भारतीय नाम : थरथरकंपा, लाल गिरदी, फैरोरा, कृष्ण कपेक्षुक (संस्कृत), થરથરો, ಅದುರುಬಾಲ, വിറവാലൻ കുരുവി, थिरथिर्या, ਕਾਲਾ ਥਿਰ ਥਿਰਾ
वैज्ञानिक नाम (Zoological Name) : Phoenicurus ochruros
Kingdom: Animalia
Phylum: Chordata
Class: Aves
Order: Passeriformes
Family: Muscicapidae
Genus: Phoenicurus
Species: Ochruros
वर्ग श्रेणी : यष्टिवासी
Category: Perching Bird
जनसङ्ख्या : वर्द्धमान
Population: Increasing
संरक्षण स्थिति (IUCN) : सङ्कट-मुक्त
Conservation Status (IUCN): LC (Least Concern)
वन्य जीव संरक्षण अनुसूची : ४
Wildlife Shedule: IV
नीड़-काल : मई से अगस्त तक
Nesting Period: May to August
आकार : लगभग ६ इंच
Size: 6 in
प्रव्रजन स्थिति : प्रवासी पक्षी ( शीत ऋतुकालिक)
Migratory Status: Winter Migrant
दृश्यता : सामान्य (प्राय: दृष्टिगोचर)
Visibility: Common
लैङ्गिक द्विरूपता : द्विरूप (नर और मादा भिन्न वर्ण के होते हैं)
Sexes: Unalike
भोजन : कीड़े-मकोड़े आदि।
Diet: Insect, Invertebrates etc.
अभिज्ञान एवं रङ्ग-रूप : थरथरकंपा बहुत ही लज्जालु एवं सावधान पक्षी है जो शीत ऋतु में मैदानी क्षेत्रों में प्राय: अपनी पूँछ को कँपकँपाते देखा जा सकता है। इस कारण से ही इसे थरथरकम्पा कहा जाता है। यह पक्षी लगभग ६ इंच लम्बा होता है। नर और मादा भिन्न वर्ण के होते हैं। नर के पंख कृष्णवर्णी और उदर तथा पृष्ठ भाग कान्तियुक्त नारंगी होते हैं। पूँछ के बीच के पंखों का वर्ण भूरा होता है। मादा में शरीर का ऊर्ध्व भाग गहन भूरा, उदर और अधोभाग तनु भूरा, पूँछ में किञ्चित नारंगी वर्ण के पंखोंं के साथ भूरे वर्ण के भी पंख होते हैं। चोंच और पाँव कृष्णवर्णी होते हैं।
निवास : थरथरकंपा पक्षी सितम्बर से अप्रैल तक पूरे भारत के मैदानी क्षेत्रों में उपवन-वाटिकाओं, वनों और झाड़ियों में, जलाशयों के आसपास, मानव आवास के निकट भी कीड़े-मकोड़े पकड़ते हुए देखा जा सकता है। पेट भर जाने पर किसी वृक्ष की शाखा या पाषाण आदि पर बैठकर अपना मधुर रव करता रहता है।
वितरण : थरथरकंपा भारत के अतिरिक्त पाकिस्तान, बांग्लादेश और म्यांमार तक पाया जाता है। यह दक्षिण और मध्य यूरोप, एशिया, उत्तर-पश्चिम अफ्रीका, ईरान, मंगोलिया, आयरलैंड, मध्य चीन तथा हिमालय में ३३०० मीटर से ६००० मीटर की ऊँचाई तक प्रजनन करता देखा गया है।
प्रजनन काल तथा नीड़ निर्माण : थरथरकंपा के प्रजनन का समय मई से अगस्त तक रहता है। इस समय यह अपना नीड़ किसी ऊँचे स्थान पर, भीतों के खोखले भागों या चट्टानों के नीचे भी बनाता देखा जाता है। यह नीड़ निर्माण में तृण, मूल, कवक आदि का प्रयोग करता है और उसे भीतर से पंखों और बालों से मृदु व सुन्दर बनाता है। समय आने पर मादा ४-६ अण्डे देती है। अण्डों का वर्ण श्वेत, पीत या नीलाभ-हरित भी हो सकता है। अण्डों का आकार लगभग ०.८० *०.६० इंच का होता है।
सम्पादकीय टिप्पणी :
कपेक्षुक नाम दो अंशों से मिल कर बना है – कप्+इक्षुक । कप् एवं कम्प एक ही अर्थ देते हैं – काँपना। इक्षु ईंख है, गन्ना। यह पक्षी ईंख के खेतों में ऊँचे पौधे पर बैठा अपनी पूँछ कँपाता दिख जाता है। दवे के अनुसार धन्वंतरि के वर्णन में सम्भव है कि ‘खञ्जरी चलपिच्छक:’ अर्थात चलायमान पूँछ वाला खञ्जरी यही पक्षी हो।
इस पक्षी पर मैंने आधे दर्ज विडियो अब तक बनाये हैं ।वाकई बहुत शर्मीला है। हमेशा अपनी पूँछ हिलाता हुआ।मैं पहले इसे वैगटेल की कोई जाति समझ रहा था।