ऋग्वैदिक पक्थ, एक भारतीय ‘हिन्दू पश्तून’ युवती : Tiny Lamps लघु दीप – 23
पीढ़ियाँ बीतीं, समय पहुँचा एक हिंदू पश्तून शिल्पी बत्रा तक जिसे पञ्जाबी बता कर पाला पोसा गया था। भारत आये पुरखों ने अपना अभिजान छिपा लिया था।
पीढ़ियाँ बीतीं, समय पहुँचा एक हिंदू पश्तून शिल्पी बत्रा तक जिसे पञ्जाबी बता कर पाला पोसा गया था। भारत आये पुरखों ने अपना अभिजान छिपा लिया था।
Classical Hindu Law, in its various branches is probably the most detailed system of law to be discovered. Its conception of legal liability is broad and perspicuous, and although it has generally retained the eighteen divisions of topics of litigation as described by Manu, that has not in any way stinted its growth or prevented it from embracing within its range the various aspects of juridical relations which the complexity of human affairs may usually bring about.
ऐसी सरकार चुनने हेतु मतदान करें जिस पर आगे के सुधारों हेतु आप दबाव बना सकें — श्रीरामजन्मभूमि पर भव्य मन्दिर निर्माण हेतु, भीषण गति से बढ़ती अनुत्पादक जनसंख्या पर अंकुश हेतु, कैंसर बन चुके कश्मीर को सामान्य राज्य बनाने हेतु, शैक्षिक तंत्र में आमूल चूल परिवर्तन हेतु … समस्यायें अनेक हैं, सुलझी सरकार से ही सुलझनी हैं, लॉलीपॉप दे लुभाने वाली अकर्मण्य भ्रष्ट सरकार से नहीं। सरकार अर्थात सर्वकार, मतदान सोच समझ कर करें, अवश्य करें।
अल्पशेषमिदं कार्यं दृष्टेयमसितेक्षणा देवी सीता का दर्शन तो कर लिया, अब मेरे इस कार्य का अल्प अंश शेष रह गया है। त्रीनुपायानतिक्रम्य चतुर्थ इह दृश्यते…
पश्चिमी दर्शन, फ़िल्म,साहित्य में सनातन दर्शन का संदर्भ मुख्यतया प्रायः बौद्ध दर्शन के रूप में मिलता है। सम्भवतः इसका कारण पश्चिमी अब्राहमिक धर्मों के ईश्वरदूत (prophet) के रूप में किसी एक व्यक्ति विशेष को देखने की प्रवृत्ति हो जिसे वे तथागत के रूप में देख इस दर्शन की ओर आकर्षित होते हों। परन्तु सत्य तो यह है कि बौद्ध दर्शन विस्तृत सनातन दर्शन का विरोधाभासी न होकर उस विशाल वटवृक्ष की एक विशेष शाखा ही है।
शत्रु की सामर्थ्य एवं सुदृढ़ स्थिति के योग्य प्रतिरोधी समक्ष थे, सीता सब जान लेना चाहती थीं, अपनी सेना की सामर्थ्य, सबसे पहले यह कि सेना इस पार आयेगी कैसे?
