Navadurga Unitary Galaxy . एकल-नवदुर्गा निहारिका Vishal Verma
मार्कण्डेय ऋषि ने ब्रह्मा जी से मनुष्यों के रक्षार्थ सबसे श्रेष्ठ कवच को जानने की जिज्ञासा की थी। उसी तारतम्य में ब्रह्मा जी ने नवदुर्गाओं के नामों के रहस्य का उद्घाटन किया:
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ॥
पञ्चमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति.महागौरीति चाष्टमम् ॥
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना ॥
‘क्रम-उल्लेख’ मूलतः विज्ञान का विधान होता है जिसका प्रतिपालन किसी भी विषय में किया जा सकता है। यदि किसी शीर्षक पर उसके समान महत्त्व के प्रकारों का वर्णन करना हो तो क्रम का उल्लेख किसी अन्य कारण से नियोजित हो सकता है।
उपर्युक्त श्लोकों पर यदि पुनः दृष्टि डालें तो तथ्य की दूसरी सबसे नियोजित प्रस्तुति नौ दुर्गाओं के ‘क्रम-निर्धारण’ में प्रतीत होती है। दुर्गा के अष्टोत्तर नामावली इत्यादि में कहीं भी क्रम का इतना महत्त्व प्रकाशन नहीं है। नौ दुर्गाओं का यह विशेष क्रम, ब्रह्मा जी द्वारा बताया गया था जो कि मार्कण्डेय ऋषि द्वारा पूछे गए एक प्रश्न के प्रत्युत्तर में था। जिज्ञासा का विषय यह है कि दुर्गा के नौ भेदों में क्रम का विशेष उल्लेख क्यों? इन श्लोकों के पश्चात नवदुर्गा जैसे गम्भीर विषय पर सम्वाद भी, बिना निरन्तरता बनाए, बड़े विचित्र रूप से सहसा समाप्त कर दिया जाता है। नौ दुर्गा के नामों का सबसे अर्थपूर्ण क्रमचय देखें।
नव दुर्गा के श्लोकों में दिए क्रम में निरंतर अनुसन्धान के पश्चात भी कोई विशेष प्रयोजन दिखाई नहींं देता। क्रम के सारे क्रमचयों पर विचार करें तो एक क्रम में प्रकृति का एक विज्ञान उद्घाटित होता है जो कि ब्रह्माण्डीय पदार्थ में गुप्त ऊर्जा के द्वारा ब्रह्माण्ड की इकाई निहारिका (galaxy) के विकास का सैद्धान्तिक विज्ञान है। चूँकि निहारिका में इकाई होने की संपूर्णता है अतः यह भीतरी उप-सृष्टियों के लिये कवच है। नवदुर्गाओं का यह पुनर्विन्यास, स्थिति के साथ-साथ काल में भी है अतएव यह परम गोपनीय है।
ऊर्जामय होने से यह आयुध धारिणी है। तन्त्रमय होने से ये पापहन्ता/दैत्यहन्ता हैं। ब्रह्माण्ड की प्रत्येक निहारिका का आधारभूत सैद्धान्तिक विज्ञान एक होने से यह सर्वव्यापक हैं। क्रमलिङ्ग की मर्यादा से यह शिव से सम्बन्धित हैं। अन्य विशेष गूढ़ रहस्यों का उद्घाटन उचित नहीं।
(इसका रेखाङ्कन मात्र, विक्रम संवत २०५३ में शीतकालीन नवरात्र पर्व के पूरे नौ दिन लेकर बना पाया था। आगामी चैत्र नवरात्र को रङ्ग भरने की अनुकूलता अनुभूत हुई। पुनः आठ दिन लेकर अष्टमी को चित्राङ्कन पूर्ण हुआ।)
नवदुर्गाओं के मूल स्वरूप और नवदुर्गाओं के पुनः विन्यसित क्रम में स्थित इस ‘अनन्य’ गूढ़ विज्ञान को ध्यानपूर्वक समझें। नवदुर्गाओं का यह चित्र यथा-प्रकृति है।
नीचे दिया गया चित्र प्रथम चित्र के सरलीकरण के उद्देश्य से है। इसमें चित्रसमृद्धि न्यूनतम रखी गयी है।
पुनः नवदुर्गा रहस्य निरन्तर है।
Featured Image Sombrero Galaxy, Credit: NASA/Hubble Heritage Team
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कृष्णस्याहऽकासवासविवरं कृष्णस्यभूषावृताम् |
राजत्कज्जलमुज्जवलाकृतिमहा मंदाकिनीं गर्भिणीं ||
विस्तारं भुजसर्पिलं सघननक्षत्रम्मालाम्बरं |
शक्तिम्मातवकान्तिभास्वरलसत्नक्षत्रताराग्रहं||
यह छंद पता नहीं, क्या सोचकर लिखा!? जो विचार मन मे रहा व्यक्त तो नहीं कर पाया कारण की संस्कृत मे सदैव से अल्पज्ञ रहा हूँ| सुधीजन वैयाकरणिक त्रुटियों के लिए क्षमा करें, !
इस छंद और आपके द्वारा वर्णित विषय मे साम्य है|
रविशंकर मिश्र !