हिन्दुत्व की अच्छाइयाँ : ऐसा प्रतीत होता है कि अमेरिकी गुप्तचर संस्थायें भारतीय प्रज्ञा को स्वयं भारतीयों से भी अधिक गम्भीरता से अपनाती हैं।
Goodness of Hinduism
मारिया विर्थ
हिन्दुत्व में ऐसी अनेक अच्छाइयाँ हैं जिनका इसाइयत और इस्लाम में अभाव है, जो कि स्पष्ट भी हैं। यदि कोई इसाई या मुस्लिम समूचे विश्व में घिसी पिटी और सम्भवत: सोद्देश्य नकारात्मकता के साथ प्रस्तुत जाति और मूर्तिपूजा से जुड़ी हिन्दुत्व की छवि से ऊपर उठ सके तो उसे वे स्पष्ट हो जायेंगे। वास्तव में कोई भी निष्पक्ष द्रष्टा इस निष्कर्ष पर पहुँचेगा कि हिन्दुत्व के न केवल ऐसे बहुत से शुभ लाभकारी पहलू हैं जो अन्यों में नहीं है, अपितु उसमें उन हानिकारक पहलुओं का अभाव भी है जो दुर्भाग्य से इसाइयत और इस्लाम ने अपने मतों में समाविष्ट कर रखे हैं और जो 2000 वर्षों से इतनी त्रासदियों के कारण बने हैं।
सबसे देदीप्यमान अंतर यह है कि हिन्दुत्व उस परम सत्य के विषय में एक सच्ची खोज है, पृच्छा है जोकि हमारा वास्तविक स्वरूप है। हिन्दुत्व ऐसा कोई एक निश्चित रूढ़ मत, वाद या तंत्र नहीं जिसे ही सच माना जाय, तब भी जब कि वह निरर्थक हो और किसी के अंत:करण से सायुज्य न रखता हो।
हाँ, वेद भी हमें सत्य के बारे में बताते हैं और उनका दृढ़कथन है कि हम दैवीय हैं जोकि हमारा वास्तविक रूप है। हम सबमें ईश्वर है और ईश्वर में सब हैं। ‘मैं’ या आत्मन् सबमें अनिवार्यत: समान है जो कि ब्रह्म है। उस शुद्ध आत्मन् के साथ विचारों की संपृक्ति होने पर ऐसा लगता भर है जैसे मुझमें जो आत्मन् है वह तुम्हारे आत्मन् से भिन्न है। वे विचार आधारित आत्मायें सिनेमा के अभिनेताओं की भाँति संसार रूपी रङ्गमञ्च पर अपनी भूमिकाओं का निर्वहन करती हैं। ठीक उसी तरह जैसे कि अभिनय करते अभिनेता अपना वास्तविक रूप नहीं भूलते, हमें भी यह नहीं भूलना चाहिये कि हम ब्रह्म स्वरूप एक हैं।
किंतु क्या यह सत्य है? या क्या इस्लाम और इसाइयत यह दावा करते हुये सही हैं कि ईश्वर और हम सदा सदा के लिये भिन्न हैं और वह ईश्वर चाहता है कि हम ऐसा विश्वास रखें? क्या ऐसा दावा करते वे ठीक हैं कि यदि हम यदि ऐसा नहीं मानते तो सदा सदा के लिये नरक का दण्ड पायेंगे?
हिन्दुत्व अन्धविश्वास की चाहना नहीं रखता, वरन इस बारे में मूल्यवान युक्तियाँ प्रदान करता है कि विश्लेषण कैसे करें, किस प्रकार के प्रमाण उपलब्ध हैं और वैदिक वाङ्मय में गुरु और शिष्य, या पति और पत्नी, या पिता और पुत्र के मध्य प्रश्नोत्तर सत्र उपलब्ध हैं। उन वैज्ञानिकों के इस निष्कर्ष की भाँति कि समस्त ऊर्जा एक है, हम भी इस निष्कर्ष तक पहुँच सकते हैं कि सब कुछ परम चेतना ही है। इसके अतिरिक्त, यह दृढ़ता से कहा गया है कि इस ऐक्य का उस अवस्था में अनुभव किया जा सकता है जबकि मन स्थिर प्रशांत कर लिया गया हो, और ऐसा अनेक ऋषियों ने किया है।
आप वह नहीं जिसे दर्पण में देखते हैं। ‘आप दिक्काल से स्वतंत्र सार्वत्रिक चेतना हैं’, यह वेदों की दृष्टि है, तो भी यह विशेष उक्ति ‘You are non-local awareness independent of time and space’ सी आई ए, नासा, सैन्य गुप्तचर संस्था आदि के लिये तेईस वर्षों तक काम करने वाले रसेल टर्ग के नाम है। यह बताना रोचक होगा कि वह वीडियो वार्त्ता जिसमें कि यह उक्ति है, TEDx वार्त्ता के रूप में स्वीकृत नहीं हुई। (इसे ‘banned TEDx talk, Russell Targ’ लिख कर गुगल पर ढूँढ़ा जा सकता है)। टर्ग का दृढ़ मत है कि सम्यक प्रशिक्षण द्वारा हर कोई सुदूर संवेदी दृष्टि (प्राप्त करने) में सक्षम हो सकता है। और वह स्वयं कैसे करते हैं? इस पर टर्ग पतञ्जलि को उद्धृत करते हैं।
ऐसा प्रतीत होता है कि अमेरिकी गुप्तचर संस्थायें भारतीय प्रज्ञा को स्वयं भारतीयों से भी अधिक गम्भीरता से अपनाती हैं।
अब चूँकि यह प्राय: सच ही है कि ईश्वर हममें ही है, उसे पैठने दें। यह ज्ञान कोई छोटी वस्तु नहीं है। यह शक्ति देता है। यदि आप को अपने उस आभ्यंतर पर पूर्ण विश्वास है तो क्या ऐसा कुछ है जो आप नहीं कर सकते? नैराश्य, खिन्नता, अवसाद का कोई स्थान ही नहीं है। यह लोगों को आंतरिक रूप से बलवान ही नहीं बनाता अपितु उन्हें दयावान भी बनाता है क्योंकि वही ईश्वर निश्चित ही दूसरों में भी है।
क्या इस स्वर्णिम नियम का कि आप जो स्वयं के साथ नहीं किया जाना चाहते, उसे अन्यों के साथ न करें, पालन करने का इससे श्रेष्ठ कोई अन्य कारण हो सकता है?
