हम पदार्थ की कितनी अवस्थायें जानते हैं? छोटी कक्षा में बताया जाता है कि पदार्थ की तीन मौलिक अवस्थायें हैं: ठोस, तरल और गैसीय, हाई स्कूल तक ‘प्लाज़्मा’ जो कि मूलतः आवेशित कणों से बना पदार्थ का वह स्वरूप है जिससे हमारे सूर्य के समान तारे निर्मित होते हैं।
इण्टरमीडियेट तक पदार्थ की एक नई अवस्था ‘बोस-आइंस्टीन कंडेन्सेट’ यानि BEC का पता चलता है। यह अवस्था तब उत्पन्न होती है जब लेज़र किरणों और तीव्र चुम्बकों की सहायता से परमाणुओं को बेहद कम तापमान पर ठण्डा कर दिया जाता है। इस तरह अब तक माध्यमिक शिक्षा तक के विद्यार्थी पदार्थ की कुल पाँच अवस्थायें जानते रहे हैं: ठोस, तरल, गैसीय, प्लाज़्मा और बोस-आइंस्टीन कंडेन्सेट।
हाल ही में अमेरिका की ओक रिज नेशनल लैब के वैज्ञानिकों ने प्रयोगों द्वारा पदार्थ की एक बिल्कुल ही नई अवस्था को वास्तविकता में देखने की पुष्टि की है जिसका नाम है Quantum Spin Liquid, ‘क़्वॉण्टम स्पिन लिक्विड’। प्रथम दृष्टया यह बड़ा विचित्र सा नाम प्रतीत होता है। पदार्थ की इस अवस्था के कई स्वरूप हैं अर्थात् कई मूलभूत कण कुछ विशेष तापमान वाली परिस्थितियों में क़्वॉण्टम स्पिन लिक्विड बना लेते हैं। इस अवस्था के अस्तित्व को सैद्धांतिक रूप से सबसे पहले फिलिप एंडरसन ने 1973 में प्रमाणित किया था। सुविधा के लिए आगे हम इसे QSL कहेंगे। एंडरसन के सिद्धांत के बाद 2003 और 2005 में भी QSL को प्रायोगिक रूप से देखा गया। प्रतिष्ठित पत्रिका ‘नेचर’ के अप्रैल 2016 अंक में प्रकाशित शोध पत्र के अनुसार भारतीय मूल के शोधकर्ता अर्नब बनर्जी के नेतृत्व में ओक रिज नेशनल लैब के शोधार्थियों ने QSL के ‘किटाएव मॉडल’ को प्रत्यक्ष देखा। यहाँ प्रत्यक्ष का अर्थ है कि उपकरणों की सहायता से QSL के अस्तित्व की पुष्टि की गयी। यह एक ऐसी क़्वॉण्टम अवस्था है जहाँ इलेक्ट्रॉन टूट जाते हैं और एक नया कण बन जाता है जिसे ‘मायोराना फर्मियॉन’ कहा जाता है। यह मायोराना फर्मियॉन कण कई मायनों में अनोखा है। इसका प्रयोग अति तीव्र गति से गणना करने वाली क़्वॉण्टम कम्प्यूटर तकनीक में हो सकता है। QSL क्या है? मायोराना फर्मियॉन कण का यह नाम क्यों पड़ा? और इनका उपयोग क़्वॉण्टम कम्प्यूटर में कैसे हो सकता है? आइये भौतिकी के सिद्धांतों से इन प्रश्नों के उत्तर ढूँढने का प्रयास करते हैं।
अब यह तो सबको पता है कि न्यूटन की यांत्रिकी के सिद्धांत परमाणु के अति सूक्ष्म आयामों पर प्रयुक्त नहीं होते। इसके लिए क़्वॉण्टम सम्बन्धित सिद्धांतों को समझना आवश्यक है।
एक परमाणु के अंदर थिरकते कणों के स्वभाव में वस्तुतः सब कुछ अनिश्चित होता है। पदार्थ के मौलिक कण ऐसी ही अनिश्चितता वाला एक व्यवहार प्रदर्शित करते हैं जिसे ‘स्पिन’ कहा जाता है।
आपने कभी नाचती हुई ‘बैलेरिना’ को देखा है? एक सुन्दर दुबली पतली लड़की बदन से चिपके हुए कपड़े पहने पैर के एक अंगूठे के बल पर लट्टू के समान घूमती है। इसी तरह पदार्थ के मौलिक कण भी प्रकृति के इस अद्भुत संगीत पर नाचते हैं, चाहे वे इलेक्ट्रॉन हों या परमाणु के नाभिक कण। कणों के इस नृत्य का पता तब चला जब 1922 में ओट्टो स्टर्न और वॉल्थर गरलाच ने चांदी के परमाणुओं को असमान चुम्बकीय क्षेत्र के बीच से जाने दिया। अपनी धुरी पर नाचने की कला में