चलते चलते पोथीधर
दिल्ली के प्रगति मैदान में ‘पुस्तक मेले’ का समय है। कई लोग पुस्तकों से प्रेम करते हैं, ठीक वैसे ही जैसे किसी दूसरी सजावटी वस्तु से जैसे – गमला, पेपरवेट आदि। पुस्तकें खरीदते हैं और सजा कर प्रदर्श में रख देते हैं। पढ़ते कदापि नहीं। यही भर नहीं, अपने इस दोष का ऐसे वर्णन करते हैं जैसे कि कोई गुण हो। सम्भवत: इस सन्दर्भ में ‘ब्याज निन्दा’ या ‘ब्याज स्तुति’ जैसे शब्द कतिपय परिवर्तन या परिवर्द्धन के साथ प्रयुक्त किये जा सकते हैं।
ये संग्रही जीव अपनी पुस्तकों से उतनी ही आसक्ति रखते हैं जितनी माया ब्रह्म से। ज्ञान कोष पर ताली लगा कर रखते हैं, किसी को उपहार देना तो दूर, देखने तक नहीं देते! ऐसे कर्म के लिये अङ्ग्रेजी में एक शब्द है – tsundoku, रूप से तो लगता है कि किसी अफ्रीकी या जापानी शब्द या दोनों से मिला कर बनाया गया है। इसके रूप पर अधिक विचार न कर यह सोचा गया कि क्यों न ऐसे जन के लिये हिन्दी सोते का कोई शब्द गढ़ा जाय! लोगों से पूछा गया। कई विकल्प सुझाये गये लेकिन श्री अनुराग शर्मा जी द्वारा सुझाया गया शब्द सबसे उपयुक्त लगा:
पोथीधर
इस शब्द के दो भाग हैं: ‘पोथी’ और ‘धर’। केवल संस्कृत व्युत्पत्ति से बात नहीं बनेगी, देसज प्रयोग देखने होंगे। पोथी जो कि ‘पुस्तक’ शब्द से ही आ रही है, देसज में ऐसा अर्थ भी ले ली कि जिसे बाँध ओंध कर कहीं सुरक्षित रख दिया जाय, जरूरते नाघानी काम आ सकती है (‘जरूरते नाघानी’ भोजपुरी फ्रेज है) अर्थात इसकी संगति धराऊँ वस्तु से बैठने लगी। हुआ भी वही कि पाण्डुलिपियाँ कपड़े में बाँध कर ताख पर रख दी गयीं और पीढ़ियों तक किसी ने देखना तो दूर, धूल भी नहीं झाड़ी! वल्मीक और मूषक का आहार बन गयीं सो अलग।
धारण से ही धारणा है जो कि कभी कभी बली हो ऐसी बैठ जाती है कि छूटती नहीं जैसे कि पात्र की तली में बैठा युगों पुराना जरठा हो। ले दे के मामला कचक के पकड़े रहने से है, काम का भले न हो। धारण शब्द के सगोतियों में ‘धर’ भी है और ‘धराऊँ’ भी। तो ‘पोथीधर’ वे हुये जो पुस्तकें खरीदते तो हैं किंतु धराऊँ बना कर रखते हैं, न तो उन्हें पढ़ते हैं, न किसी को देते हैं और संग्रह भाव के मारे बस कोष का बोझ बढ़ाते रहते हैं। पकड़ कर रखने के अर्थ में तो ‘कृपण’ हैं ही!
