पहली मुलाक़ात कुछ विशेष नहीं थी। विवाह के उपरान्त विदाई के समय ठीक से निहारा था उनको। उम्र कच्ची थी। उनकी भी और मेरी भी। एक विनम्र परन्तु हठी नवयुवक की धारणा बनी। जो अन्त तक रही। कालान्तर में विभिन्न अवसर और स्थान बदले पर यह नवयुवक नहीं बदला।
एक विचित्र सी शीघ्रता रहती सदैव। जब भी मिले वापस जाने का सन्देश पहले मिल जाता था कि कल भोर में ही निकलना है। मन में एक अन्तर्द्वन्द्व चलता रहा कि यह व्यक्ति सच में व्यस्त है या बस एक जगह कहीं ठहर ही नहीं पाता। दोनों ही बातें सही निकली। अभियान्त्रिकी व्यस्तता तो थी ही वैचारिक गङ्गा का निरन्तर प्रवाह कारण बना वह द्वन्द्व उस उद्विग्नता का जिसने इस हठयोगी को कहीं भी टिकने नहीं दिया।
आधुनिक और पारम्परिक जीवन में साम्य बैठाने की जुगत ही हमारे पीढ़ी की सबसे बड़ी समस्या रही है। इससे जूझते रहे हमेशा। यद्यपि स्वयं नहीं अपना पा रहे थे परन्तु बच्चों को पूर्ण स्वतन्त्रता थी। स्वयं पर पाश्चात्य रहन सहन की छाया भी नहीं पड़ने दी। सनातन धर्म पर केवल ज्ञान देने तक ही सीमित नहीं रहे वरन अपने व्यवहारिक जीवन में इसको सम्पूर्ण अङ्गीकार भी किये।
माता-पिता से प्रेम का क्या वर्णन करें। रोगी माता पिता की सेवा-सुश्रुषा स्यात ही कहीं देखने को मिले वो भी उच्च पद पर आसीन अधिकारी द्वारा। सेवा भी ऐसी की घर-बार बाल-बच्चे सभी से विरक्त, शुद्ध भक्ति। अनुज प्रेम भी अद्वितीय। सब कुछ अनुरूप ही चल रहा था। परन्तु कुछ था जो दिख नहीं रहा था केवल आभास सा हो रहा था कि सब कुछ अनुकूल नहीं है।
समय का प्रवाह और वैचारिक गङ्गा का प्रवाह एकरूप नहीं हो पाये। विचारों का वेग प्रचण्ड हो चला था। जितना लेखों में आ पाया वह तो बहुत सूक्ष्म था। ऐसा प्रतीत होता था कि किसी ने बांध बना कर रोकने की कोशिश की है। समय पीछे हो चला अनन्त वेग के साथ समय का साम्य बिगड़ चला था। दूरी तो अनन्त होनी ही थी, सो हो गयी। इसमें समय का क्या दोष।
हमने ही तो रिश्तों का बॉध बनाकर रोकने की कोशिश की थी। फिर दोष उनको क्यों दें, जो दे सकते थे वो तो उनको दे नहीं सके। अब अश्रु और पुष्पों से ही काम चलाइये। हम तो इस बार भी रोकने का प्रयास बहुत किये पहले जैसे ही परन्तु आपको तो भोर में ही गाड़ी पकड़नी थी। अर्धरात्रि में ही घर छोड़ दिये। नये जगह की उत्सुकता मन में पहले ही जगह बना चुकी थी शायद।
यात्रा कैसी रही फिर मिलेंगे तो अवश्य पूछेंगे। घर फिर बड़ा ही लीजिएगा। उत्सुकता लगी रहेगी।