भारतीय नाम: कर्वानक, बर्सिरी, खरमा, पाणविक(संस्कृत)
वैज्ञानिक नाम: Burhinus indicus
Kingdom: Animalia
Phylum: Chordata
Class: Aves
Order: Charadriiformes
Family: Burhinidae
Genus: Burhinus
Species: Indicus
Category: Wader Birds
जनसङ्ख्या : ह्रासमान
Population: Decreasing
संरक्षण स्थिति : सङ्कट-मुक्त
Conservation Status: LC (Least Concern)
वन्य जीव संरक्षण अनुसूची : ४
Wildlife Schedule: IV
नीड़ काल : मार्च एवं अप्रैल(भारत में ), श्रीलंका में जून से जुलाई तक
Nesting Period: March-April (India), June-July (Sri Lanka)
आकार : लगभग १५-१६ इंच
Size: 15-16 in
प्रव्रजन स्थिति : स्थानीय अनुवासी
Migratory Status: Resident
दृश्यता : असामान्य (अत्यल्प दृष्टिगोचर होने वाला)
Visibility: Very Less
लैङ्गिक द्विरूपता : समरूप
Sexes: Alike
भोजन : कीड़े मकोड़े, सरीसृप, बीज आदि।
Diet: Insectivores, Reptile, Seeds etc.
अभिज्ञान एवं रङ्ग-रूप : टिटहरी जैसा दिखने वाला कर्वानक भारत का प्रसिद्ध पक्षी है। इसका विशाल सिर, विशाल पीतवर्णी नेत्र, लम्बी, मोटी एवं पीली टांगों के कारण यह दूर से ही जाना जा सकता है। नर एवं मादा का रंग रूप एक जैसा होता है। शरीर का रंग भूरापन लिए हुए जिसपर गहन भूरे रंग की रेखाएं और चित्तियाँ, पीठ पर घनी चित्तियाँ और नीचे की ओर तनु, डैने भूरे, काले एवं श्वेत धारी युक्त, गले और नीचे का भाग श्वेताभ श्याव, चोंच की नोक काली और जड़ पर पीली। बड़ी आँखें होने के कारण यह रात में भोजन की खोज में अधिक रहता है। इसका रंग इसके परिवेश से अच्छे से मिल जाता है जिसके कारण बहुत पास तक पहुँच जाने पर भी यह दिखाई नहीं देता। दिखने पर रव करता हुआ उड़कर थोड़ी दूर पर पुनः छिप जाता है।
निवास : कर्वानक भारत का बारहमासी पक्षी है जो पूरे भारत में खुले क्षेत्र, वन-उपवन के पास, नदी के कछार, सूखे तालाब, नरकुल एवं सरपत वाले स्थानों पर पाया जाता है। यह भूमि पर रहने वाला पक्षी है जो अकेले या जोड़े में रहता है और कभी कभी ७-८ के झुण्ड में भी।
वितरण : कर्वानक चिड़िया पूरे भारत में तथा भारत के अतिरिक्त नेपाल, श्रीलंका एवं पाकिस्तान में भी पाई जाती हैं।
प्रजनन काल तथा नीड़ निर्माण : इसका प्रजनन का समय भारत में मार्च से अप्रैल तक एवं श्रीलंका में जून से जुलाई तक का होता है। यदि अन्य सभी स्थानों का संज्ञान लिया जाये तो फरवरी से सितम्बर तक स्थान के अनुसार इनका प्रजनन काल हो सकता है। इस समय मादा खुली भूमि पर ही या सरपत में अथवा किसी झाड़ी के नीचे एक छिछला गड्ढा बनाकर २-३ अण्डे देती है जिनका रंग गहन भूरा होता है जिन पर भूरी या काली चित्तियाँ होती हैं। मादा ही अण्डों को सेने का काम करती है तथा नर पास ही खड़ा रहकर उसकी रक्षा करता है। अण्डों का आकार लगभग १.९० *०१.३९ इंच का होता है।