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Subhash Kak Poetry सुभाष काक, भारत-संयुक्त राज्य अमेरिका,
विश्व के दो सबसे बड़े लोकतन्त्र
१ ६ ९ १० ११ १४ १५ १७ १८ २० २१ २२ २३ २४ |
२५ २८ हरिण स्तम्भित हुआ २९ ३१ ३८ ३९ ४१ ४२ ४३ ४४ ४५ ४६ |

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शब्द : अरुषी – भोर; छत्रक – छाते के समान कवक; नाग – जलप्रपात; कुल्या – नहर ।
पद्मश्री सम्मानित आचार्य सुभाष काक की कवितायें पढ़ना उनके बहुआयामी व्यक्तित्त्व के एक अनूठे पक्ष को उद्घाटित करता है। इन क्षणिकाओं में युग समाये हैं, शब्द संयम में जाने कितने भाष्य। लयमयी रचनाओं में जापानी हाइकू सा प्रभाव है जो प्रेक्षण एवं अनुभूतियों की सहस्र विमाओं में पसरा है।
साथ ही किसी बीते युग की वे स्मृतियाँ हैं जो कचोटती सी हैं कि हम सरलता से वञ्चित होते जा रहे हैं, धरती से कटते भी।
आचार्य काक कश्मीर से हैं तथा ये कवितायें हिन्दी में रची गयी हैं जो उनके द्विभाषा कविता संग्रह ‘Arrival and Exile’ से ली गई हैं। शब्द चयन में उनका वेदाध्ययन एवं संस्कृत ज्ञान भी भासित है, विदेशी मूल के शब्द हैं तो किंतु सहज अत्यल्प। ये कवितायें दर्शाती हैं कि संस्कृतनिष्ठ हिन्दी का प्रचार प्रसार हो तो उसे प्रान्तीय स्वीकार तो मिलेगा ही, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी उसका प्रभाव बढ़ेगा क्यों कि आज समस्त विश्व में संस्कृत सीखने की लगन बढ़ चली है।
बहुत सुन्दर ।मर्मस्पर्शी रचना ।बधाई स्वीकारें