दक्ष इन कणों का व्यवहार ऐसा होता है कि कोई कण दक्षिणावर्त होकर नाचता है तो कोई वामावर्त। ऐसे में इलेक्ट्रॉन जैसे कणों की स्पिन -1/2 अथवा +1/2 होती है। इन्हें ‘UP’ और ‘DOWN’ स्पिन कहा जाता है किंतु वास्तव में इलेक्ट्रॉन अपनी धुरी पर नाचते हैं या नहीं, यह किसी को नहीं पता। इसका कारण यह है कि परमाणविक कणों को हम प्रत्यक्ष देख नहीं सकते। हम केवल किसी कण के होने की प्रायिकता ज्ञात कर सकते हैं और इसी गणितीय प्रायिकता के आधार पर सम्पूर्ण क़्वॉण्टम सिद्धांत खड़ा है।
भौतिकी में स्पिन का अर्थ है कोणीय संवेग। हम किसी बड़े द्रव्यमान वाली वस्तु जैसे कि अपनी धुरी पर घूर्णन करता लकड़ी का एक टुकड़ा या गेंद के कोणीय संवेग की गणना करते हैं। यह कोणीय संवेग हमें बताता है कि वह वस्तु अपने द्रव्यमान के हिसाब से कितनी तीव्र गति से घूर्णन कर सकती है परन्तु जब कोई वस्तु कई सारे कणों का एक निकाय न होकर स्वयं एक कण हो जिसकी गति की दिशायें सटीक ज्ञात करना असंभव हो तब वहाँ न्यूटन के नियम धराशायी हो जाते हैं और स्पिन की क़्वॉण्टम परिभाषा का सहारा लेना पड़ता है जिसके अनुसार किसी इलेक्ट्रॉन की स्पिन का अर्थ होता है दक्षिण अथवा वाम आवर्तन में स्पिन ‘UP’ और ‘DOWN’ होना। कोई बड़ी वस्तु किसी भी दिशा में घूर्णन कर सकती है किंतु परमाणविक कण कुछ निश्चित दिशाओं में ही स्पिन परिलक्षित करते हैं। सम्भवतः ऐसी ही विचित्र व्याख्या के चलते रिचर्ड फेयनमान ने कहा था कि “क़्वॉण्टम यांत्रिकी को कोई नहीं समझता।”
क़्वॉण्टम स्पिन लिक्विड जल की भाँति तरल भी नहीं होता। मौलिक भौतिकी के नियमों से हम जानते हैं कि जब कोई आवेशित कण गतिमान होता है तब उसमें चुम्बकीय गुण उत्पन्न होते हैं। उदाहरण के लिए किसी वस्तु में गतिमान इलेक्ट्रॉन उसमें फेरोमैग्नेटिस्म, डायमैग्नेटिस्म अथवा पैरामैग्नेटिस्म व्यवहार के लिए उत्तरदायी होते हैं। घरों में प्रयुक्त होने वाला सामान्य चुम्बक फेरोमैग्नेटिक होता है। जब किसी वस्तु को बेहद कम तापमान पर ठण्डा किया जाता है तब उसमें घूमते सभी इलेक्ट्रॉन एक दिशा की ओर घूर्णन करने लगते हैं। परन्तु QSL में ऐसा नहीं होता। शून्य केल्विन के समीप ठण्डा होने पर भी QSL के इलेक्ट्रॉन एक दिशा में व्यवस्थित नहीं होते अपितु एक ऐसी अवस्था को प्राप्त हो जाते हैं जिसे ‘क़्वॉण्टम एनटैंगलमेंट’ कहा जाता है। वस्तुतः किसी भी परमाणविक कण की स्थिति व दिशा का सटीक मापन न हो पाने के कारण उसके व्यवहार की व्याख्या ‘क़्वॉण्टम अवस्थाओं’ से की जाती है। इसके लिए चार मूलभूत क़्वॉण्टम संख्याएं निर्धारित हैं जिनमें से एक स्पिन होती है। एनटैंगलमेंट का अर्थ है कि किसी कण की एकल क़्वॉण्टम अवस्था अन्य कणों से पृथक् कर के ज्ञात नहीं की जा सकती अतः QSL अवस्था में पदार्थ एक प्रकार से मिश्रित क़्वॉण्टम सूप की भाँति बन जाता है और ऐसी स्थिति में इलेक्ट्रॉन टूट कर एक नए कण का निर्माण करते हैं जिसे मायोरना फर्मियॉन कण कहा जाता है। फर्मियॉन कणों को उनका नाम एनरिको फर्मी से मिला और कुछ विशेष प्रकार के फर्मियॉन कण मायोरना फर्मियॉन कहलाते हैं जिनकी सैद्धांतिक अवधारणा सबसे पहले ईटोर मायोरना ने प्रस्तुत की थी।
