पिछले अंक में हमने संस्कृत वर्णमाला को देखा, उससे पूर्व सरल लघु वाक्यों की रचनाओं पर कुछ उदाहरण बताये गये थे। इस लेख में सरल लेखन की वाक्य संरचना का प्रदर्श है। साथ में दिये हिंदी अनुवाद के संगत वाक्यों से तुलना कर इन दो भाषाओं के परस्पर सम्बन्ध एवं भिन्नताओं को देखा जा सकता है। उदाहरण के लिये, यह देखें कि हिंदी के वाक्यों में स्वतंत्र ‘है’ या ‘हैं’ की बहुलता है किन्तु संस्कृत में वही काम शब्द अंत में ‘ति’ के संयोग या ‘सन्ति’ जैसे प्रयोगों से लिया गया है। अनेक स्थानों पर स्वतंत्र आवश्यकता भी नहीं है, जैसे वाक्यांश ‘कुलनामः सौचिकाणां कृते उपलब्धः’ अंत में ‘अस्ति’ के प्रयोग के बिना भी पूरा अर्थ देता है।
भारतवर्षे वर्ण ‘व्यवस्था’ बहुप्रचलिता; जाति, कुल, परम्परा बोधनार्थं सर्वे प्रथमनामस्य (मुख्यनामस्य) सह कुल, परंपरा, जाति, वर्णसूचक उपनामकुलनामवा यथा ‘मिश्र’, ‘सिंह’, ‘गुप्त’ इव प्रयुज्यन्ते । एतानि कुलनामानि वस्तुतः तेषां वंशपरम्परायां उद्बोधकः यथा ‘चतुर्वेदी’ चत्वारि वेदज्ञानेन चतुर्वेदी भवति, ‘पाठकः’ पाठनात् पाठकः भवति । ‘अग्रवालाः’’ अग्रसेनस्य वंशस्थाः, ‘खन्नाः’ खन्ना ग्रामीणाः, ‘कुलकर्णी’ ग्राम प्रधानस्य सचिवाः लिपिकाः वा । सारान्शतः कुलनामाः भौगोलिक उत्स, वंश, पारम्परिककर्म इत्यादीनां बोधकः ।
बहुधा नागरी नव्य ’न्याय’ चिन्तकाः 🙂 एषा परम्परायाः उत्सअर्थञ्च ज्ञानं विना एषः हेयः इति चिन्तयन्ति । सामाजिकमाध्यमानां ते भारतवर्षस्य एषा परम्परायाः हास्य एव प्रसारयन्ति । जनाः ये ग्रामोपनगरात्वा नगरे आगच्छन्ति ते कुलनाम प्रयोगे ‘पन्थनिरपेक्ष’ चरित्र प्रदर्शनाय ‘कुमार’ इत्यादि अस्पष्ट उपनामानि तेषां नाम्ने उपयुज्यन्ति । स्त्रियाः अपि अधुना तासां नाम्ने विवाहपश्चात तासां कुलनाम सह पतीनां कुलनाम अपि योजयन्ति ।
बहुधा सामान्य जनाः शोचन्ति यत् द्वितीय नामः (वंशनामकुलनामवा) अस्माकं भारतीयसमाज मात्रे प्रचलिता । परन्तु एषः असत्यः, भारतवर्षात् बाह्येपि कुलनामाः सामान्यतया मुख्यनाम सह प्रयुक्ताः । अहं एकस्मिन् बहुराष्ट्रिय संस्थाने कार्यं करोति अतः समये-समये, मम दूरस्थ (वैदेशिक) सहकर्मिणा सह वार्तालापं करोम्यहम् । तत्र प्रतिदिनं अहं स्मिथ, जोह्न्सन, वेग्नर, वेबर, ओ’ब्रैन, क्लार्क, टेलर कुलनामानि श्रूयामि । तत्र जोह्न्सन्, ओल्सन्, हान्सेन इत्यादया जोह्नस्य पुत्र, ओल्ह्स्य पुत्र, हानस्य पुत्रः दर्शयति । स्मिथ कुलनामः बहुधा लौहकारानाम् (लौहकर्मकर्ताः), स्वर्णकारानाम् वन्शोत्पन्नाः कृते भवति । ये जनाः यान, वाहन निर्माणे संलग्नाः ‘वेग्नर’ नाम्ने प्रसिद्धाः अपरञ्च ‘वेबर’ तन्तुवाय, सौत्रिकाः सन्ति । ‘क्लार्क’ कुलनामाः सुस्पष्टं सचिवाः लिपिकाः वा एवं ‘टेलर’ कुलनामः सौचिकाणां कृते उपलब्धः । अन्यानि बहूनि उदाहरणानि यत्र-तत्र आविश्वं मिलन्ति ।
