भारतीय नाम : कुतर, गिरगिटमार, सफ़ेद सिरा कुडेल, मातचील, दस्तमाल, कुलसिर कृकलासक (संस्कृत), ডবাশেন (आसामी), পশ্চিমা পানকাপাসি (बंगाली), પાન પટ્ટાઇ (गुजरती), വിളനോക്കി (मलयालम), पाणघार, दलदल ससाणा, दलदल हारिण, दलदल भोवत्या (मराठी), सिम भुइँचील (नेपाली), சேற்று பூனைப்பருந்து (तमिळ)
अन्य नाम : Western Marsh Harrier, Eurasian Marsh Harrier
वैज्ञानिक नाम (Zoological Name) : Circus aeruginosus
Kingdom: Animalia
Phylum: Chordata
Class: Aves
Order: Accipitoformes
Family: Accipitridae
Genus: Circus
Species: Aeruginosus
Category: Prey Birds
जनसङ्ख्या : वृद्धिमान
Population: Increasing
संरक्षण स्थिति : सङ्कट-मुक्त
Conservation Status: LC (Least Concerned)
नीड़ काल : अप्रैल से जून
Nesting Period: April to June
आकार : लगभग २२ इंच
Size: 22 in
प्रव्रजन स्थिति : शीत ऋतुकालिक प्रवासी
Migratory Status: Winter Migrant
दृश्यता : असामान्य (अत्यल्प दृष्टिगोचर होने वाला)
Visibility: Very less
लैङ्गिक द्विरूपता : द्विरूप
Sexes: Unalike
भोजन: चूहे, छिपकली, गिरगिट, चिड़िया, मेढक एवं कीट-पतंगे आदि।
Diet: Rats, Reptiles, Small Mammals, Frogs, Small Birds, Insects etc.
अभिज्ञान एवं रङ्ग-रूप : कुतर लगभग २२ इंच का बड़ा आखेटक पक्षी है, जिसके पैर और डैने लम्बे होते हैं। शरीर का ऊपरी भाग गहन भूरा और निचला भाग तनु भूरा होता है। नर के सिर, वक्ष और ग्रीवा का रंग किञ्चित ललछौंह भूरा होता है और उनपर काली धारियाँ होती हैं। पूँछ का ऊपरी भाग धूसर तथा निचला भाग पीलापन लिए हुए भूरा होता है। मादा लगभग नर जैसी होती है परन्तु उसका निचला भाग, ठोढ़ी और गले के अतिरिक्त शेष भाग कत्थई, वक्ष के पंख भी ललछौंह जिनके किनारे किञ्चित कपिश रंग के होते हैं। नेत्र गोलक पिल्छौंह भूरे, चोंच एवंं टाँगें कृष्णवर्णी और पंजे पीतवर्णी होते हैं।
निवास : कुतर अधिकांशत: अन्य शिकारी पक्षियों द्वारा घायल चिड़ियों की खोज में दलदली मैदानों, झीलों के किनारे, पंंकिल स्थानों, तालाबों के किनारे जहाँ मेढक पाए जाते हों; दिख जाता है। इसकी उड़ान मंंथर और गरिमापूर्ण होती है। यह अपने जीवन का अधिकांश समय उड़ने में ही व्यतीत कर देता है।
वितरण : कुतर यूरोप, अफ्रीका और एशिया के अधिकतर भागों में पाया जाता है। कुतर भारत में सितम्बर के मध्य में आते हैं और मार्च के अंत या अप्रैल के आरम्भ में ही यहाँ से चले जाते हैं। शीत ऋतु में सम्पूर्ण भारत में इन्हें देखा जा सकता है।
प्रजनन काल तथा नीड़ निर्माण : कुतर भारत में अपना प्रवास पूरा करके यूरोप और एशिया के अन्य शीत देशों में जाकर प्रजनन करते हैं। अफ्रीका और भारत इनके प्रजनन क्षेत्र नहीं हैं परन्तु उत्तर भारत में कुछ स्थानों पर इनके नीड़ अप्रैल में देखे गए हैं जिन्हें ये पानी के किनारे सूखे नरकुल या पंकजीवी वनस्पतियों के ऊपर बनाते हैं। वे नीड़ को पंक के तृण आदि से मृदु बनाते हैं। कुतर अनेक बार एकाधिक मादाओं के साथ युगनद्ध होते देखे गए हैं और कुछ अपवादों को छोड़कर इनके जोड़े बहुधा मात्र एक प्रजनन काल तक ही सीमित होते हैं। समय आने पर मादा ४-८ अण्डे देती है जिनका वर्ण श्वेत नीलाभ होता है। अण्डों का आकार लगभग १.९५*१.५ इंच होता है।
सम्पादकीय टिप्पणी :
कृकलास गिरगिट को कहते हैं जिसे महाभारत के इस श्लोक में देखा जा सकता है :
कोकिलावदनाश्चान्ये श्येनतित्तिरिकाननाः । कृकलासमुखाश्चैव विरजोम्बरधारिणः ॥
(शल्य पर्व, ४४.८१, भण्डारकर संस्करण)
गिरगिट को मारने वाला अर्थात ‘कृकलासक’ पक्षी। यह नाम भण्डारकर संस्करण में तो नहीं मिलता किन्तु प्रचलित पाठ के इस श्लोक में सारस् के साथ मिलता है। दवे अपनी पुस्तक Birds in Sanskrit Literature में कृकलासक के Montagu’s Harrier एवं सारस् के Marsh Harrier होने की सम्भावना बताते हैं :
हंसकाकमयूराणां कृकलासकसारसाम् । रूपाणि च बलाकानां गृध्रचक्राङ्गयोरपि ॥
(अनुशासन पर्व, १४.१४५)
धन्यवाद
अत्यल्प दृश्यता के बावजूद आपने इसके शानदार फ़ोटो उतरे है। शानदार विवरण।
धन्यवाद
बहुत ही शानदार और जानकारी बढाने वाला आटिकल
आभार आपका