फर्मियॉन कण वे होते हैं जिनकी स्पिन अर्द्ध पूर्णांक होती है; यथा इलेक्ट्रॉन की स्पिन 1/2 है। प्रोटॉन तथा न्यूट्रॉन भी फर्मियॉन कणों में आते हैं। फर्मियॉन कणों के व्यवहार के नियम फर्मी-डिरैक क़्वॉण्टम सांख्यिकी द्वारा निर्धारित होते हैं। क़्वॉण्टम भौतिकी के अनुसार प्रत्येक कण के एक ‘प्रति-कण’ (anti particle) का अस्तित्व होता है। यह प्रतिकण ही उस ‘प्रति-पदार्थ’ (anti matter) के निर्माण के लिए उत्तरदायी है जिससे इस सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के वे हिस्से निर्मित हुए हैं जिन्हें हम देख नहीं सकते। मायोरना फर्मियॉन कणों की विशिष्टता यह है कि वे स्वयं अपने ही प्रतिकण होते हैं क्योंकि इन पर कोई आवेश नहीं होता। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि जब भी कोई मायोरना फर्मियॉन अपनी क़्वॉण्टम अवस्था में परिवर्तन करता है तो इसकी सूचना पीछे छोड़ जाता है। ऐसा इलेक्ट्रॉनों के साथ नहीं होता जिनकी ‘on/off’ अवस्थाओं पर आज की कम्प्यूटर तकनीक कार्य करती है।
आज जिस संगणन की तकनीक का हम उपयोग करते हैं वह 0 और 1 के आधार पर ‘बाइनरी डिजिट’ के रूप में प्रयुक्त होती है। परन्तु क़्वॉण्टम कम्प्यूटिंग में हम क्यूबिट का प्रयोग करते हैं। यहाँ क्यूबिट की व्याख्या कणों की क़्वॉण्टम अवस्था को आधार बना कर की जाती है। जहाँ बाइनरी अवस्था में एक समय में 0 अथवा 1 में से एक ही स्थिति सम्भव है वहाँ क्यूबिट में एक साथ 0 और 1 दोनों हो सकते हैं। इसे क़्वॉण्टम अवस्थाओं का ‘सुपरपोसिशन’ कहा जाता है अर्थात् एक समय में ही एक क़्वॉण्टम अवस्था के ऊपर दूसरी तीसरी, अनगिनत अवस्थाएं होना। जब समस्त क़्वॉण्टम अवस्थाएं एनटैंगल हो जाती हैं तो एक विचित्र सी घटना होती है। एक अवस्था में परिवर्तन करने से उससे जुड़े अन्य कणों की अवस्थाएं भी परिवर्तित हो जाती हैं भले ही वे कण सहस्रों किलोमीटर दूर हों। क़्वॉण्टम एनटैंगलमेंट को पारलौकिक क्षमताओं से जोड़ कर भी देखा जाता है किंतु क़्वॉण्टम कम्प्यूटर के क्षेत्र में देखा जाये तो किसी एक क़्वॉण्टम सर्वर पर सूचना में किये गए परिवर्तन से लाखों किलोमीटर दूर स्थित सर्वर पर भी सूचनायें स्वतः परिवर्तित हो जाएँगी। यही नहीं चूंकि मायोरना फर्मियॉन कण अपने पीछे परिवर्तन का इतिहास छोड़ जाते हैं अतः हम पुनः क़्वॉण्टम अवस्थाओं में परिवर्तन कर पुरानी सूचना प्राप्त कर सकते हैं। यह सब कुछ प्रकाश के वेग से सम्भव है। क़्वॉण्टम स्पिन लिक्विड में इलेक्ट्रॉनों के टूटने से उत्पन्न हुए मायोरना फर्मियॉन कण ‘एनटैंगल’ सूप की अवस्था में एक साथ कई क़्वॉण्टम अवस्थाएं परिलक्षित करते हैं अतएव ये कण भविष्य के क़्वॉण्टम कम्प्यूटर बनाने में प्रयुक्त हो सकते हैं जो आज के डिजिटल कम्प्यूटरों की तुलना में कहीं ज्यादा तीव्र गति से अरबों खरबों सूचनाओं की गणना कर सकेंगे।
लेखक: यशार्क पाण्डेय
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Reference reading:
1. Quantum by Manjit Kumar
2. Computing with Quantum Cats by John Gribbin
3. Nature journal link http://www.nature.com/nmat/journal/vaop/ncurrent/full/nmat4604.html
Image credit:
Patterns formed by bombarding materials in a quantum spin liquid state with neutrons / Genevieve Martin, Oak Ridge National Laboratory
