मादा पक्षी समस्त चित्र सर्वाधिकार © आजाद सिंंह
चित्र स्थान : सरयू आर्द्र भूमि (Sarayu Wetlands सरयू वेटलैंड) माझा, अयोध्या, उत्तर प्रदेश । चित्र दिनांक : १७ मई ‘१७ एवं ३ जून ‘१८
संस्कृत नाम : रज्जुवाल एवं रज्जुदालक
हिन्दी नाम : दुग्धराज या दूधराज (दूध सी श्वेत कान्ति वाला)
अन्य नाम : Indian Paradise Flycatcher/ Common Paradise Flycatcher
शाह बुलबुल, सुल्तान बुलबुल(नर), हुसैनी बुलबुल(मादा)
वैज्ञानिक नाम : Terpsiphone paradisi
Kingdom: Animalia
Phylum: Chordata
Class: Aves
Order: Passeriformes
Genus: Terpsiphone
Species: Paradisi
Category: Perching bird
जनसङ्ख्या : स्थिर
Population: Stable
संरक्षण स्थिति : सङ्कटमुक्त
Conservation Status: LC (Least Concern)
वन्य जीव संरक्षण अनुसूची : ४
Wildlife Schedule: IV
आकार: मादा लगभग ९ इंच, नर १९ इंच (शरीर ९ इंच ,पूँछ १० इंच )
Size: Female about 9 Inch, Male 19 Inch (Body 9 Inch, Tail 10 Inch)
प्रवास स्थिति : प्रवासी
Migratory Status: Resident
दृश्यता : बहुत ही कम दिखाई पड़ने वाला
Visibility: Very less visible
लैङ्गिक द्विरूपता : द्विरूपता
Sexes: Unalike (Dimorphic)
भोजन : मक्खियाँ, कीड़े, मकोड़े, पतंगे आदि।
Diet: Flies, Insects etc.
नीड़ निर्माण काल : फ़रवरी से जुलाई तक ।
Nesting Period: February to July.
दुग्धराज या दूधराज मध्य प्रदेश का राजकीय पक्षी है।
अभिजान एवं रंग रूप : दूधराज बहुत ही सुन्दर पक्षी है। इसके प्रौढ़ नर का रंग श्वेत, सिर, गला एवं चोटी का रंग चमकीला काला होता है। ऊपरी भाग पर काली धारियाँ तथा डैने और पूँछ पर भी धारियाँ पायी जाती हैं। आँखों के ऊपर नीले रंग का गोला होता है। मादा और युवा नर के सिर, गला एवं चोटी चमकीले काले रंग के; ऊपरी भाग, पंख तथा पूँछ तीखे खैर (ROFOUS MORPH) रंग के; ठोढ़ी, गला एवं वक्ष भस्म वर्णी काले तथा चोंच एवं आँखों के किनारे चटख नीले होते हैं ।
बड़े होने पर नर दूधराज की पूँछ के दो पर पट्टी की भाँति १० इंच लम्बे हो जाते हैं जो उड़ते समय देखने में बहुत ही सुन्दर लगते हैं। युवा नर एवं मादा में विभेद कर पाना किञ्चित कठिन होता है, मादा का गला भस्मयुत काला होता है जबकि युवा नर का गला पूर्णत: काला। प्रौढ़ होने पर नर का रंग दूध जैसा पूर्ण श्वेत हो जाता है। दूधराज नाम का यही कारण है।
२०१५ से पहले इसका नाम Asian Paradise Flycatcher था परन्तु २०१५ में इसकी दो अन्य उपजातियाँ ज्ञात होने के पश्चात इसका नाम Indian Paradise Flycather हो गया।
निवास : वृक्षों पर रहने वाला यह सुन्दर पक्षी आर्द्र भूमि के हरीतिमा युक्त पर्णपाती जंगल एवं उद्यान आदि में मिलता है। यह भ्रमणशील पक्षी है जो सदैव एक शाखा से दूसरी शाखा पर घने पत्तों एवं प्रशाखाओं के बीच फुदकता रहता है जिससे इसका छायांकन दुस्तर हो जाता है।
