भारतीय नाम : सिलेटी फुदकी, फुत्की, भस्म, चिकुर, कूजनी, पुरल्लिका (संस्कृत ), Ashy Prinia फुत्की
वैज्ञानिक नाम (Zoological Name) : Prinia socialis
अन्य नाम: Ashy Prinia, Ashy Wren Warbler
Kingdom: Animalia
Phylum: Chordata
Class: Aves
Order: Passeriformes
Family: Cisticolidae
Genus: Prinia
Species: Socialis
वर्ग श्रेणी : अड्डे पर बैठने वाला
Category: Perching Bird
जनसङ्ख्या : स्थिर
Population: Stable
संरक्षण स्थिति (IUCN) : सङ्कट-मुक्त
Conservation Status (IUCN): LC (Least Concern)
वन्य जीव संरक्षण अनुसूची : ४
Wildlife Shedule: IV चार
नीड़-काल : मार्च से सितम्बर तक
Nesting Period: March to September
आकार : लगभग ५ इंच
Size: 5in
प्रव्रजन स्थिति : अनुवासी पक्षी
Migratory Status: Resident
दृश्यता: सामान्य (प्राय: दृष्टिगोचर होने वाला)
Visibility: Common
लैङ्गिक द्विरूपता : समरूप
Sexes: Alike
भोजन : कीड़े-मकोड़े आदि।
Diet: Insect, Invertebrates
अभिज्ञान एवं रङ्ग-रूप : फुत्की लगभग ५ इंच का पक्षी है जिसकी २.५ इंच लम्बी पूंछ होती है। इसे झाड़ियों में या उनके आस-पास प्राय: फुदकते हुए देखा जा सकता है। इनमें नर और मादा एक जैसे होते हैं। ग्रीष्मकाल में शरीर का ऊपरी भाग गहन धूसर और अधोभाग पीलापन लिए हुए तनु भूरा हो जाता है जबकि शीतकाल में तनु धूसर रहता है। मुखमण्डल के दोनों पार्श्व भाग भी श्वेत एवं भूरे वर्ण का मिश्रण लिए होते हैं और डैने गहन भूरे होते हैं। इसकी पूँछ का रंग भी गाढ़ा भूरा होता है। नेत्रगोलक पीतवर्णी भूरे, चोंच काली और टाँगों का वर्ण किञ्चित नारंगी होता है।
निवास : फुत्की यहाँ का बारहमासी पक्षी है। इसे उपवन, वाटिकाओं, खुलेे सरेह, खेत, घास के क्षेत्र और मानव आवास के आस-पास रहना प्रिय है। जहाँ ये दिन भर इधर-उधर कीड़े-मकोड़े का आखेट करते हुए देखी जा सकती है।
वितरण : फुत्की एक चञ्चल चिड़िया है जो पूरे भारत में पाई जाती है परन्तु पर्वतीय क्षेत्र में ४००० फुट से ऊपर नहीं पायी जाती है। भारत के अतिरिक्त यह म्यांमार और श्रीलंका में भी पाई जाती है।
प्रजनन काल तथा नीड़ निर्माण : फुत्की भारत की अनुवासी चिरई है जो मार्च से सितम्बर के बीच में प्रजनन करती है। इस बीच में मादा २ बार भी अण्डे दे सकती है। ये घनी झाड़ियों के बीच में घास के कोमल तृण से अपना नीड़ बनाती हैं। यदा-कदा अनेक पत्तों को जोड़ कर भी नीड़ बना लेती हैं और पत्तियों के बाहरी भाग पर काई आदि का लेपन कर अपने नीड़ को दृढ़ कर देती है। समय आने पर मादा ३-४ अण्डे देती है। अण्डे सुन्दर, कान्तिमान, तनु या गहन वर्ण के होते हैं। अण्डों का आकार लगभग ०.६४ * ०.४७ इंच का होता है।