स्मृति शेष श्रद्धेय श्री गिरिजेश राव जी
सनातन कालयात्री
जी हाँ इसी नाम में वो आकर्षण था जिसने मुझे फेसबुक के आभासी संसार से तनिक आगे बढ़कर यथार्थ के धरातल पर कुछ कार्य करने के लिए प्रेरित किया था। पहले तो फेसबुक के माध्यम से ही वार्तालाप होता था लेकिन समय के साथ दूरभाष पर होने लगा।
एक बार उनका अयोध्या आगमन हुआ तो कई घण्टे बातों में ऐसे ही बीत गए की समय का ध्यान ही नहीं रहा था।
मेरे द्वारा लिए गए पक्षियों के चित्रों को वो बहुत ध्यान से देखा करते थे और उन पर टिप्पणी भी दिया करते थे। इसी क्रम में एक दिन फ़ोन किया और कहा की पूर्वाञ्चल में पाए जाने वाले पक्षियों को आप क्रमबद्ध करिए और जो-जो पक्षी यहाँ पाए जाते हैं उनके बारे में भी लोगों को जागरूक करने के लिए उनके बारे में लिखना शुरू करिए, जिससे आगामी पीढ़ी को भी पता चले की हमारे यहाँ कौन-कौन से पक्षी पाए जाते हैं। फिर इसी तरह से मघा जैसा एक धरातल दिया जहाँ “अवधी चिरैयां” श्रेणी/स्तम्भ के नाम से मेरे लेख हर अङ्क में प्रकाशित होने लगे। उनका विचार (योजना) था कि भविष्य में इन सभी पक्षियों को एक पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया जायेगा।
जुलाई २०१८ में मुझे चेन्नई प्रवास के समय उनका बहुत मार्गदर्शन मिला पक्षियों से लेकर नक्षत्रों तक सभी कुछ। प्रातः काल में उठकर समुद्र तट पर जाना उन्हें रुचिकर था। उस समय के कुछ चित्र आज मैं इस लेख के माध्यम से साझा कर रहा हूँ। क्योंकि अपने जीवनकाल में वे अपने फोटो आदि को लेकर बड़े सजग और सङ्कोची थे वे सदैव किसी भी मित्र द्वारा लिए गए उनके चित्र को प्रसारित करने हेतु स्पष्ट मना कर देते थे।
ऐसे कई मित्र हैं जो उनसे मिले और चित्र भी लिए परन्तु गिरिजेश राव अपने नाम या चित्र को कभी कहीं साझा करने की अनुमति नहीं देते थे। प्रचार-प्रसिद्धि जैसी फंतासी दुनिया से दूर ही रहना चाहते थे। मौज-मस्ती के समय भी उनके अन्तर्मन में किसी जिज्ञासा की और बना रहता था जैसे। बहार से शांत लगते परन्तु लगता था जैसे किसी भी विषय पर वार्ता हो मानस में जैसे कुछ विश्लेषण चलता रहता था उनके, विनम्र, प्रेमपूर्ण स्वभाव वाला यह व्यक्ति पता नहीं किन जिज्ञासाओं में खोया रहता परन्तु पास बैठे व्यक्ति को पता भी न चलता और उसके साथ आनंदपूर्ण वार्ता भी चलती रहती। ऐसे विचित्र स्वभाव वाले व्यक्ति कम ही मिलते हैं जीवन में।
अब उनके इस महाप्रयाण के बाद स्तब्ध हूँ। यों किसी की किसी से तुलना निरर्थक है, पर उनसे जुड़ाव और आत्मीयता के कारन ऐसा लगना स्वाभविक है, जैसे विवेकानन्द का अल्पायु में चले जाना। जैसे आदिशङ्कराचार्य का अत्यन्त अल्पायु में चले जाना। कभी-कभी लगता है जैसे ऐसे मूर्धन्य व्यक्तिव को स्यात भगवान भी कम समय के लिए ही भेजता है।