भारतीय नाम : जंगली कौवा, वन कौवा, दग्ध काक, काला कौवा । संस्कृत – वनकाक, काकोल ।
अन्य नाम : Jungle Crow, Thick–billed Crow
वैज्ञानिक नाम: Corvus macrorhynchos
Kingdom: Animalia
Phylum: Chordata
Class: Aves
Order: Passeriformes
Family: Corvidae
Genus: Corvus
Species: Macrorhynchos
Category: Perching Birds
जनसङ्ख्या : स्थिर
Population: Stable
संरक्षण स्थिति : सङ्कट-मुक्त
Conservation Status: LC (Least Concern)
वन्य जीव संरक्षण अनुसूची : ४
Wildlife Schedule: IV
नीड़ काल : दिसम्बर से अप्रैल
Nesting Period: December – April
आकार : लगभग ११ इंच
Size: 11 in
प्रव्रजन स्थिति : अनुवासी
Migratory Status: Resident
दृश्यता : सामान्य (प्राय: दृष्टिगोचर होने वाला)
Visibility: Common
लैङ्गिक द्विरूपता : समरूप
Sexes: Alike
भोजन : सर्व-भक्षी, अर्थात यह सब कुछ खाता है, जैसे कीड़े-मकोड़े, फल, सब्जी, अनाज, अण्डे, लार्वा, मेढक, छिपकली, चिड़िया एवं मरे हुए पशु भी।
Diet: Extremely versatile in its feeding, it will take food from the ground or in trees. They feed on a wide range of items and will attempt to feed on anything appearing edible, alive or dead, plant or animal.
अभिज्ञान एवं रङ्ग-रूप : जंगली कौवा गहरे काले रंग का पक्षी है जो अपनी प्रजाति में मझोले आकार का होता है। यह डोम कौवा(Raven corvus) से छोटा और देशी कौवा ( Indian House Crow, Corvus splendens) से थोड़ा बड़ा होता है। इसकी चोंच बड़ी होती है एवंं स्वर कर्णकटु कर्कश होता है, लम्बाई लगभग १९ इंच और नर एवं मादा एक जैसे होते हैं। इसके पूरे शरीर का रंग गहरा काला होता है जिस पर नील या धूमल नीललोहित रंग की आभा होती है।
निवास : भारत का बारहमासी पक्षी। ये हिमालय के ऊँचे पहाड़ों को छोड़कर पूरे भारत में पाए जाते हैं और हर परिस्थिति में अपने को ढालकर सड़ा गला सबकुछ खाकर जीवित रहता है। यह कौवा छोटे झुण्डों में रहने वाला पक्षी है जिसे गाँँवों में प्राय: देखा जाता है पर कुछ संख्या में यह नगरों और घनी बस्ती वाले क्षेत्रों में भी दिखाई देता है। भोजन के सन्धान में प्रात:काल ये हमारे घरों के आस-पास रव करते हुए देखे जा सकते हैं। चोरी करके दूसरे पक्षियों के अण्डों बच्चों को खाना इनका स्वभाव है। इन्हें मरे हुए पशुओं को खाते हुए भी प्राय: देखा जा सकता है, इसलिए गिद्धों के पश्चात इनको प्रकृति का स्वच्छता कर्मचारी भी कहा जा सकता है।
वितरण : जैसा कि पहले भी कहा गया है, काला कौवा हमारे देश का बारहमासी पक्षी है, यह हिमालय के ऊँचे पर्वतीय क्षेत्रों को छोड़कर पूरे देश में पाया जाता है।
प्रजनन काल तथा नीड़ निर्माण : जंगली कौवा द्वारा नीड़ निर्माण का समय दिसम्बर से लेकर अप्रैल तक का होता है। इसका घोसला किसी बड़े पेड़ की लघु किंतु दृढ़ द्विशाखा पर होता है। घोसला कुरूप बना होता है पर दृढ़, गहरा और बड़ा होता है जिससे कि इसके अनेक बच्चों का पालन पोषण अच्छे से हो सके। नीड़ का भीतरी भाग मृदु तृण, केश आदि से बहुत ही सुखद बनाया जाता है। अण्डों का रंग नीलापन लिए हुए तनु श्याव होता है जिन पर गाढ़े भूरे रंग की चित्तियाँ होती हैं। कौवों के घोसलों में प्राय: कोयल चोरी से अपने अण्डे दे देती है जिससे उसके अण्डों और बच्चों का पालन पोषण कौवों को ही करना पड़ता है। अण्डों का आकार लगभग १.७०*१.२० इंच का होता है।