और यह विशाल हृदयता पशुओं और समेकित रूप से समस्त प्रकृति को भी समेटती है। यह इसे व्याख्यायित करती है कि क्यों शाकाहारियों के बहुलांश हिन्दू हैं। यह विचित्र है कि सञ्चार माध्यम भारत में भी मांसभक्षण को सामान्य दर्शाते हैं। क्यों? क्या साधारण मानवता की भी यह अपेक्षा नहीं है कि पशुओं के जीवन का सम्मान किया जाय, आत्मरक्षा के अतिरिक्त उनका हनन न किया जाय?
वैदिक परम्परा के इन पहलुओं ने अन्य उपयोगी पहलुओं के साथ भारत का महान सभ्यता होना सुनिश्चित किया। तदपि उनके साथ एक नकारात्मक पक्ष भी रहा। भारतीय इसकी कल्पना ही नहीं कर पाये कि सर्वोच्च ईश्वर के नाम पर जो विदेशी उनकी धरती पर आये वे आक्रांता न केवल उनके साथ भेदभाव करेंगे अपितु जो खुदा की विदेशी विचारधारा से असहमत होंगे उनमें से बहुतों को मार भी देंगे।
यहाँ उन हानिकारक तत्त्वों को बताना आवश्यक है जो दुर्भाग्य से इसाइयत और इस्लाम ने अपने मजहबों में समाविष्ट कर रखे हैं जिनका कि हिन्दुत्व में अभाव है।
ये मजहब मानने वाले और न मानने वालों में भेद करते हैं और ‘मानने वाले’ बहुत संकीर्ण परास में पारिभाषित हैं : वे जो मजहब विशेष के जड़ मत या वाद में विश्वास रखते हैं, विश्वासी या दीनी हैं। इस परिभाषा में हिन्दू नहीं आते जोकि सम्भवत: सम्पूर्ण विश्व में ईश्वरीय अस्तित्व के महानतम विश्वासी हैं। ऐसा होने पर भी, हिन्दुओं ने संकट झेले और आज भी इसाई और इस्लामी, इन दो की संकीर्णताओं के कारण बहुत अधिक झेल रहे हैं जो कि अपने अपने मजहबों में अन्धविश्वास पर ही जोर देती हैं, जोकि इस पर आधारित हैं कि किसी व्यक्ति विशेष ने कथित रूप से दावा किया कि उसे एक और केवल एक सत्य व्यक्तिगत रूप से स्वयं ईश्वर ने उद्घाटित किया।
और आज भी, इक्कीसवीं शताब्दी में भी, अनेक देशों में यह संदिग्ध विश्वास ईश निन्दा सम्बन्धित विधिक प्रावधानों के सहारे बाध्यकारी है जिनमें कि मृत्युदण्ड के प्रावधान हैं।
मूल अङ्ग्रेजी आलेख का हिन्दी अनुवाद।
अनुवादक : गिरिजेश राव
Maria Wirth is a German and came to India on a stop over (that’s at least what she thought) on her way to Australia after finishing her psychology studies at Hamburg University. She visited the Ardha Kumbha Mela in Haridwar in April 1980 where she met Sri Anandamayi Ma and Devaraha Baba, two renowned saints. With their blessing she continued to live in India and never went to Australia…
She dived into India’s spiritual tradition, sharing her insights with German readers through articles and books.
For long, she was convinced that every Indian knows and treasures his great heritage. However, when in recent years, she noticed that there seemed to be a concerted effort to prevent even Indians (and the world) from knowing how valuable this ancient Indian heritage is, she started to point out the unique value of Indian tradition also in English language. As these articles are not likely to be published in mainstream magazines, she shares them on her blog.