ऐसा प्रतीत होता है जैसे कोई ठठेरा अपना कार्य कर रहा हो, इसीलिए इसे ठठेरा भी कहते हैं।
Death मृत्यु से भय कैसा? इसका संज्ञान सुखी जीवन की ओर ले जाता है। इस दर्शन का अलौकिक लाभ हो न हो, मनोवैज्ञानिक लाभ तो स्पष्ट ही है।
त्र्यम्बकम् . यजामहे . सुगन्धिम् . पुष्टिवर्धनम् । उर्वारुकम्. इव. बन्धनात् . मृत्योः . मुक्षीय . मा . अमृतात् ॥ इसमें बन्धनात् एवं मृत्योर्मुक्षीय की सन्धि में प्रथम शब्द के अन्तिम ‘त्’ के पश्चात मृत्यु का म् आया है अत: संधि पश्चात त् का परिवर्तन सवर्गी अनुस्वार न् में हो कर बन्धनान् हो जायेगा।उच्चारण शुद्धि हेतु श्री सूक्त में देखें।
हमारा वेब ब्राउज़र यूआरएल के रूप में कई सूचनाएँ संलग्न करके सर्वर तक भेजता है जिससे हमें वांछित परिणाम प्राप्त हो। चलिए इसकी संरचना के बारे में कुछ जानते हैं।
Sudharma सुधर्मा सभा हरिवंश – नाधनो विद्यते तत्र क्षीणभाग्यो पि वा नर: । कृशो वा मलिनो वापि द्वारवत्याङ्कथञ्चन ॥ आप ‘हरिवंश’ हैं भी?
Maheshvara Sutra Shiva Sutra Panini पाणिनीय माहेश्वर सूत्र किसी सूत्र के एक वर्ण से आरम्भ हो आगे के किसी सूत्र के ‘इत्’ या ‘अनुबन्ध’ तक के बीच के समस्त वर्णों को संक्षिप्त रूप में दर्शाते हैं। स्पष्टत: इनमें ‘इत्’ वर्ण नहीं लिये जाते। इन्हें प्रत्याहार कहते हैं।
एक बार पुनः भाषाओं को लेकर विवाद चल पड़ा है। हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने पर कुछ क्षेत्रीय दलों, बुद्धिजीवियों द्वारा विरोध का क्रम चल पड़ा है। आने वाले २०-३० वर्षों में बहुत से कार्य जो अभी लोग बोल कर करते हैं, उन्हें कम्प्यूटर करने लगेंगे। ये कार्य सर्वप्रथम अंग्रेजी भाषा के ही होंगे इसमें भी कोई संशय नहीं है। बचे खुचे ऐसे कार्यों के लिए मूल अंग्रेजी भाषी को और अधिक प्राथमिकता मिलनी निश्चित ही है। तो हमारे लोग क्या बनेंगे? अंग्रेजी बोलने वाले वेटर?
सुपर्ण गरुड़। गरुड़ या सुपर्ण के अनेक रूप वेदों में वर्णित हैं। यह परब्रह्म का स्वरूप है जिसे अनेक अन्य नामों से भी कहते हैं।