विराम दे दे यह पाँच प्रकार के स्वर निकालता है। इसके स्वर को शुभ माना गया। अन्य नाम पिङ्गचक्षु, पिङ्गेक्षण आदि हैं। पञ्चतन्त्र का कृकालिका भी यही पक्षी है।
भारतीय नाम : उल्लू, खाकुसट, खुसटिया, चुघड, पेंचा, पिङ्गला, निशाटन, उलूक
वैज्ञानिक नाम : Anthene Brama
Kingdom: Animalia
Phylum: Chordata
Class: Aves
Order: Strigiformes
Family: Strigidae
Genus: Athene
Species: Brama
Category: Night bird
जनसँख्या : स्थिर
Population: Stable
संरक्षण स्थिति : सङ्कटमुक्त
Conservation Status: LC (Least Concern)
वन्य जीव संरक्षण अनुसूची : १
Wildlife Schedule: I
नीड़ निर्माण का समय : नवम्बर से मई
Nesting Period: November to May
आकार : ८ इंच
Size: 8 inch
प्रवास स्थिति : प्रवासी
Migratory Status: Resident
दृश्यता : सामान्य (प्राय: दिखाई देने वाला)
Visibility: Common
लैङ्गिक द्विरूपता : समरूप
Sexes: Alike
भोजन : कीड़े-मकोड़े, छोटे चूहे, छिपकलियाँ आदि।
Diet: Insects, Mice, Lizards etc.
तथ्य : लक्ष्मी का वाहन उल्लू अब सङ्कटग्रस्त हो गया है। दिवाली में अंधविश्वास के चलते कई लोग इसको पूजा के लिए मार देते हैं।
अभिजान एवं एवं रंग रूप : यह भारत के समतल नदी क्षेत्रों का बहुत ही परिचित पक्षी है । इसके शरीर पर छोटी छोटी श्वेत और श्याव चित्तियाँ होती हैं तथा आँखें उद्दीप्त पीत। यह दिन में भी जागता रहता है और साँझ से कोलाहल करना आरम्भ कर देता है। इसे खंडहरों तथा उद्यानों में उस समय देखा जा सकता है। इसका आकार प्राय: ८ इंच होता है तथा नर और मादा एकरूपी होते हैं। आँखों के ऊपर माथे पर श्वेत रेखा होती है तथा ऊपर का भाग, पंख एवं पूँछ धूसर रंग के होते हैं। गले के पीछे श्वेतवर्णी अर्द्धपट्टी होती है। आँखों की पुतलियाँ कञ्चन पीले रंग की, चोंच और पंजे हरिताभ पीत।
निवास : इसे प्राय: मानव बस्ती के समीप, खेतों, उद्यानों एवं भग्नावशेषों आदि में देखा जा सकता है। यह रात्रिचर है अर्थात रात्रि में आखेट हेतु निकलता है पर दिन में भी जागता रहता है। यह प्राय: ३ से ४ के समूह में मिलता है।
वितरण : यह हिमालय पर ३००० फीट की ऊँचाई तक पाया जाता है। भारत के अतिरिक्त बांग्लादेश, पाकिस्तान एवं म्यांमार में भी पाया जाता है, परन्तु श्रीलंका में नहीं। रंग एवं आकार में किञ्चित अन्तर के साथ इसकी ३ उपजातियाँ पाई जाती हैं।
प्रजनन काल तथा नीड़ निर्माण : इसके प्रजनन का समय फरवरी से मई तक होता है, पर मार्च-अप्रैल में नीड़ अधिक मिलते हैं। यह अपने नीड़ के लिए अधिक श्रम नहीं करता है। जिस कोटर में रहता है उसी में थोड़ी सूखी घास, पत्तियाँ आदि रख नीड़ का निर्माण कर लेता है। मादा ३-६ अण्डे देती है, अण्डों का रंग श्वेत होता है एवं आकार १.२५*१.०४ इञ्च।
सम्पादकीय टिप्पणी
प्राचीन साहित्य में इसके विशेष स्वर एवं आँखों के रंग के कारण नाम रखे गये। गले से खर अर्थात रूखा या अप्रिय स्वर करने के कारण इसे खर्गल कहा गया, ऋग्वेद एवं अथर्ववेद दोनों में किञ्चित पाठ भेद के साथ यह मन्त्र मिलता है :
प्र या जिगा॑ति ख॒र्गले॑व॒ नक्त॒मप॑ द्रु॒हा त॒न्वं१॒॑ गूह॑माना।
व॒व्राँ अ॑न॒न्ताँ अव॒ सा प॑दीष्ट॒ ग्रावा॑णो घ्नन्तु र॒क्षस॑ उप॒ब्दैः॥ (ऋ., 7.104.17)
प्र या जिगाति खर्गलेव नक्तमप द्रुंहुस्तन्वं गूहमाना।
वव्राङ् अनन्ताङ् अव सा पदीष्ट ग्रावाणो घ्नन्तु रक्षस उपद्वैः ॥ (अथर्व., पैप्पलाद, 16.10.7)
खर शब्द का प्रयोग आज भी भोजपुरी क्षेत्र में मिलता है। खान पान में कुसमय या व्रत आदि के समय खराई हो जाती है, गला खर हो जाना बताया जाता है।
बृहत्संहिता में आँखों के रंग के कारण इसे पिङ्गलिका एवं पिङ्गला बताया गया है तथा आकार की लघुता के कारण चेटि :
८७.०४ नामान्युलूकचेट्याः पिङ्गलिका पेचिका हक्का॥
इस उलूक के स्वर की विवेचना भी मिलती है। विराम दे दे यह पाँच प्रकार के स्वर निकालता है। इसके स्वर को शुभ माना गया। अन्य नाम पिङ्गचक्षु, पिङ्गेक्षण आदि हैं। क्वयी एवं पिङ्ग नाम भी मिलते हैं। पञ्चतन्त्र का कृकालिका भी यही पक्षी है।