भारतीय नाम : कलगीदार सर्प चील, डोगरा चील, शिखी नागान्तक, सुपर्णा, फर्ज बाज, तिली बाज, पन्नगारि या पन्नगाशन? (संस्कृत)
वैज्ञानिक नाम : Spilornis cheela
Kingdom: Animalia
Phylum: Chordata
Class: Aves
Order: Accipitriformes
Family: Acciptridae
Genus: Spilornis
Species: Cheela
Category: Birds of Prey
जनसँख्या : स्थिर
Population: Stable
संरक्षण स्थिति : सङ्कटमुक्त
Conservation Status: LC (Least Concern)
नीड़ निर्माण काल : दिसम्बर से मार्च तक
Nesting Period: December to March
आकार : २८ इंच
Size: 28 inch
प्रवास स्थिति : प्रवासी
Migratory Status: Resident
दृश्यता : असामान्य (बहुत कम दिखाई देने वाला)
Visibility: Very Less
लैङ्गिक द्विरूपता : अनुपस्थित (नर व मादा समरूप)
Sexes: Alike
तथ्य : यह बहुत निडर पक्षी है।
भोजन : इसका नाम सर्प चील इसी कारण है क्योंकि सर्प (विषयुक्त सम्मिलित) और सरीसृप इसके मुख्य आहार हैं। उनके अतिरिक्त मछली, छिपकली, मेंढक, टिड्डे, कीड़े-मकोड़े आदि।
Diet: As the name suggests it is a snake (including venomous) and reptile eater. Fish, Lizard, Frog, Grasshoppers, insects etc.
अभिजान एवं रंग रूप : यह बहुत निडर पक्षी है। इसकी लम्बाई लगभग २८ इंच होती है। सिर पर काले तथा श्वेत परों वाली लघु शिखा होती है, शिखी नागान्तक नाम इस कारण है। ऊपरी भाग गहरे भूरे रंग का जो हल्की बैंगनी चमक लिए होता है। कुछ परों के ऊपर वाला भाग श्वेत होता है। उड़ान के पंखो का रंग ललछौंह तथा ऊपर भूरे रंग की ३ रेखाएं होती हैं। पूूँछ का रंग काला और भूरा होता है। पूँछ के सिरे पर एक श्वेत चौड़ी पट्टी रहती है। शरीर के नीचे का रंग भूरा होता है जो गाढ़े भूरे और श्वेत रंग के गोल चिन्हों से भरा होता है। सीने पर गाढ़ी भूरी धारियाँ होती हैं। आँख की पुतली गाढ़ी पीली, चोंच गाढ़ी धूसर होती है। टाँगे मलिन पीले रंग की एवं शक्तिशाली होती हैं। टखने के ऊपर पर नहीं होते हैं।
निवास : शिखी सर्प चील घने जंगलों और अधिक पानी वाले स्थानों पर पाई जाती हैं। इन्हें हिमालय की वे घाटियाँ अधिक भाती हैं जहाँ पहाड़ी झरनों में धान की खेती होती है। इसके पंजों में प्राय: कीचड़ लगा होता है क्योंकि ये अपना भोजन धान के खेतों और झीलों से एकत्र करती है। भोजन और निवास के सन्धान में कुछ दूरी तक स्थानीय प्रवजन भी करती हैं।
वितरण : यह पक्षी हिमालय के पश्चिम से लेकर दक्षिण चीन तक पाया जाता है। हिमालय में ७००० फीट की ऊँचाई तक और राजस्थान से बंगाल तक पाया जाता है।
प्रजनन काल तथा नीड़ निर्माण : इसके युगनद्ध होने का समय दिसम्बर से मार्च तक होता है, जो कभी-कभी मई तक भी देखा गया है। यह अपना नीड़ वृक्ष के ऊपर किसी द्विशाखा पर बनाती है। नीड़ का आकार छोटा तथा चषक सदृश होता है जिसे छोटी टहनियों, हरी पत्तियोंं और घास को लगा कर बनाया जाता है। मादा मात्र १ अण्डा देती है जो सिरे पर नुकीला, खुरदरा, श्वेत-हल्का पीला होता है। अण्डे पर बैंगनी या भूरे लाल रंग की चित्तियाँ भी पाई जाती हैं। अण्डे का आकार २.७५*२.२ इंच होता है।
किशोर सर्प चील:
सम्पादकीय टिप्पणी
महाभारत में जिन्हें नागाशी की संज्ञा दी गई है, वे ये पक्षी हो सकते हैं।
सुवर्णचूडो नागाशी दारुणश्चण्डतुण्डकः । अनलश्चानिलश्चैव विशालाक्षोऽथ कुण्डली ॥
काश्यपिर्ध्वजविष्कम्भो वैनतेयोऽथ वामनः । वातवेगो दिशाचक्षुर्निमेषो निमिषस्तथा ॥ (उद्योग पर्व)
इनके अन्य नाम मालाय, सर्पान्त, सर्पारि आदि मिलते हैं।
आपके लेख जानकारी से भरपूर होते है। शायद ही कोई जानकारी छुटती हो।
धन्यवाद