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प्रकृति माता है और माता का मातृत्त्व जब अमृत बन कर बरसता है तो उसका एक रूप महुआ के रूप में भी सामने आता है।
Madhuca longifolia महुआ के फूल : Gypsypkd [CC BY-SA 3.0 (https://creativecommons.org/licenses/by-sa/3.0) or GFDL (http://www.gnu.org/copyleft/fdl.html)], from Wikimedia Commons
कहते हैं कि कल्पवृक्ष सभी इच्छाओं की पूर्ति करनेवाला होता है और इस अर्थ मे देखें तो महुआ यदि कल्पवृक्ष नहीं है तो कल्पवृक्ष से सूत भर भी कम नहीं है।
भारतीय वाङ्मय में, विशेषतः भोजपुरी वाङ्मय में महुआ का उल्लेख प्रचुरता से मिलता है। एक विरहिणी की व्यथा कुछ इस प्रकार भी अभिव्यक्त होती है –
महुआ चुयेला भिनसार हो, रैना चुये नैना…
तो वहीं एक मानिनी प्रणयिनी का प्रणय निवेदन कुछ इस प्रकार से अभिव्यक्त होता है –
अरे अमवा महुववा के झूमे डलियां,
तनि ताऽऽकऽऽ ना बलमुआ हमार ओरिया
महुआ का वृक्ष लगभग पचीस वर्षों में फल देने लगता है और इसकी आयु शताधिक वर्षों की होती है। भोजपुरी में एक कहावत है कि –
पाञ्चे आम, पचीसे महुआ आ तीस बरीस पर इमली के फहुआ
महुआ एक ऐसा वृक्ष है जिसका फल, फूल, बीज, लकडी और जड़ सभी उपयोगी होते हैं।
पारम्परिक रूप से महुआ हमारे भोजन का एक अङ्ग रहा है। चाहें वो महुआ का पुआ और मीठी पुड़ी हो, लपसी हो, बरिया हो, महुआ-दाल हो, सुखाकर भूना हुआ महुआ हो, लाठा अथवा लाटा हो, लड्डू हो या उसका अचार हो। स्थान भेद के कारण महुआ से बने खाद्य पदार्थों के नाम और उनकी विधियों में भेद हो सकता है। आधुनिकता के दौड में फँसे हम आज भले हीं “ब्रेड-सैण्डविच” से अपने दिन का आरम्भ करें पर महुआ से बने खाद्य पदार्थों से “खराई मारने” का आनन्द हीं कुछ और है तथा पौष्टिकता भी प्रचुर मात्रा में मिलती है। जरा महुआ में पौष्टिकता के प्रचुरता की एक झलक तो देखिये –
महुआ के औषधीय गुण भी अल्प नहीं हैं। चोट और पाचन के लिए महुआ रामबाण औषधि है। कैसा भी व्रण (फोड़ा, वैसे ‘व्रण’ से फोड़ा बनने की यात्रा भी कम रोचक नहीं है, पर उसपर फिर कभी…) हो, उसपर गुनगुने गर्म महुआ के तेल का लेप लगाने से कुछ समय में ठीक हो जाता है। प्रातःकाल का ताजा महुआ पाचन में लाभदायक होता है। महुआ शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को भी बढाता है। महुआ दूध में उबाल कर पीने से कमजोरी दूर होती है व शरीर में स्फूर्ति बनी रहती है।
महुआ के वृक्ष का आर्थिक योगदान भी कम महत्त्वपूर्ण नहीं है आज के इस आर्थिक युग में। सामान्यतः महुआ का एक वृक्ष एक वर्ष में औसतन दस से पन्द्रह हजार तक की आय दे देता है और अपनी आयु पूर्ण होने तक चार पीढियों की सेवा करता है।
महुआ वसन्त ऋतु का फल है और इसके फूल बीस पच्चीस दिनों तक टपकते रहते हैं। यह बहुत दिनों तक रहता है और बिगडता नहीं है। जब महुये का फूल गिरना बन्द हो जाता है तब उसका फल इकट्ठा किया जाता है जिसे ‘कोइन’ अथवा ‘टोडी’ कहते हैं। कोइन के मांसल गूदे को हटाने के बाद इसका बीज मिलता है जिसको फोड़ कर गिरी निकाला जाता है। इन सूखी हुई गिरियों को कोल्हू में पेर कर महुआ का तेल निकाला जाता है।
और हँ, सनद रहे कि महुआ का यह सब उपयोग और ज्ञान, हमें परम्परा से मिला है, पीढी दर पीढी। आधुनिक विज्ञान का इसमें योगदान न के समान है।
महुआ के घटते महत्त्व और बढ़ती दुर्दशा से प्रभावित होकर कृषि विज्ञान केन्द्र, बिरसा कृषि विश्वविद्यालय राँची के एक शोधदल ने महुआ के फूलों में मूल्य संवर्धन (Value Addition) का एक प्रयोग किया जिससे प्राप्त परिणाम चौंकाने वाले रहे।
सर्वप्रथम वैज्ञानिकों और शोधार्थियों के दल ने मूल्य संवर्धन का परिणाम जानने हेतु तीन विधियों का चुनाव किया :
१. परम्परागत विधि, जो आजतक किसान अपनाते आये हैं।
२. महुआ के फूलों से मूल्य संवर्धन द्वारा अचार बनाना।
३. महुआ के फूलों से मूल्य संवर्धन द्वारा लड्डू बनाना।
तकनीक मूल्यांकन, इसका शोधन तथा इनदोनों का परीक्षण झारखंड के जामताड़ा जिला मे किया गया जहाँ सर्वप्रथम २० गाँव चुने गये जहाँ महुआ प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। फिर उन किसानों तथा स्त्रियों को महुआ से लड्डू और अचार बनाने की विधि सिखाई गई।
