श्री गिरिजेश राव जी से मेरा परिचय आभासी था, यद्यपि मेरी हार्दिक इच्छा थी किन्तु मेरे दुर्भाग्य के कारण कभी भौतिक रूप में अथवा दूरभाष पर कभी सम्पर्क नहीं हो पाया। मुझे स्मरण नहीं है कि प्रथम जानकारी कहाँ हुई किन्तु इतना स्मरण है की फेसबुक पर भटकते हुए एक दिन यूँ मिल गए थे। ऐसे ही अकस्मात् ही एक दिन उनके ब्लॉग आलसी का चिट्ठा जा पहुंचा और ब्लॉग पढ़ते ही मन के तार उनसे जुड़ गए।
मेरी एक कमी है कि मुझे शीघ्रता से कोई भी व्यक्ति नहीं जंचता बड़ा मुंजी माने कञ्जूस स्वभाव का प्राणी हूँ। किन्तु जो मन में बैठ गया फिर वो बैठ गया। ऐसे ही गिरिजेश राव जी के सम्बन्ध में हुआ। उनकी कई फेसबुक प्रोफाइल थीं और वे बदल-बदल कर उपयोग करते थे ऐसे में उनको ढूंढना पड़ता था। पहले तो ढूँढने में कठिनाई होती थी किन्तु धीरे-धीरे उनकी शैली को पहचाने लगा।
सनातन कालयात्री हो या अप्रतिरथ ऐन्द्र हो अथवा Sanaatan Sinh उनकी प्रत्येक प्रोफाइल को फोलो करता था। फिर जब उन्होंने सनातन कालयात्री फेसबुक समूह बनाया तो सौभाग्य से उसमें जुड़ गया जहाँ उनके व्यक्तित्व को थोड़ा खुलकर जान सका। उनके व्यक्तित्व का प्रत्येक आयाम मेरा आदर्श था। ज्ञान और भाषा पर उनकी समझ और पकड़ का मैं बहुत बड़ा प्रशंसक रहा हूँ। उनके व्यक्तित्व का बड़ा प्रभाव था। हिन्दी और उसकी शुद्धता के प्रति उनके आग्रह का ही प्रभाव था कि इस बात पर मैं उनके इस आग्रह को आज्ञा मानकर यथासम्भव पालन करने लगा।
शेरो-शायरी के प्रति मुझे बड़ा लगाव था किन्तु उनके प्रभाव में अब ऐसी स्थिति है कि उर्दू शायरी से चिढ़ सी हो गयी। इससे अधिक किसी के व्यक्तित्व का और क्या प्रभाव होगा किसी पर। उनके ब्लॉग पर सर्च विकल्प में लिखा ‘ढूंढो रे’, मुझे तो जैसे इस शब्द से प्रेम सा हो गया। उनके ब्लॉग पर बहुत ढूंढ-ढूंढ कर पढ़ा। प्रभु श्रीराम के प्रति उनके मानवीय दृष्टिकोण ने मेरी भी दृष्टि परिवर्तित कर दी।
रामायण अथवा महाभारत पर उनके आख्यान मुझे बहुत आनन्द देते थे। यद्यपि पुराणों और ऋषि परम्पराओं पर उनका लिखा मुझे क्लिष्ट भाषा (जो कि मुझे लगती थी) और मेरी अल्पबुद्धि के कारण समझ नहीं आता था किन्तु फिर भी अच्छा लगता था। ज्योतिष, नक्षत्र, मन्दिरों के परिमाप जैसे विषयों पर उनका ज्ञान अद्भुत था। कालक्रम निर्धारण के विषय में उनके बुद्धि-विवेक के समक्ष मैं श्रद्धानवत हूँ।
जब भी मुझे किसी विषय पर शङ्का होती तो मैं उनको फेसबुक मेसेञ्जर पर पूछ लेता था और वे बड़े सरल स्वभाव से और बड़े प्रेम से मुझे उत्तर देते थे। कभी मुझे निराश नहीं किया। मुझे उनसे जैसे प्रेम हो गया था। मुझे आम बहुत प्रिय है एक बार उन्होंने आम खाते हुए अपना चित्र साझा किया था वह चित्र आज भी मेरे मन-मस्तिष्क में अङ्कित है। ऐसा लगा था जैसे ये तो मैं ही हूँ। जब भी आम देखता हूँ तो मुझे वह चित्र स्मरण हो जाता है। छोटी-छोटी बहुत सी स्मृतियाँ है जो रह-रह कर मुझे स्मरण होती रहती हैं।
कोविड संक्रमण काल में भी उन्होंने बहुत सी बातें, सुझाव साझा किये थे। एकबार उन्होंने फेसबुक प्रोफाइल में लिखा “हँस हँसा लो बन्धु पता नहीं कब टें बोल जाये” तो मुझे तनिक अच्छा नहीं लगा क्यूंकि मैं उन्हें खोना नहीं चाहता था। किन्तु काल ने ऐसा दिन दिखाया कि…। उनके जैसा व्यक्तित्व मैंने अपने जीवन में नहीं देखा। मेरी दृष्टि में वे पूर्ण व्यक्तित्व थे। उनका जाना मेरे लिए निजी रूप से अपूरणीय क्षति जैसा है। उनके जैसा और कोई नहीं होगा। मेरी ओर से उस पवित्र और पुण्यात्मा को सादर वन्दन, विनम्र श्रद्धाञ्जलि। ईश्वर उनके परिवार जनों के जीवन को सभी प्रकार से कष्टों से बचाए। जो खोया वह तो अकथनीय ही है। ॐ शान्ति:।
॥ श्याम सुन्दर सारस्वत, बीकानेर (राजस्थान)॥