Alexandrine Parakeet पहाड़ी हीरामन तोता। Alexandrine नाम सिकंदर के नाम पर ही पड़ा है क्योंकि उस लुटेरे आक्रांता ने अपने समय भारत से बहुत से तोतोंं को पकड़वा कर यूरोपीय देशों को भेजा था।
भारतीय तथा अन्य नाम : पहाड़ी तोता, हीरामन तोता, हिरामन सुग्गा, बड़का सुग्गा, राइ तोता, कारन तोता, परबत्ता, राज शुक, ਰਾਅ ਤੋਤਾ, ৰাজ ভাটৌ, চন্দনা, பெரிய பச்சைக்கிளி, വൻതത്ത, कर्रा सुगा (नेपाली), Alexandrine Parakeet, Alexandrine Parrot, Psittacula Eupatria
वैज्ञानिक नाम (Zoological Name) : Psittacula eupatria
Kingdom: Animalia
Phylum: Chordata
Class: Aves
Order: Psittaciformes
Family: Psittaculidae
Genus: Psittacula
Species: P. eupatria
वर्ग श्रेणी : यष्टिवासी
Category: Perching Bird
जनसङ्ख्या : ह्रासमान
Population: Decreasing
संरक्षण स्थिति : सङ्कटासन्न
Conservation Status: NT(Nearly Threatened)
वन्य जीव संरक्षण अनुसूची (अं.प्र.सं.सं) : ४
Wildlife Schedule (IUCN): IV
नीड़-काल : दिसम्बर से अप्रैल तक
Nesting Period: December to April
आकार : लगभग १९ इंच
Size: 19 in
प्रव्रजन स्थिति : अनुवासी, पर यदा-कदा स्थानीय प्रवास भी।
Migratory Status: Resident, sometimes local migration.
दृश्यता : असामान्य (अत्यल्प दृष्टिगोचर होने वाला)
Visibility: Very less
लैङ्गिक विषमरूपता : उपस्थित (नर और मादा भिन्न)
Sexual Dimorphism: Present
भोजन: अन्न, बीज, फल आदि।
Diet: Cultivated seeds, buds, fruits and nuts.
अभिज्ञान एवं रङ्ग-रूप : हीरामन तोते का अभिज्ञान उसके बृहद आकार और कर्कश स्वर से ही हो जाता है। इसका सिर बड़ा और हरित वर्ण का, गले पर पाटल(गुलाबी) पट्टिका वलय, ठुड्डी के नीचे गहन कृष्ण वर्णी पट्टिका होती है। शरीर का ऊर्ध्वभाग गहन हरित और अधोभाग तनु पीतवर्णी होते हुए हरितवर्णी होता है। चोंच गहन रक्तवर्णी, नुकीली और कान्तियुक्त होती है। नर के दोनों ओर डैनों के ऊपर एक बड़ा गहन लाल चित्ता, गले पर ऊपर की ओर पाटल पट्टिका वलय और नीचे की ओर कृष्ण पट्टिका होती है, जबकि मादा में न तो कोई चित्ता होता है और न ही गले पर कोई पट्टिका वलय।
निवास : पहाड़ी तोते को सघन वृक्षों वाले स्थान रुचिकर हैं, जहाँ ये समूह में रहते हैं। केवल प्रजनन काल में ही ये युगल रूप में समूह से कटे हुये रहते हैं। इनकी ३ प्रजातियाँ भारत में पायी जाती हैं, चौथी म्यांमार में। ये हिमालय में ४००० फीट की ऊँचाई तक पाए जाते हैं। इसलिए हिमालय के पूरे तराई क्षेत्र में अधिक पाए जाते हैं।
वितरण : हीरामन तोता भारत के अतिरिक्त पाकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश और म्यांमार में पाया जाता है।
प्रजनन काल तथा नीड़ निर्माण : इसके प्रजनन का समय दिसम्बर से आरम्भ होकर अप्रैल तक चलता है। ये वृक्षों के खोखले तनों में अधिक ऊँचाई पर छिद्र बनाकर या कभी-कभी वृक्षों की खोह में अण्डे देते हैं। कभी-कभी ऊँचे पुराने भवनों के छिद्रों में भी अण्डे दे देते हैं। अण्डों की संख्या २-५ तक हो सकती है। अण्डों का वर्ण तनु श्वेत, खुरदरा और आकार अण्डाकार होता है। नर और मादा दोनों मिलकर अण्डों को सेने से लेकर बच्चों के लालन-पालन तक का कार्य करते हैं। अण्डों का आकार लगभग १.३२ * १.०० इंच होता है।
तथ्य :