प्रतीत होता है कि सौर राशि चिह्नों को आज जैसा हम जानते हैं, उनका उद्भव भारत में हुआ जहाँ उनका सम्बन्ध नक्षत्रों के अधिष्ठाता देवताओं से है।
चार दिन का है खेला रे; को नृप होंहि हमहिं का हानी को जीते हम दीर्घ लाभ नहीं देखते। संसार के किसी भी वाङ्मय में ऐसा कुछ भी अनूठा नहीं है जो हमारे यहाँ नहीं।
जम्मू-कश्मीर के विधान को व्यवस्थित एवं कालानुक्रमिक रूप से समझने हेतु हमें वाद-विवाद से किञ्चित हटकर समस्त निम्न प्रलेखों एवं उनसे सम्बंधित राजनैतिक घटनाक्रम के विषय में जानना अपरिहार्य है।
भारत के प्रारम्भिक वर्षों में शतवर्षीय पञ्चाङ्ग का अस्तित्व था, जिसका 2700 वर्षों का चक्र होता था। इसे सप्तर्षि पञ्चाङ्ग कहा जाता था।
हमें कई असुविधाजनक प्रश्नों के समक्ष खड़े होना होगा जिनसे हम जाने अनजाने मुँह छिपा ले जाते हैं। यह भी स्पष्ट है कि हम युद्ध के लिये तत्पर नहीं हैं। हम एक थोपा हुआ युद्ध लड़ रहे हैं और अंततः विजय हमारी ही होगी। यतो धर्मस्ततो जयः।
आधुनिक भारत की समस्या उसके प्रबुद्ध वर्ग के घोर पतन की है। जन सामान्य सदैव ऐसे ही रहे हैं। वांछित सुखद परिवर्तन प्रबुद्ध वर्ग की उत्कृष्टता में अभिवृद्धि से होते हैं, उनके पतन से देश का पतन होता है। प्रबुद्ध वर्ग निराशा भरा है।
धूसर (grey) एवं श्याव (भूरा), ये दो रंग भारत में इस पक्षी के हंस से भिन्न अभिज्ञान हेतु प्रयुक्त होते रहे। हंस संस्कृत एवं भारतीय साहित्य तथा आख्यानों, पुराणों, कथाओं आदि में इस देश के मानस में गुम्फित रहा है।
Metonic Cycle Vedang Jyotish आर्य शैली या तो दस के गुणक की है या आठ की! उन्नीस की संख्या न तो हमारी दाशमिक प्रणाली से समर्थित है न अष्टक प्रणाली से!
वे सभी विचार मिथ्या सिद्ध हो जाते हैं जो कहते हैं कि भारतीय ज्योतिष मेसोपोटामिया या ग्रीस से भारत में प्रसारित हुई किसी धारा पर आधारित है। ज्योतिष के प्रसिद्ध विद्वान बी एल वान देर वैरडेन ने 1980 के एक पत्र Two treatises on Indian astronomy में इस विवाद पर अपने विचार प्रस्तुत किए ।
सरल संस्कृत पर कुछ दिनों पूर्व हमने लेखशृङ्खला आरम्भ की थी जिस पर विराम लग गया। हमने सीधे बोलने से आरम्भ किया था। सम्भवत: वर्णमाला से आरम्भ न करने के कारण यह विघ्न आया क्यों कि पहले देव आराधना तो होनी चाहिये थी। देव आराधना का क्या अर्थ है?
प्रकृति माता है और माता का मातृत्त्व जब अमृत बन कर बरसता है तो उसका एक रूप महुआ के रूप में भी सामने आता है।
मनोविज्ञान में इसे अस्थायी कटौती (temporal discounting) भी कहते हैं, दीर्घकालिक लाभ की दूरदर्शी सोच के स्थान पर अल्पकालिक क्षणिक सुख के प्रलोभन में उलझना।
यह बात सब जानते हैं कि यन्त्रों का क्रमिक विकास (Evolution) जैविक क्रमिक विकास से कहीं तीव्र है, अत: यह आशङ्का है कि मनुष्य चेतनापूर्ण मशीनों की गति से प्रतियोगिता करने में सक्षम नहीं है। इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं है कि बहुत सी वैज्ञानिक एवं तकनीकी मेधायें दृढ़ता पूर्वक कह रही हैं कि कृत्रिम प्रज्ञान (Artificial Intelligence) मानवता को विध्वंस की ओर धकेल रहा है।
देश एक दिन में नहीं कटते बँटते, सरल भी नहीं होता किन्तु यह दारुण सत्य है कि किसी देश में मूलवासियों के धर्म, संस्कृति एवं आस्था का मर्दन करने के साथ साथ आक्रामक विनाशी विचारों की बाढ़ हो तथा बहुविध सुनियोजित षड्यंत्रों, योजनाओं के साथ उदारता एवं विधि विधानों का पूर्ण लाभ लेते हुये समूह लगे रहें तो विखण्डन साध्य हो जाता है। भारत इस सत्य का बड़ा प्रमाण है।