सम्पादकीय टिप्पणी :
Raven हों या Crow, काग सबसे चतुर पक्षी हैं, बड़े वनमानुषों जितने। इनके बारे में कहा गया है – धूर्त: पक्षिणां वायस:। ये लघु जुगाड़ कर लेते हैं, अपने परिवेश के मनुष्यों का अभिज्ञान रखते हैं तथा नव आगंतुकों से भी भेद कर लेते हैं।
संस्कृत साहित्य में कौवे अनेक कारणों से बहुचर्च्चित हैं तथा पक्षियों में कौवे के सर्वाधिक पर्यायवाची उपलब्ध हैं। कौवे हेतु रामायण व महाभारत में वायस सञ्ज्ञा बहुत प्रचलित है। भारत में इन पक्षियों के सात प्रमुख प्रकार हैं (Ref. : Birds in Sanskrit Literature, K N Dave) :
(१) पञ्जाबी एवं तिब्बती raven पूर्ण काले, जो आकार में बड़े होते हैं तथा जिन्हें वेदों में सगुन वाले कृष्णशकुन कहा गया है।
यद्यत् कृष्ण: शकुन एह गत्वा त्सरं विषक्तं बिल आससाद ।
दासी वा यदार्द्रहस्ता त्समङ्क्त अलूखलं मुसलं शुन्धतापः ॥ १७.५१.३ पैप्प.,१२.३.१३ शौनक॥
यत् ते कृष्ण: शकुन आतुतोद पिपील: सर्प उत वा श्वापद: ।
अग्निष्टद् विश्वादापृणातु विद्वान् सोमश्च यो ब्राह्मणाङ् आविवेश ॥ १८.७४.८ पैप्प., १८.३.५५ शौनक॥
साहित्य के द्रोणकाक यही हैं।
(२) श्याव गले वाले सिंधी ललछौंह काग मार्कण्डेय पुराण के रक्तद्रोण हैं।
(३) पूर्णत: काले जङ्गली काक काकोल या कृष्णकाक भी कहे गये हैं। अथर्ववेद की दो शाखाओं से इनका एक नाम ध्वाङ्क्ष भी ज्ञात होता है –
अलिक्लवा गृध्राः कङ्काः सुवर्णाः श्वापदाः पतत्रिणः ।
वयांसि शकुनयो ऽमुमामुष्यायणस्यामुष्याः पुत्रस्यादहने चरन्तु ॥ १७.२२.१० पैप्प. ॥
अलिक्लवा जाष्कमदा गृध्राः श्येनाः पतत्रिणः ।
ध्वाङ्क्षाः शकुनयस्तृप्यन्त्वमित्रेषु समीक्षयन् रदिते अर्बुदे तव ॥११.९.९ शौनक॥
(४) पूर्णत: काले व श्वेताभ चोंच वाले काग सितनीलचञ्चु काक व नशाक काक rook कहे गये हैं।
(५) सुचिक्कण नीलाभ सिर,गला, पूँछ व पङ्ख वाला कौआ crow नीलकाक कहा गया है।
(६) घरेलू कौआ ग्रामीणकाक crow ही पक्षिबलि, बलिपुष्ट काक या वायस कहा गया है। रामायण का बलिभोजन: यही है। यही पितरों को अर्पित बलि ले जाने वाला कागा है।
प्रतीत होता है कि भस्मकाक नाम उस घरेलू कौवे का हो सकता है जिसके गले व वक्ष धूसर राख की भाँति होते हैं। वायस पूर्णत: काला नहीं होता।
(७) कश्मीर से जाड़े में आने वाला कागा महाभारत का चौरिकाक Thieving Crow कहा गया है। यह पञ्चमकाक कहा गया है।
महाभारत में इसे ले कर बहुत चर्चायें हैं। यह अभक्ष्य खाने वाला, सर्वभक्षी व जूठन खाने वाला भी है –
हंस उवाच
शतमेकं च पातानां यत्प्रभाषसि वायस
नानाविधानीह पुरा तच्चानृतमिहाद्य ते
काक उवाच
उच्छिष्टदर्पितो हंस मन्येऽऽत्मानं सुपर्णवत्
अवमन्य बहूंश्चाहं काकानन्यांश्च पक्षिणः
उच्छिष्टभोजनात्काको यथा वैश्यकुले तु सः
एवं त्वमुच्छिष्टभृतो धार्तराष्ट्रैर्न संशयः
सगुनी पक्षी के रूप में अथर्वण परम्परा का पूर्ण परिपाक महाभारत में मिलता है –
प्रव्याहरन्ति क्रव्यादा गृध्रगोमायुवायसाः
देवायतनचैत्येषु प्राकाराट्टालकेषु च
…
पृष्ठतो वायसः कृष्णो याहि याहीति वाशति
मुहुर्मुहुः प्रस्फुरति दक्षिणोऽस्य भुजस्तथा