पहाड़ी या हीरामन तोतों का जो अंग्रेजी नाम Alexandrine Parakeet है, इसमें Alexandrine नाम लुटेरे आक्रांता सिकंदर के नाम पर ही पड़ा है क्योंकि उसने अपने समय भारत से बहुत से तोतो को पकड़वाकर यूरोपीय देशों को भेजा था। इनकी प्राकृतिक सुन्दरता और ध्वनि की अनुकृति करने के गुण के कारण भारत, बांग्लादेश और पाकिस्तान में बृहद स्तर पर इनको घरों में पाला जा रहा है। इस कारण इनकी संख्या में अत्यधिक ह्रास हुआ है। वनक्षेत्रों के कटने से इनके आवास और प्रजनन योग्य पेड़ों की कमी से भी यह सुन्दर पक्षी अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा है। आइये हम सब मिलकर इसको बचाएं और घरों में कोई भी तोता, मिट्ठू न पालें। इस प्रकार व्याधों द्वारा इनका पकड़ा जाना अल्प होता जायेगा और इनको पुन: वनप्रांतर में हम कलरव करते बहुलता से देख सकेंगे। हमारा आपका तोतोंं को घरों में न पालना इनके संरक्षण में बड़ा योगदान होगा।
सम्पादकीय टिप्पणी :
भारतीय लोककथाओं व विशेषकर शिव-पार्वती से जुड़े प्रकरणों में जिस शुक का उल्लेख होता है, वह यही राजशुक तोता है। हिरामन सुग्गा या हीरामन जाने कितनी लोककथाओं में नायक नायिकाओं का संगी रहा है। पौराणिक शुक-सारिका या लोक की तोता-मैना कहानियों का शुक यही है। शुक वच है तो सारिका वचा, शुक मेधावी है तो सारिका मेधाविनी।
काव्यमाला में देवी पार्वती अपने शुक से क्रीड़ा करती दर्शाई गई हैं जो चाटु-गाथा-समुच्चारण है –
सर्वविद्याविशेषात्मकं, चाटुगाथासमुच्चारणं,
कण्ठमूलोल्लसद्वर्णराजित्रयं, कोमलश्यामलोदारपक्षद्वयं,
तुण्डशोभातिदूरीभवत्किंशुकं, तं शुकं लालयन्ती परिक्रीडसे।
एक अन्य कवि कुसुमदेव लिखते हैं – शुक:श्लोकान् वक्तुं प्रभवति न काक: क्वचिदपि।
मनुष्य ध्वनि की अनुकृति करने में इनकी निपुणता पुराकाल से ही बताई जाती रही है। हर्षचरित में गौतम बुद्ध के सूत्रों का उच्चारण करने वाला शुक ‘शाक्य शासन कुशल’ बताया गया है –
त्रिसरापरै: परमोपासकै: शुकैरपि शाक्यशासनकुशलै: कोशं समुपदिशद्भि: शिक्षापदोपदेशदोषोपशमशालिनीभि: ।
पाल्य शुक दण्डी भी कहे जाते थे क्योंकि वे पिञ्जर के दण्ड को सदैव पकड़े बैठे रहते थे। इसके प्रमाण हैं कि शुक शब्द बड़े तोतों हेतु प्रयुक्त था, तथा अपने अपेक्षतया मृदु स्वर के कारण लघु जाति के तोतों हेतु कीर (कीति अव्यक्तं शब्दं ईरयति), चिरि, चिमि, चिमिक आदि प्रयुक्त थे। लोक में भी सुग्गा व तोता बड़ी जाति के लिये प्रयुक्त हैं जबकि पोपट, राधू, कीर जैसे नाम लघु जाति हेतु।
पुराण पुष्टि करते हैं –
मयूर कीर गरुड शुक सारस सङ्कुलान् (स्कन्दपुराण, वैष्णव खण्ड, वेङ्कटाचल माहात्म्य)
हंसै: कीरेषु पाण्डित्यं कुर्वाणै: सङ्कुले शुकै (पद्मपुराण, उत्तरखण्ड)
पाल्य शुक को ले कर हास्यपरक सुभाषित भी रचे गये है यथा, कान्ताम् विना सीदत:।
झुण्ड में उड़ने के कारण राजशुक शतपत्रशुक भी कहे गये हैं –
अन्यो महान् राजशुक: शतपत्रो निगद्यते। (धन्वन्तरि)
पकी हुई सस्य पर इनकी सामूहिक उड़ान आक्रमण के दृश्य को संस्कृत काव्य में चत्रित किया गया है। इस अंश में धान के खेत पर इनका धावा देखें (गुणभद्र कृत आदि पुराण से) –
यत्र शालिवनोपान्ते खात्पतन्तीं शुकावलीम् ।
शालिगोप्योऽनुमन्यन्ते दधतीं तोरणश्रियम् ॥ (४.६१)
हरे रंग के वस्त्र पहनी सुंदर कृषक छोरियाँ उन्हें भगा रही हैं –
शुकाञ्छुकच्छदच्छायै रुचिराङ्गीस्रनांशुकै: ।
छोत्कुर्वती: कलक्वाणं सोऽपश्यच्छालिगोपिका: ॥ (३५.३६)
(स्रोत – Birds in Sanskrit Literature, K N Dave)
बहुत ही ज्ञानवर्धक जानकारी है आपके प्रयास में हम सब लोगों को भी बराबर भागीदार बनना चाहिए
बहुत ही ज्ञानवर्धक जानकारी। हमारी दादी के पास भी एक पला हुआ था। दादी ने उसे बहुत सीखा पढा रखा था। लगभग 15 साल रहा धो हमारे घर।