Madhuca Longifolia महुआ के फूल : Tiny Lamps लघु दीप – 22
प्रकृति माता है और माता का मातृत्त्व जब अमृत बन कर बरसता है तो उसका एक रूप महुआ के रूप में भी सामने आता है।
प्रकृति माता है और माता का मातृत्त्व जब अमृत बन कर बरसता है तो उसका एक रूप महुआ के रूप में भी सामने आता है।
देश एक दिन में नहीं कटते बँटते, सरल भी नहीं होता किन्तु यह दारुण सत्य है कि किसी देश में मूलवासियों के धर्म, संस्कृति एवं आस्था का मर्दन करने के साथ साथ आक्रामक विनाशी विचारों की बाढ़ हो तथा बहुविध सुनियोजित षड्यंत्रों, योजनाओं के साथ उदारता एवं विधि विधानों का पूर्ण लाभ लेते हुये समूह लगे रहें तो विखण्डन साध्य हो जाता है। भारत इस सत्य का बड़ा प्रमाण है।
बतुकम्मा, बोड्डेम्मा। तेलंगाना-तेलगू क्षेत्रों में दो ऐसे पर्व हैं जो पूर्णत: स्त्रियों द्वारा मनाये जाते हैं, पुरुषों का योगदान सामग्री आदि के प्रबंध तक सीमित रहता है।
आकाश में बृहस्पति एवं उसके समान पाँचेक अन्य भी हैं, किन्तु अपने विशेष पराक्रम में रुचि रखने वाला शिरमात्र शेष राहु उनसे वैर न करके परम तेजस्वी सूर्य एवं चन्द्र को ही ग्रसता है।
शीर्षक पर न जायें! काव्यगत् दृष्टि में शृंगार पक्ष अद्भुत, किन्तु अब लुप्तप्राय। जैसा कि शीर्षक स्पष्ट कर रहा है, बारह मास से ही अभिप्राय है। लोक भोजपुरी में होली के अवसर पर गाया जाने वाला विरह शृंगार गीत। साहित्यिक हिन्दी वालों के लिए विप्रलंभ शृंगार। आइये, तनि गहरे गोता मारिये न! … लगभग तेरह…
सप्ता दियो सुहाग ! प्रतिभा सक्सेना का मघा में पहला लेख है। हिन्दी भाषा में परम्परा से चले आते कुछ ऐसे शब्द हैं जिनका समय के प्रवाह एवं परिस्थितियों के चक्र में पड़ कर बहुत अर्थोपकर्ष हो चुका है। सामाजिक परिवर्तनों तथा सांस्कृतिक अवमूल्यन के कारण शब्द भी अपनी व्यञ्जना शक्ति और प्रभावशीलता खो कर…