…
निर्घातवायसा नागाः शकुनाः समृगद्विजाः
रूक्षा वाचो विमोक्ष्यन्ति युगान्ते पर्युपस्थिते
…
ध्वजेषु च निलीयन्ते वायसास्तन्न शोभनम्
शकुनाश्चापसव्या नो वेदयन्ति महद्भयम्
…
इष्टा वाचः पृष्ठतो वायसानां; संप्रस्थितानां च गमिष्यतां च
ये पृष्ठतस्ते त्वरयन्ति राज;न्ये त्वग्रतस्ते प्रतिषेधयन्ति
…
संपतन्तः स्म दृश्यन्ते गोमायुबकवायसाः
श्वानश्च विविधैर्नादैर्भषन्तस्तत्र तस्थिरे
…
अनभ्रे प्रववर्ष द्यौर्मांसास्थिरुधिराण्युत
गृध्राः श्येना बडाः कङ्का वायसाश्च सहस्रशः
गोमायुबडवायसैः एवं गृध्रगोमायुवायसाः जैसे प्रयोग महाभारत में भरे पड़े हैं।
कौआ ऐसा पक्षी है जिस को मनुष्यों के समान ही वर्णों में बाँटा गया – ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र व पञ्चम। यम से व पितरों से इसके सम्बंध का सङ्केत पौराणिक क्षेपक उत्तरकाण्ड में मिलता है, जिसमें इसे धर्म से जोड़ा गया है –
इन्द्रो मयूरः संवृत्तो धर्मराजस्तु वायसः ।
कृकलासो धनाध्यक्षो हंसो वै वरुणोऽभवत् ॥
मृत्यु पश्चात प्रेतादि कर्मों के विषयों वाला गरुड पुराण पितरों की अभ्यर्थना में वायस को चाण्डाल की श्रेणी में रख कर दोनों हेतु भूमि पर बलि अन्न अर्पण करने को बताता है।
भूतपित्रमरब्रह्ममनुष्याणां महामखाः ।
देवेभ्यस्तु हुतं चाग्नौ क्षिपेद्भूतबलिं हरेत् ॥
अन्नं भूमौश्वचाण्डालवायसेभ्यश्च निः क्षिपेत् ।
अन्नं पितृमनुष्येभ्यो देयमप्यन्वहं जलम् ॥
…
तेभ्यो बलिं पुष्टिकामो ददामि मयि पुष्टिं पुष्टिपतिर्ददातु ।
ओं आचाण्डालपतिर्ददातु आचाण्डालपतितवायसेभ्यः ॥
पूर्वी उत्तरप्रदेश व बिहार में डोमाकौवा संज्ञा के मूल में यही पुराण अनुशंसा है किंतु ऐसा पूर्णत: काले काग हेतु कहा जाता है न कि धूसर गले वाले वायस हेतु। इसके विविध प्रकारों के अभिज्ञान को ले कर लोक व शास्त्र, दोनों में बड़े स्थानीय रूप व नाम संज्ञा के भेद भ्रम मिलते हैं। कालक्रम में इसके विविध प्रकारों को ले कर चेतना का लोप होता चला गया है जब कि पुरातन षड्विंश ब्राह्मण भी काक raven व वायस crow को दो प्रकार मानता है –
… खर-करभ-मन्थ-कङ्क-कपोत-उलूक-काक-गृध्र-श्येन-भास-वायस-गोमायु -संस्थान्युपरि पांसुमांसपेश्यस्थिरुधिवर्षाणि प्रवर्तन्ते …
आख्यानक परम्परा में इंद्र के पुत्र ऐंद्रि जयन्त का देवी सीता पर लोलुप प्रहार एवं दुरात्मा अश्वत्थामा द्वारा सोते हुये योद्धाओं की हत्या की प्रेरणा एक उल्लू द्वारा सहस्रो कौवों के विनाश से लेना बड़े उदाहरण हैं। पञ्चतन्त्र, महाभारत एवं पुराणों में इस पक्षी को ले कर कथायें भरी पड़ी हैं।
इस कर्कश रुक्ष स्वर वाले काले शकुनी पक्षी से प्रेम व घृणा का अद्भुत संयोग भरा लगाव भारतीय वाङ्मय की विशेषता है।
पुनश्च:
इन्हें आकर्षित करने हेतु इस आङ्ग्ल लेख 12 Tips on How to Attract Crows to Your Yard (2020) में कुछ युक्तियाँ बताई गई हैं।
Thnks for a lot of information fr ornithology!
बेहतर जानकारी देने के लिए आजाद सर और maghaa.com को धन्यवाद।
वेबसाइट एडमिन जी एक चीज ध्यान दिलाना चाहता हूँ। कि कृपया permalink कृपया सही कर लीजिए। शेयर करने में मित्र-बंधु कों हैडलाइन पता ही नही चलता है।
आपका
माधव कुमार
visitones.com
madhavmtm@gmail.com