भारतीय नाम : लालसर, लालसिर, लल्मुडिया, रताबो, छोबरा हंस, रक्त चूड़ मज्जिका (संस्कृत), अरुण चंचु
वैज्ञानिक नाम : Netta rufina
Kingdom: Animalia
Phylum: Chordata
Class: Aves
Order: Anseriformes
Family: Anatidae
Genus: Netta
Species: Rufia
श्रेणी : बतख जैसी चिड़िया
Category: Duck Like Bird
संरक्षण स्थिति : सङ्कटमुक्त
Conservation Status: LC (Least Concern)
वन्य जीव संरक्षण अनुसूची : ४
Wildlife Schedule: IV
नीड़ काल : मई से जून
Nesting Period: May to June
आकार : लगभग २१ इंच
Size: 21in
प्रव्रजन स्थिति : शीत ऋतु-प्रवासी
Migratory Status: Winter Migratory
दृश्यता : सामान्य (प्राय: दिखाई पड़ने वाला)
Visibility: Common
लैङ्गिक द्विरूपता : द्विरूप ( नर मादा से आकार में पर्याप्त बड़ा होता है)
Sexes: Unlike (Male is big enough than Female)
भोजन : मुख्य भोजन जलीय पौधे, घास-पात, पत्तियाँ, मृदु कोपलें आदि किन्तु ये कीड़े-मकोड़े, छोटे घोंघे और छोटे मेढकों का भक्षण भी कर लेते हैं।
Diet: Aquatic Plants, Shoots, Buds, Molluscs, Insects, Tadpoles, Small fish etc.
अभिज्ञान एवं रङ्ग-रूप : लालसर हमारे यहाँ का बहुत ही सुन्दर पक्षी है। जिसके सिर और ग्रीवा का ऊपरी भाग ललछौंह, पीठ, पूँछ और पंङ्ख बादामी होते है। शरीर का अधोभाग भाग कृष्ण वर्णीय और पंङ्ख के डैने का रंग सफ़ेद होता है। नर का आकार-प्रकार मादा से भिन्न होता है तथा आकार में किञ्चित विशाल भी।
नर का सर, गला, गाल तथा ग्रीवा का ऊपरी भाग ललछौंह जबकि मादा का ऊपरी भाग तनु बादामी रंग का तथा सिर और ग्रीवा गाढ़े बादामी रंग के। नर की चोंच चटख लाल तथा मादा की चोंच गाढ़ी कत्थई एवं सिरे पर लाल, नेत्र लाल तथा पश्चपाद नारंगी वर्ण लिए होते हैं।
निवास : यह हमारे देश की छोटी पनडुब्बी बत्तख हैं जो शीतकाल आरम्भ होने के साथ ही पञ्जाब से लेकर हैदराबाद तक के जलाशयों में भर जाती हैं किन्तु ये हैदराबाद से आगे न जाकर वहीं से लौट आती है। ये कश्मीर में भी नहीं जाती हैं।
पनडुब्बी बत्तख होने के कारण इनको गहरे ताल, पोखर एवं झील रुचिकर है जिनमे गहराई के साथ-साथ, शैवाल और काई भी बहुतायत में हो। इनका झुण्ड १०-१२ से लेकर १००० तक भी हो सकता है जो भोजन और आवास की उपलब्धता पर निर्भर करता है।
वितरण : भारत से बाहर पाकिस्तान, ईरान, अफगानिस्तान, उत्तरी अफ्रीका से दक्षिण यूरोप तक पाए जाते हैं। ये भारत से ग्रीष्म ऋतु आरम्भ होने के पहले ही उत्तरी पश्चिमी देशों में प्रजनन के लिए चले जाते हैं।
प्रजनन काल तथा नीड़ निर्माण : भारत में ऋतुकालिक पक्षी होने के कारण ये यहाँ अण्डे नहीं देते हैं। यहाँ का प्रवास पूर्ण कर अपने मूल स्थान पर लौट कर ही पानी के किनारे या किसी टापू पर भूमि पर ही तृणनीड़ बनाती है जिन्हें पंखों आदि से सुविधाजनक बना दिया जाता है। मई-जून में मादा एक बार में ८-१० अण्डे देती है। अण्डों का रंग पहले हर्छौंह होता है जो समय के साथ तनु धूसर हो जाता है। अण्डों का आकार लगभग २.३*१.६ इंच का होता है।