@yasharkpandey,
“क्वॉन्टम शब्द जोड़ कर…” का अर्थ है कि “क्वॉन्टम” शब्द आते ही सब कुछ ‘रहस्यमयी’ हो जाता है। मामला कहीं न कहीं आके फंस जाता है। सॉल्व होगा या नहीं उस पर सटीक उत्तर देना फिलवक्त किसी के लिए आसान नहीं है, यही जवाब सारस्वत जी को देने की कोशिश भर है। बाकी आप (लेख के ऑथर) स्वयं ने आके जवाब प्रस्तुत कर दिया है तो सर्वोत्तम है।
@Avadhesh Kumar Saraswat
भौतिकी में ‘क़्वॉण्टम’ शब्द जोड़कर जो भी नयी धारणाएं या सिद्धान्त बन रहे हैं वे अभी इतने नए हैं कि उन्हें शैशव अवस्था वाला भी नहीं कहा जा सकता। अभी तक जितने भी वैज्ञानिक इन विषयों पर शोध कर रहे हैं वे स्वयं किसी मजबूत निष्कर्ष पर नहीं पहुंचे है और ना ही अभी तक ‘क़्वॉण्टम’ (कंप्यूटर) वाले यंत्रों का उत्पादन किया जा सका है। इसे यूँ कह सकते हैं कि अभी सब बाते ही बाते हैं निकट भविष्य में भी कुछ काम आने लायक बनेगा इसकी सम्भावना बहुत कम है। आपके पूछे गए प्रश्नों का उत्तर इन शोध परिणामों को बताने वाले वैज्ञानिक भी फ़िलवक्त देने की अवस्था में नहीं है।
फिलहाल इस बात का कोई प्रायोगिक तौर पर पुख्ता जवाब नहीं है कि क़्वॉण्टम कंप्यूटर, वर्तमान में प्रचलित कंप्यूटर्स को रिप्लेस कर देंगे। अभी ये सिर्फ सैद्धांतिक बातें हैं, बातों क्या।
क़्वॉण्टम कंप्यूटर के लिए आम जानकारी के लिए हिन्दी में ये विडियो अच्छा है।
https://www.youtube.com/watch?v=TdCgVogF7CQ
अन्य सिद्धांतों का सम्बन्ध जानने के लिए ये लेख भी पढने लायक है।
https://vigyanvishwa.in/2014/08/04/quantumsucide/
“क्वॉन्टम शब्द जोड़ कर…” का क्या अर्थ है ? भौतिकी में सिद्धांत गणितीय समीकरणों के आधार पर बनते हैं। ब्रह्माण्ड की संरचना की भाषा गणित है। सम्पूर्ण क्वॉन्टम थ्योरी गणितीय है। सिद्धांत स्थापित होने के बाद प्रायोगिक रूप से भी प्रमाण खोजा जाता है तभी कोई कोई अवधारणा पुष्ट होती है। QSL के अस्तित्व को देखा गया है। इसमें सन्देह का स्थान कहाँ ? आइंस्टीन ने 1905 में रिलेटिविटी का पेपर लिखा था। उस समय एडिंगटन समेत कुल 3 लोग ही यह सिद्धांत समझ पाये थे। 1945 में बम बन गया। विज्ञान प्रोग्रेसिव विद्या है। किसी नए विचार को प्रमाणित करने की प्रक्रिया सुनिश्चित है।
इस सिद्धांत के आधार पर तो कंप्यूटर की मेमोरी ओर स्पीड को भी सहस्त्रों गुना बढ़ाया जा सकता है। क्योंकि बाइनरी सिस्टम की बाध्यता ही नहीं रहेगी। जिससे स्पेस save होगा और एक ही स्थान पर multilayered डेटा स्टोर हो सकता है। जिज्ञासा।
इस पर काम हो रहा है। भारत में हरीश चन्द्र अनुसंधान संस्थान के अरुण कुमार पती ने Heisenberg uncertainty relations में एक नई खोज की है। मामला गणित पे आ के फंस जाता है। मैं समझ लूँ तो एक पोस्ट लिख दूंगा।
विज्ञान की बहुत उत्कृष्ट जानकारी। मेरे मन मे एक प्रश्न हैकि जिस अनिश्चितता की बात आपने की है क्या वह हाइजेनवर्ग अनिश्चितता है या कोई और? हैंइसका सम्बन्ध तो स्थिति एवं वेग संवेग आड़ से होता है।
सम्भव हो तो बताएं कि liquid crystal भी पदार्थ की एक अवस्था है या नहीं? ओर क्यों?
Liquid crystal सॉलिड और लिक्विड के बीच की अवस्था है पदार्थ की कोई नई अवस्था नहीं।
हेइसेंबर्ग अनिश्चितता की ही बात की है। समझाने के लिए सरल तरीका अपनाया हैं