भारतीय तथा अन्य नाम :
सामान्य हिन्दी भोजपुरी : ईंटकोहरी, गुलाबी घुघू, पेंड़की, तुमा खुरी, सिरोरी, गेरुई पेंड़की
संस्कृत : अरुण कपोतक
असामी : হাৰুৱা কপৌ
बांग्ला : লাল ঘুঘু
नेपाली : सानोतामे ढुकुर
तमिळ : தவிட்டுப்புறா
मराठी: माळकवडी, विटकरी कवडी, लालपंखी होला
गुजराती : લોટણ હોલો
कन्नड़ : ಕೆಂಪು ಬೆಳವ
अंग्रेजी नाम : Streptopelia tranquebarica, Red Collared-dove, Red-collared Dove, Red Turtle-dove, Indian Red Turtle-dove, Dwarf Turtle Dove, Dwarf Turtle-dove, Red Ring Dove
वैज्ञानिक नाम (Zoological Name): Streptopelia tranquebarica
Kingdom: Animalia
Phylum: Chordata
Class: Aves
Order: Columbiformes
Family: Columbidae
Genus: Streptopelia
Species: Tranquebarica
गण-जाति : थल-प्रजनन पक्षी
Clade: Upland Ground Birds
जनसङ्ख्या : स्थिर
Population: Stable
संरक्षण स्थिति (IUCN) : सङ्कट-मुक्त
Conservation Status (IUCN): LC (Least Concern)
वन्य जीव संरक्षण अनुसूची : ४
Wildlife Schedule: IV
नीड़-काल : वर्षपर्यन्त
Nesting Period: All year
आकार : लगभग १० इंच
Size: 10 in
प्रव्रजन स्थिति : अनुवासी
Migratory Status: Resident
दृश्यता : असामान्य (अल्प दृष्टिगोचर)
Visibility: Very less visible
लैङ्गिक द्विरूपता : उपस्थित (नर और मादा भिन्न)
Sexual Dimorphism: Present (Unlike)
भोजन : धरती पर पड़े हुए अन्न, बीज, शाक के टुकड़े, कीड़े-मकोड़े आदि।
Diet: Fallen seeds, vegetable matter, small ground insects such as termites and beetles.
अभिज्ञान एवं रङ्ग-रूप : अरुण कपोतक पेंड़की भारत वर्ष के पण्डुक पक्षियों में अकेला है जिसमें नर और मादा पक्षी अभिज्ञान एवं रङ्ग-रूप में भिन्न होते हैं। मादा का आकार नर से थोड़ा छोटा होता है और वह किञ्चित तनु वर्ण लिए होती है। इस पाटलवर्णी पेंड़की का सम्पूर्ण शरीर लालिमा लिए हुए श्याव और सिर धूसर वर्ण का होता है। ग्रीवा पर मुद्रिका सदृश एक कृष्णवर्णी पट्टिका रहती है। शरीर के ऊपरी भाग का वर्ण ईंट के वर्ण समान होने से ही इसका नाम ईंट कोहरी पेंड़की पड़ा है। इसकी पूँछ का वर्ण भूरा और उस पर आच्छादित पङ्ख गहन वर्ण के होते हैं। नेत्र का वर्ण किञ्चित गहन भूरा, चोंच कृष्णवर्णी तथा पंजे बैंगनी-लाल होते हैं।
निवास : अन्य पेड़की की भाँति ये मानव बस्ती से थोड़ी दूर और घने वनों, वाटिकाओं के निकट के खेतों में जहाँ जल की उपलब्धता भी हो, ऐसे स्थानों पर पाई जाती हैं।
वितरण : अरुण कपोतक पेंड़की पूरे भारत में पाई जाती है। भारत के अतिरिक्त पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका और म्यांमार में भी मिलती हैं। कुछ तो स्थानीय प्रवास भी करती हैं।
प्रजनन काल तथा नीड़ निर्माण : अरुण कपोतक पेंड़की का प्रजनन काल पूरे वर्ष भर होता है परन्तु मई और जून में प्रजनन अधिक अनुकूल होता है। ये नीड़ निर्माण के लिए लगभग २०-२५ फीट की ऊँचाई पर वृक्ष की शाखाओं का ही चुनाव करते हैं, अन्य पेंड़कियों की भाँँति भवनों या उनके निकट नीड़ नहीं बनाते हैं। अन्य कपोतक पक्षियों की भाँति इनका नीड़ भी तनु टहनियों और तिनकों से बना कुरूप और विकृत सा होता है। समय आने पर मादा २ श्वेत कान्तियुक्त अण्डे देती है। अण्डों का आकार लगभग १.०२ * ०.८५ इंच होता है।
सम्पादकीय टिप्पणी
धन्वन्तरि का धूम्रलोचन अरुणकपोत है – कपोतो न्यो धूधूकृद् धूम्रलोचन:। कपोतों में सबसे लघु (कण > काण) होने के कारण सुश्रुत और चरक ने इसे काणकपोत कहा है – काणकपोतः पक्षिणां, चरकसंहिता (१.२५.३८)।