पिघले शरीर … नेह भर पीर पीर, देह में झील झील
गिरिजेश राव
नेह बंधन
पिघले शरीर
स्वेद कण कपूर सम
जल रहे तीर तीर।
स्वप्न आसव
भरता शृंगार
चषक अधूरी कसक
आँख भर नीर नीर।
अधर मार्दव
डँसता हुलास
आतुर सा है मदन
नेह भर पीर पीर।
साध लाघव
आया सुत्रास
कुहर खींचता समर
सिसकता चीर चीर।
नोंक पड़ती लीक पतली
घन जमा गहन वर्षण
चीर चमक तड़पी बिजली
सुख सुख सुख का कर्षण।
ढीलालिङ्गन
अंतिम चुम्बन
श्रमित शमित भर गये
देह में झील झील।
(आश्विन कृष्ण अष्टमी, 2053 वि.)
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