अतः सनातनी मित्राः समाज भञ्जकानाम् जाले मा पतेत । अस्माकं परम्परायाः, कुलपरंपरायाः, सान्स्कृतिक परम्परायाः पालने न किञ्चित लज्जा अनुभवेत्। लज्जां त्यक्त्वा आत्मविश्वासेन सनातनी भव ।
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हिंदी अनुवाद
श्रीमान उपाध्याय एवं मिस्टर स्मिथ
भारतवर्ष में वर्ण ‘व्यवस्था’ बहुत प्रचलित है, जाति-कुल, परम्परा बताने हेतु सभी अपने प्रथमनाम (मुख्यनाम) के साथ कुल, परम्परा, जाति, वर्ण बताने वाले उपनाम या कुलनाम प्रयोग करते हैं, यथा – ‘मिश्र’, ‘सिंह’, ‘गुप्त’ आदि । ये कुलनाम वास्तव में उनकी वंश परम्परा बताने वाले होते हैं जैसे – चारों वेदों को जानने से ‘चतुर्वेदी’ होते हैं, पढ़ाने से ‘पाठक’ । अग्रसेन के वंशज ‘अग्रवाल’, खन्ना गाँव के रहने वाले ‘खन्ना’, गाँव के प्रधान के सचिव या लिपिक ‘कुलकर्णी’ होते हैं । सारांश में कुलनाम भौगोलिक स्रोत, वंश, पारंपरिक कार्य आदि बताते हैं ।
प्रायः नगरों में रहने वाले नव्य ‘न्याय’ विचारक 🙂 इस परंपरा के स्रोत और ज्ञान के बिना इसे हीनतर मानते हैं । सोशल मीडिया पर वे भारत की इस परम्परा कि हँसी उड़ाते हैं । जो लोग गाँवों से नगरों में आते हैं, वे कुलनाम के प्रयोग में ‘पंथनिरपेक्ष’ चरित्र दिखाने के लिए ‘कुमार’ आदि अस्पष्ट दिखने वाले सहनाम अपने नामों में प्रयोग करते हैं । स्त्रियाँ भी आजकल अपने नामों में अपने कुलनाम के साथ अपने पति का कुलनाम भी लगाती हैं ।
प्रायः सामान्य लोग सोचते हैं, ये उपनाम (कुलनाम) मात्र हमारे भारतीय समाज में ही चलते हैं परन्तु ऐसा नहीं है। भारत से बाहर भी, कुलनाम सामान्य रूप से प्रथम नाम के साथ प्रयोग होते हैं । मैं एक बहुराष्ट्रीय उद्यम में कार्यरत हूँ, अतः समय-समय पर मैं अपने से दूर विदेशी सहकर्मियों के साथ बातचीत करता हूँ । वहाँ मैं प्रतिदिन स्मिथ, जोह्न्सन, वेग्नर, वेबर, ओ’ब्रैन, क्लार्क, टेलर कुलनाम सुनता हूँ । यहाँ ‘जॉनसन’ जॉन का पुत्र, ‘ओल्सन’ ओल्ह का पुत्र, ‘हानसन’ हान का पुत्र बताता है । स्मिथ उपनाम प्रायः लोहार या स्वर्णकार का कार्य करने वालों के कुल में प्रयोग होता है । जो लोग यान (वैगन), वाहन बनाने का कार्य करते थे, उनके कुलों में ‘वेग्नर’ और ‘वेबर’ उपनाम बुनकरों के कुलों में प्रचलित हैं। ‘क्लार्क’ कुलनाम सचिवों या लिपिकों के लिए और ‘टेलर’ कुलनाम सिलाईकर्मियों के कुलों के लिए प्रयुक्त होते हैं । पूरे विश्व में ऐसे उदाहरण यहाँ-वहाँ मिलते हैं ।
तो सनातनी मित्रों, समाजभञ्जकों के जाल में न पड़ें । अपनी परम्परा, कुलपरम्परा, सांस्कृतिक परम्परा के पालन में किञ्चित भी लज्जा का अनुभव न करें और लज्जा को छोड़कर आत्मविश्वास से सनातनी बनें ।