Common Peafowl, Blue peafowl, Peacock, Peahen
हिन्दी नाम: मोर, मुरैल, मंजूर मयूर (संस्कृत)
वैज्ञानिक नाम: Pavo cristatus
Kingdom: Animalia
Phylum: Chordata
Class: Aves
Order: Galliformes
Family: Phasinidae
Genus: Pavo
Species: Cristatus
Category: Upland Ground bird
Population: Stable
Wildlife schedule: W L schedule I
आकार: नर 45 -90 इंच,मादा 35 इंच
प्रवास स्थिति: निवासी
तथ्य: यह भारत का राष्ट्रीय पक्षी है।
भोजन: अनाज के दाने, कीड़े-मकोड़े, सांप आदि।
आवास: यह नदियो, तालाबों, झीलों और नहरों के आस-पास जहाँ छोटा सा भी जंगल या बाग हो पाया जाता है तथा कभी-कभी राजस्थान के रेतीले मैदानों और ऊपरी स्थानों पर भी देखा गया है।
मोर सर्व भक्षी होते हैं तथा घास-फूस नई कोपलें, दाना बीज, कीड़े-मकोड़े, छिपकली, मेंढक तथा छोटे सांप सब कुछ खाते हैं और हमरे पर्यावरण के अभिन्न अंग हैं। दिन में खेतों में दाना चुगने के बाद ये रात को जंगलों में चले जाते हैं जहाँ ये सबसे ऊंचे पेड़ को अपना बसेरा बनाने के लिए चुनते हैं पर बसेरा अधिकतर सबसे नीची डाल को ही बनाते हैं।
वितरण: यह सम्पूर्ण भारत में पाया जाता है तथा हिमालय पर 1800 मीटर की ऊँचाई से ऊपर नहीं पाया जाता। भारत के अलावा श्रीलंका और बांग्लादेश में भी पाया जाता है।
नर/मादा: नर और मादा अलग-अलग आकार और रंग के होते हैं।
पहचान एवं रंग रूप: अपने इस बहुत ही सुन्दर राष्ट्रीय पक्षी को कौन नही पहचानता है। नर की गर्दन और सर गाढे चमकीले नीले रंग का और सर के ऊपर हरे और चमकीले नीले परों की एक कलगी रहती है। डैने के 10 पहले पंख कत्थई, कुछ पंख काले और कुछ हल्के भूरे जिन पर बिखरी हुई काली धारियां होती हैं। इसका ऊपरी भाग सिलेटी हरा जिस पर काले चिन्ह और नीचे का चमकीला हरा।
नर की पूंछ के पंख चमकीले हरे नीले और काफी लम्बे और रंगीन होते हैं। इनमे से कुछ सिरे पर जाकर गोल हो जाते हैं और उनमे गाढ़े नीले रंग के अर्ध चंद्राकर चिन्ह होते हैं। मादा चितली भूरी रहती है,जिसके सर पर नर की तरह कलगी तो जरूर होती है लेकिन नर की तरह का चमकीला रंग कहीं नहीं होता, ऊपर का रंग भूरा और नीचे का बादामी रंग लिए सफ़ेद, गर्दन का निचला हिस्सा नर की तरह हरा और ऊपरी कत्थई।
आँखे गाढ़ी भूरी, चोंच हरछौंह या सिलेटी, टाँगे सिलेटी।
जनन काल तथा घोंसला: जनवरी से अक्टूबर तक, मोर एक बहु पत्नीक पक्षी है और बहुत सी मोरनियों का पूरा रनिवास रखता है। ये मोरनियाँ उसी के आस पास रहती हैं। इनका जोड़ा बनाने का समय गर्मी के शुरू में ही आता है। जब नर अपनी नई भड़कीली पोशाक के साथ बहुत ही सुन्दर लगता है। इस समय उसकी पूंछ बहुत ही सुन्दर लगती है और रंग बहुत चटख हो जाता है। प्राय: प्रात: की चराई के पश्चात नर मोर बड़े ही सुन्दर ढंग से अपनी पूंछ को गोलाकार फैलाकर मोरनियों के सामने नाचता है और अपने पैरों को कम्पाता है जिससे मोरनियों के झुण्ड से कोई उसकी प्रेयसी बन जाती है और यह तब तक चलता है जबतक उसके रनिवास की सारी मोरनियाँ उसकी प्रेयसी नहीं बन जातींं।
मोर के घोंसले किसी झाडी के नीचे जमीन पर छिछले गड्ढे की शक्ल के होते हैं जिनमे मोरनी थोड़े घास फूस रखकर जुलाई से अगस्त तक 6-7 अंडे देती है। कभी-कभी मोर गाँव में छप्परों पर और ऊँचे पर भी अंडे देते देखे गए हैं। इनके अंडे बहुत चमकीले और आकार में 3×2.05 इंच लगभग के होते हैं। जिन में कुछ का रंग बिलकुल सफ़ेद, कुछ ललछौंह या हलके गुलाबी रंग के होते हैं लेकिन ज्यादातर बिना चित्ती के ही होते हैं।
सम्पादकीय टिप्पणी:
हिंदू मान्यताओं में मयूर को देवी सरस्वती एवं कुमार कार्तिकेय (मुरुगन) का वाहन माना गया है। उदाहरण के लिये वायु पुराण का यह श्लोक देखा जा सकता है:
प्रपच्छ कार्तिकेयं वै मयूरवरवाहनम् ।
महिषासुरनारीणां नयनाञ्जनतस्करम् ॥54.19॥
भगवान कृष्ण को मुकुट में मयूरपुच्छ लगाये हुये चित्रित किया जाता है।
लेखक: आजाद सिंह शिक्षा: जंतुविज्ञान परास्नातक, लखनऊ विश्वविद्यालय व्यवसाय: औषधि विपणन अभिरुचि: फोटोग्राफी |