जम्मू-कश्मीर का विधान: महाराजा रणजीत सिंह से आगे।
जम्मू-कश्मीर के विधान को व्यवस्थित एवं कालानुक्रमिक रूप से समझने हेतु हमें वाद-विवाद से किञ्चित हटकर समस्त निम्न प्रलेखों एवं उनसे सम्बंधित राजनैतिक घटनाक्रम के विषय में जानना अपरिहार्य है।
52th Issue of Maghaa
जम्मू-कश्मीर के विधान को व्यवस्थित एवं कालानुक्रमिक रूप से समझने हेतु हमें वाद-विवाद से किञ्चित हटकर समस्त निम्न प्रलेखों एवं उनसे सम्बंधित राजनैतिक घटनाक्रम के विषय में जानना अपरिहार्य है।
भारत के प्रारम्भिक वर्षों में शतवर्षीय पञ्चाङ्ग का अस्तित्व था, जिसका 2700 वर्षों का चक्र होता था। इसे सप्तर्षि पञ्चाङ्ग कहा जाता था।
ब्राज़ील के प्रोफ़ेसर पाउलो हायऐशी ने शंकराचार्य विरचित तत्वबोध और मास्लो के सिद्धांत में समानता देखी और दोनों को एक संदर्भ में अध्ययन करने का सुझाव दिया।
हमें कई असुविधाजनक प्रश्नों के समक्ष खड़े होना होगा जिनसे हम जाने अनजाने मुँह छिपा ले जाते हैं। यह भी स्पष्ट है कि हम युद्ध के लिये तत्पर नहीं हैं। हम एक थोपा हुआ युद्ध लड़ रहे हैं और अंततः विजय हमारी ही होगी। यतो धर्मस्ततो जयः।
विवाहिता नारी द्वारा बहुधा जो बातें पति से नहीं कही जातीं, देवर के माध्यम से बता दी जाती हैं – प्रियो रामस्य लक्ष्मणः, यथा हि वानरश्रेष्ठ दुःखक्षयकरो भवेत्।
Red-crested Pochard लालसर एक पनडुब्बी बतख है जो भारत का ऋतु-प्रवासी पक्षी है। शीतकाल प्रारम्भ होते ही उत्तर में पञ्जाब से लेकर दक्षिण के हैदराबाद तक आता है।
आधुनिक भारत की समस्या उसके प्रबुद्ध वर्ग के घोर पतन की है। जन सामान्य सदैव ऐसे ही रहे हैं। वांछित सुखद परिवर्तन प्रबुद्ध वर्ग की उत्कृष्टता में अभिवृद्धि से होते हैं, उनके पतन से देश का पतन होता है। प्रबुद्ध वर्ग निराशा भरा है।