हास्यबोध वाला व्यक्ति जो छटपटाहट से जूझ रहा है। निजी सुख हेतु नहीं, मात्र इसलिए कि अपना धर्म, राष्ट्र, संस्कृति पुनः खोये वैभव को प्राप्त हो।
सोशल मीडिया का एक नाम आभासी दुनिया भी कहा जाता है, यह पृथक बात है कि अब यह पूर्णतया आभासी नहीं रही। गिरिजेश से परिचय ब्लॉग के माध्यम से लगभग बारह वर्ष पूर्व हुआ था। सर्वप्रथम उनकी लेखन शैली से प्रभावित हुआ और धीरे-धीरे अपनी सँस्कृति, धर्म को लेकर हीनभाव की अपेक्षा गौरवभाव रखने तथा विविध विषयों पर उनकी पकड़ के कारण यह सम्बन्ध गहराया।
हम तीन बार आमने-सामने मिले, जिनमें से एक भेंट क्षणिक मात्र थी जो गिनी भी नहीं जानी चाहिए लेकिन इसलिए लिखा क्योंकि यह लेख गिरिजेश की स्मृति में है और वह तथ्यों को लेकर बहुत सतर्क रहते थे। विस्तार से लिखने का विचार था लेकिन जैसा कि एक अन्य मित्र से इस बारे में बात हुई तो उसका भी कहना था कि स्मृतियाँ निजी ही अच्छी हैं।
गिरिजेश की प्रतिभा की प्रशँसा करना आप सबकी बातों को दोहराना होगा। मुझे जिस बात ने अधिक प्रभावित किया, वह थी कि लिखने वालों को वर्तनी शुद्ध करने के लिए टोकना, कचोटना, सहायता करना और किसी भी सद्कार्य हेतु प्रेरित करने में गिरिजेश अपने स्तर से उतरकर भी उपलब्ध रहते थे।
इसके अतिरिक्त मैं किसी के हास्यबोध से बहुत प्रभावित होता रहा हूँ, हमारी ट्यूनिंग का सम्भवतः यह भी एक साझा बिन्दु था। मैं छेड़ता था, हास्य में उसे छोटे फूफा कहकर कई बार ताने मारे होंगे और वो सब समझकर भी हँस देता था। आज सोचता हूँ तो इसमें उसका औदार्य दिखता है।
इसके उपरान्त भी मैंने सदा पाया कि इतने अच्छे हास्यबोध वाला यह व्यक्ति एक छटपटाहट से जूझ रहा है। छटपटाहट, जो किसी व्यक्तिगत सुख के लिए नहीं थी अपितु इसलिए थी कि अपना धर्म, राष्ट्र, सँस्कृति पुनः अपना खोया हुआ गौरव प्राप्त कर सके। लगभग दस वर्ष पूर्व जब हम दोनों ही चालीस वर्ष की आयु के आसपास रहे होंगे, मैंने फोन करके कहा कि आप बहुत लोड ले रहे हो और मुझे आपकी चिन्ता हो रही है। हँसते हुए बताने लगा कि कितना कुछ हार्ड ड्राईव में सँजो रखा है और कितना अभी व्यवस्थित करना शेष है।
अब स्मृतियाँ शेष हैं।
तुमसे मित्रता हुई, इस बात का सदा गर्व रहेगा मित्र।
तुम्हारा ब्लॉगर मित्र
(मो सम कौन कुटिल खल कामी)