मूल्य संवर्धन के चरण :
१. महुआ के फूलों का स्वास्थ्यकर सङ्ग्रह।
२. महुआ के फूलों का पूर्व प्रसंस्करण उपचार।
३. संवेदी मूल्यांकन।
४. शेल्फ जीवन।
५. परिणाम और विवेचना।
स्थापित विधि से महुआ का सङ्ग्रह उतना स्वच्छ और स्वास्थ्यकर नहीं होता है क्योंकि इसमें महुआ पहले धरातल पर गिरता है तब उसे झाड़ू से बुहार कर सङ्ग्रहित किया जाता है। इसके स्थान पर वृक्ष और धरा के बीच में एक जाल लगाया गया जिससे कि महुआ का फूल धरती पर न गिरकर जाल मेंही सङ्ग्रहित हो जाय।
पूर्व प्रसंस्करण उपचारों में इन फूलों को अच्छी तरह से धोना, परिरक्षकों से साफ करना और उन्हें छाया मे सुखाना भी सम्मिलित है।
संवेदी मूल्यांकन तथा ऑर्गेनोलेप्टिक स्वीकार्यता की जाँच एक ५ अङ्कीय मापक जिसमें स्वाद (Taste), दिखावट (Appearance), रङ्ग (color), स्वाद (Flavor) और स्वीकार्यता(acceptance) सम्मिलित हैं, पर की गई।
परिणाम और विवेचना
परिणामों के विवेचना से यह पता चलता है कि लड्डू और अचार दोनों किसानों तथा स्त्रियों द्वारा बहुत अधिक रुचिकर पाये गये। तथा दोनों खाद्यपदार्थों मे पोषक तत्त्व भी भरपूर मात्रा मे उपस्थित हैं। यह भी पाया गया कि अचार का शेल्फ जीवन लड्डू के अपेक्षा अधिक है। लड्डू का स्वाद ओर रङ्ग सप्ताहों तक वैसा ही बना रहता है और फिर धीरे धीरे बिगड़ने लगता है जोकि स्यात् घी तथा अन्य तत्त्वों की उपस्थिति के कारण होता है।
लड्डू बच्चों के स्वास्थ्य के लिए बहुत ही अच्छा है तथा उन्हें कुपोषण से बचाता है।
इस प्रयोग से कई अन्य परिणाम तथा महुआ के फूलों के कई अन्य उपयोग भी सामने आये, यथा –
१. किसानों और आदिवासियों का महुआ से केवल मद्य बनाने पर निर्भरता की समाप्ति।
२. आदिवासी बच्चों मे कुपोषण की समाप्ति।
३. यह (महुआ के फूल) भविष्य मे खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के लिए कच्चा माल का भी कार्य कर सकता है।
४. आर्थिक सम्पन्नता उनके जीवन स्तर में अपेक्षित सुधार ला सकती है।
वर्त्तमान समय में महुआ मादकता का एक पर्याय बन चुका है। अपनी जड़ों से कटने का एक परिणाम यह भी होता हैकि हम अपने पारम्परिक ज्ञान भण्डार से दूर होते जाते हैं और शनैः शनैः वह ज्ञान भण्डार लुप्तप्राय हो जाता है। तब प्रवेश होता है मानवरूपी गिद्धों का, जो ‘नारीवादी’ और ‘अ-सरकारी’ सङ्गठनों के रूप में ‘तारणहार’ बनकर समक्ष आते हैं पर यथार्थतः वे, न केवल हमारी आत्मा को मारते हैं, वरन् हमारे शरीर के सभी अङ्गों को नोच नोच कर खाते हैं।
आज आवश्यकता इस बात की हैकि अपने पारम्परिक ज्ञान में आधुनिक विज्ञान का समावेश करते हुये महुआ को और अर्थकरी बनाया जाय।
मधु वाता ऋतायते मधु क्षरन्ति सिन्धवः। माध्वीर्नः सन्त्वोषधीः ॥
मधु नक्तमुतोषसो मधुमत्पार्थिवꣳरजः। मधु द्यौरस्तु नः पिता ॥
मधुमान्नो वनस्पतिः मधुमौ अस्तु सूर्यः। माध्वीर्गावो भवन्तु नः ॥
ॐ मधु । मधु । मधु ।
लेख आधार :
International Journal of Current Microbiology and Applied Sciences, ISSN: 2319-7706 Special Issue-7 pp. 1064-1070
Sensory and Nutritional Evaluation of Value Added Products Prepared from Mahua Flower
Karuna Kumari*, Rekha Sinha, Gopal Krishna, Sanjeev Kumar, Sima Singh and Adarsh Kumar Srivastav
Krishi Vigyan Kendra, Birsa Agricultural University, Ranchi (Jharkhand)
Hello Team,
I am Veeresh From Sabarkanta Gujarat, I am working with an NGO in tribal belt of sabarkanta. In our project location we can able see abundant number for mahua tree. Tribal people in this area will collates the fallen flower and dry on ground and then it will be sold local shop owner at very low price. As NGO started researching on this we got know about mahua health benefits and other use.
Our NGO is planning to work with SHG of tribal women to create the value added product out of mahua like Laddu, Bar,cup cake,etc..
We need our help in this activity like understanding mahua market for raw flower and its value added product.
Please do let me know best time connect with you.
my contact :-+918549969100 Email:Vsmalkhed@gmail.com