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Author: अनुराग शर्मा
http://smartindian.com/ एक बेहतरीन किस्सागो, कवि और विचारक अनुराग शर्मा की कथाएँ पाठकों को अपनी अंतिम पंक्ति तक बांधे रहने में सक्षम है। उनकी कहानी पढ़ते हुए अक्सर पाठक को निजी संस्मरण की अनुभूति होती है। एक पूर्णतः अप्रत्याशित अंत उनके कथालेखन की विशेषता है।
उत्तरप्रदेश में जन्मे अनुराग पढ़ाई और कामकाज के सिलसिले में भारत के विभिन्न राज्यों में रहे हैं। लिखना, पढ़ना, वार्ता, और सामाजिक संवाद उनकी अभिरुचि है। साहित्य की विभिन्न विधाओं में सतत लिखने वाले अनुराग ने हिन्दी अकादमी के प्रवासी काव्य संग्रह देशांतर तथा अंतर्राष्ट्रीय काव्य संकलन एसर्बिक एंथोलोजी सहित अनेक प्रतिष्ठित प्रकाशनों में स्थान पाया है। काव्य संग्रह 'पतझड़ सावन वसंत बहार' तथा खोजपरक अध्ययन 'इण्डिया एज़ एन आईटी सुपरपॉवर' प्रकाशित हो चुके हैं। अनुरागी मन उनका ताज़ा कथा-संग्रह है। उनके तकनीकी प्रपत्र अंतरराष्ट्रीय संस्थानों में पढ़े गए हैं और प्रकाशित हुए हैं। वे सृजनगाथा और गर्भनाल पर पश्चिमी सभ्यता और संस्कृति के स्तंभकार रहे हैं। 'बांधों को तोड़ दो', 'वैरागी मन', 'प्रवासी मन', 'एन एलियन अमंग फ्लेशईटर्स' व 'सीक्रेट डायरी ऑफ एन एक्ज़ीक्यूटेड फ़्रीडम फाइटर' उनकी आगामी कृतियों के नाम हैं।
भारत से दूर रहते हुए भी 'पॉडकास्ट कवि सम्मेलन', 'शब्दों के चाक पर', 'सुनो कहानी' और 'बोलती कहानियाँ' जैसे स्वर-आकर्षणों का संचालन कर चुके अनुराग ने 'विनोबा भावे के गीता प्रवचन ' तथा प्रेमचन्द की कहानियों की ऑडियोबुक' को स्वर दिया है। उन्होने इंटरनैट पर चौबीसों घंटे चलने वाले भारतीय रेडियो स्टेशन की स्थापना भी की थी।
तिब्बत के मित्र, यूनाइटेड वे एवं निरामिष जैसे सामाजिक संगठनों से जुड़े अनुराग सन् 2005 की त्सुनामी में एक लाख डॉलर की सहायता राशि जुटाने वाली समिति के सक्रिय सदस्य थे। 'आनंद ही आनंद' संस्था द्वारा उन्हें 2015-16 का 'राष्ट्रीय भाष्य गौरव सम्मान' प्रदान किया गया था। वे महात्मा गांधी संस्थान, मॉरिशस द्वारा स्थापित प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय द्वैवार्षिक पुरस्कार 'आप्रवासी हिंदी साहित्य सृजन सम्मान' के प्रथम विजेता हैं।
आईटी प्रबंधन में स्नातकोत्तर अनुराग एक बैंकर रह चुके हैं और आजकल पिट्सबर्ग, अमेरिका में परियोजना प्रबन्धक हैं। लिंक्डइन पर उनका सूचना प्रौद्योगिकी सम्बंधी परिचय उपलब्ध है। वे हिंदी तथा अंग्रेज़ी में प्रकाशित मासिक पत्रिका सेतु के संस्थापक, प्रकाशक तथा प्रमुख सम्पादक हैं।
सम्प्रति:
रेडियो प्लेबैक इंडिया के सह संस्थापक
पिटरेडियो के संस्थापक व संचालक
सेतु पत्रिका के प्रमुख सम्पादक
निजी ब्लॉग: बर्ग वार्ता
वैबस्थल: स्मार्टइंडियन डॉट कॉम
प्रकाशित कृतियाँ:
अनुरागी मन (कथा संग्रह);
देशांतर (काव्य संकलन);
एसर्बिक ऐंथॉलॉजी (काव्य संकलन);
पतझड सावन वसंत बहार (काव्य संग्रह);
इंडिया ऐज़ ऐन आय टी सुपरपॉवर (अध्ययन);
विनोबा भावे के गीता प्रवचन की ऑडियोबुक;
सुनो कहानी;
प्रेमचन्द की कहानियों की ऑडियोबुक;
हिन्दी समय पर कहानियाँ;
तकनीक सम्बन्धी शोधपत्र तकनीकी पत्रिकाओं में;
कवितायें, कहानियाँ, साक्षात्कार, तथा आलेख अंतर्जाल पर, साहित्यिक पत्रिकाओं व हिन्दी समाचार पत्रों में प्रकाशित
पोथीधर शब्द नें मन में कई दिनों से कुलबुलाती शाब्द तलाश को मंजिल दी..अनुराग भाई का बहुत आभार..और आपका तो हइये है हमेशा…
बहुत अच्छा लगा पोथीधर की भाव भरी जानकारी ।