भारतीय नाम : दर्जी, फुत्की, पिद्दी, દરજીડો (गुजराती), টিপচী (असमी), দরজি পাখি টুনটুনি (बांग्ला), ಸಿಂಪಿಗ (कन्नड़), शिंपी (मराठी), തുന്നാരൻ (मलयाळम), சாதாரண தையல்சிட்டு (तमिळ), पातसिउने फिस्टो (नेपाली)
वैज्ञानिक नाम (Zoological Name) : Orthotomus sutorius
Kingdom: Animalia
Phylum: Chordata
Class: Aves
Order: Passeriformes
Family: Cisticolidae
Genus: Orthotomus
Species: Sutorius
वर्ग श्रेणी : गाने वाली चिड़िया
Category: Song Bird
जनसङ्ख्या : स्थिर
Population: Stable
संरक्षण स्थिति (IUCN) : सङ्कट-मुक्त
Conservation Status: LC (Least Concern)
वन्य जीव संरक्षण अनुसूची : ४
Wildlife Shedule: IV
नीड़-काल : अप्रैल से सितम्बर तक।
Nesting Period: April to September
आकार : लगभग ५ इंच
Size: 5in
प्रव्रजन स्थिति : अनुवासी पक्षी
Migratory Status: Resident
दृश्यता : सामान्य (प्राय: दृष्टिगोचर होने वाला)
Visibility: Common
लैङ्गिक द्विरूपता : समरूप
Sexes: Alike
भोजन : कीड़े-मकोड़े, पराग, पुष्पक्रम आदि।
Diet: Insect, Invertebrates, Nectar, Pollen, Inflorescences etc.
अभिज्ञान एवं रङ्ग-रूप : दर्जी लगभग ५ इंच की एक छोटी सी चुलबुली चिड़िया है। इसकी पूँछ ऊपर की ओर उठी रहती है। पृष्ठ भाग हरित वर्णी, उदर श्वेत वर्णी, सिर और माथे का वर्ण ललछौंह भूरा होता है। यह पत्तियों को सिलकर अपने अनोखे नीड़ निर्माण के लिए जानी जाती है।
निवास : दर्जी यहाँ का प्रसिद्ध बारहमासी पक्षी है जो देश छोड़कर बाहर नहीं जाती है। इसे उपवन, वाटिकाओं और मैदानों की झाड़ियों में देखा जा सकता है।
वितरण : दर्जी चिरइया प्राय: पूरे भारत में पाई जाती है। मरुस्थलीय क्षेत्रों में तथा पर्वतों पर ४०००-५००० फुट से ऊपर मिलती। इसकी ५ प्रजातियाँ पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका और म्यांमार में पाई जाती हैं।
प्रजनन काल तथा नीड़ निर्माण : दर्जी भारत का निवासी पक्षी है जो अप्रैल से सितम्बर के मध्य प्रजनन करता है। बया पक्षी की भाँति इस पक्षी का नीड़ भी बहुत ही कलापूर्ण और सुन्दर होता है। नीड़ निर्माण की कला के कारण ही इस पक्षी का नाम दर्जी पड़ा है। यह अपना नीड़ किसी झाड़ी, पेड़ या लता के बीच में २ या ३ पत्तियों को सुच्चीकर (सिलाई/जोड़कर) बनाती है।
इसके लिए यह सेमल की रुई, रेशम के कोकून से निकले तन्तु, मकड़ी के जाले आदि से बनाये हुए धागे को पत्तियों में व्यवस्थित ढंग से छेद करके उनमें पिरोकर बनाती है। इन जुड़े हुए पत्तों से बने नीड़ को यह मृदु पंख और रुई आदि से सजाकर कोमल भी बनाती है। ये नीड़ धरा से ५-६ फुट की ऊँचाई तक पाए जाते हैं।
मादा एक बार में ३-४ लम्बे, नुकीले और चमकीले अण्डे देती है। अण्डों का वर्ण लालिमा लिए हुए श्वेत अथवा तनु नीलाभ भी हो सकता है, जिन पर कत्थई, काले या भूरे वर्ण की चित्तियाँ होती हैं। नर और मादा दोनों मिल कर अण्डा सेने से लेकर बच्चों का लालन-पालन तक सँभालते हैं। अण्डों का आकार लगभग ०.६४ * ०.४६ इंच का होता है।
अनमोल खजाने का एक मोती