वितरण : पूरे भारतीय प्रायदीप, बांग्लादेश, पाकिस्तान, श्रीलंका और म्यांमार में पाया जाता है। इसे हिमालय की पहाड़ियों में २००० मीटर की ऊँचाई तक देखा गया है। आहार एवं आवास के संधान में कुछ दूरी तक स्थानीय प्रवास भी दृष्टिगोचर हुआ है।
युवा नर
प्रजनन काल तथा नीड़ : इसके प्रजनन का समय स्थान के अनुसार परिवर्तनशील होता है जो उत्तर भारत में अप्रैल से जुलाई तक एवं दक्षिण भारत में फरवरी से ही आरम्भ हो जाता है। इसके नीड़ ५ फीट से लेकर ४० फीट की ऊँचाई तक सुरक्षित स्थान पर होते हैं जिनका निर्माण सूखी तृण, पत्तियों एवं मकड़ी के जालों से किया गया होता है। भीतर का भाग जले से चिकना किया हुआ होता है। समय आने पर मादा २-४ अंडे देती है, जो अंडाकार, पीताभ पाटल या धूसर पाटल रंग के होते हैं एवं उन पर लाल रंग के धब्बे होते हैं। अण्डों का आकार लगभग ०.८० *०.६० इंच होता है ।
वयस्क नर
सम्पादकीय टिप्पणी
पट्टी को संस्कृत में रज्जु भी कहते हैं एवं वाल का अर्थ पूँछ है। इसका संस्कृत नाम रज्जुवाल इन दो का युग्म है। दल शब्द का अर्थ विभक्त है (दाल के दानों से समझें)। दालक का अर्थ विभक्त होने से है जो कि एक शाखा से विभक्त हुये पूँछ के केंद्रीय दो लम्बे परों का द्योतक है। रज्जु शब्द से जुड़ कर इसका नाम रज्जुदालक हुआ।
मनुस्मृति में रज्जुवाल को अभक्ष्य श्रेणी में रखा गया है :
कलविङ्कं प्लवं हंसं चक्राह्वं ग्रामकुक्कुटम् । सारसं रज्जुवालं च दात्यूहं शुक सारिके ॥ (5.12)
याज्ञवल्क्यस्मृति में भी रज्जुदालक को अभक्ष्य बताया गया है :
कलविङ्कं सकाकोलं कुररं रज्जुदालकम्। जालपादान्खञ्जरीटानज्ञातांश्च मृगद्विजान् ॥ (1.174)
दवे के अनुसार अथर्ववेद में ‘अर्जुन’ नाम का प्रयोग दूधराज के लिये हुआ है :
यत्राश्वत्था न्यग्रोधा महारुक्मा: शिखण्डिन: । तत् परेता अप्सरसः प्रतिबुद्धा अभूतन ॥
यत्र वो ऽक्षा हरिता अर्जुना आघाटाः कर्कयः संवदन्ति । तत् परेता अप्सरसः प्रतिबुद्धा अभूतन ॥ (पै. शा.,12.7.7-8)
यह पक्षी उड़ते हुये ऐसा प्रतीत होता है मानों इससे रज्जु या रस्सी बँधी हो जिसे लिये उड़ रहा हो। ‘सृज्यत इतिरज्जु:गुणमयी’ एवं ‘रज्जु सृजति सृजय:’ से इसका नाम ‘सृजय’ भी है जिसका प्रयोग वाजसनेयी संहिता में हुआ है – शार्ग: सृजय: शयाण्डकस्ते मैत्रा: ।
रामायण में इसके लिये अर्जुनक शब्द का प्रयोग हुआ है :
समीक्षमाणः पुष्पाढ्यं सर्वतो विपुलद्रुमम् । कोयष्टिभिश्चार्जुनकैः शतपत्रैश्च कीचकैः ।
एतैश्चान्यैश्च विविधैर्नादितं तद्वनं महत् ॥ (3.7.11)अर्जुन शब्द का एक अर्थ श्वेत शुभ्र वर्ण भी होता है। इस पक्षी के श्वेत रंग के कारण यह नाम है।
पाली साहित्य में चेलकेदु नाम भी सम्भवत: इसी पक्षी के लिये है, चेल का अर्थ कटि से लटकते स्कर्ट नाम के वस्त्र से है जिसका कि इसकी लम्बी विभक्त पूँछ से साम्य माना जा सकता है। दवे इसकी साम्यता श्वेतकेतु से भी सुझाये हैं।
Thanx a lot Mam
Very nice informative article