मेरे कार्य क्षेत्र (कंप्यूटर प्रोग्रामिंग) में जब कोई फ्रेशर/जूनियर या विद्यार्थी यह प्रश्न करता है कि सर कौन सी प्रोग्रामिंग भाषा सर्वश्रेष्ठ है जिस पर मैं अभी से लगूँ और दक्षता प्राप्त करूँ। प्रकारान्तर से वे सभी इसी उधेड़बुन में रहते हैं कि सबसे अधिक आय देने वाली तकनीकी को ही सीखा जाए या पता किया जाये। ऐसा अन्य क्षेत्रों में भी होता है, अनुभवी जन अपने-अपने कार्यक्षेत्र से इसे जोड़ कर देख सकते हैं।
वस्तुत: मैं उस प्रश्न या उलझाव की बात कर रहा हूँ जहाँ कॅरियर को लेकर एक क्षेत्र विशेष को चुन लेने के पश्चात दिखाई पड़ने वाली उसकी अन्य शाखाओं में विशेष योग्यता को आय प्राप्ति, समय, श्रम आदि से जोड़ कर एक विद्यार्थी/जूनियर आकलन कर रहा होता है। जैसे आधारभूत चिकित्सा पढ़ने वाला विद्यार्थी भी यह सोच सकता है की मुझे हृदय रोग का विशेषज्ञ बनना है या न्यूरोलॉजी का या डेण्टल आदि आदि। यहाँ वह वर्तमान में उस क्षेत्र के शिखर व्यक्तियों की सफलता, आय और ऐश्वर्य देखकर भ्रमित भी हो सकता है क्योंकि उसे अनेक भिन्न-भिन्न उपक्षेत्रों में सफल व्यक्ति दिखाई देते हैं।
कभी उसे नेत्र चिकित्सक बनने में लाभ दिखाई देता है तो कभी उसे हृदयरोग विशेषज्ञता में। कभी किसी को ‘C’ प्रोग्रामिंग में अधिक सम्मान और लाभकारी लोग दिखते हैं तो कभी Java प्रोग्रामर की आय। यहाँ से आगे मैं अपने क्षेत्र के सन्दर्भ में समझाने का प्रयास करूँगा। पाठक गण अपने क्षेत्रों से इसे सम्बन्धित कर सकते हैं।
कंप्यूटर विज्ञान में हार्डवेयर से लेकर सॉफ्टवेयर तक अनेक उप-शाखाएं निकलती हैं। सॉफ्टवेयर प्रोग्रामिंग एक बृहद शब्द है। प्रोग्रामिंग करने के लिए आज सैंकड़ों भाषाएँ उपस्थित हैं और नित नयी तकनीकियाँ निर्मित हो रही है। बहुत से विद्यार्थी इसी विचार में अपना समय नष्ट करते रहते हैं कि किस भाषा पर अधिक पकड़ बनायें। यहाँ से आगे वे टॉप-१०, अमुक वर्ष तक शीर्षस्थ तकनीकी आदि की माँग आदि के विश्लेषण से मोटा-मोटी कुछ आँकड़े निकाल भी लें तब भी उनके समक्ष केवल और केवल एक तकनीकी या कोई एक प्रोग्रामिंग भाषा का विकल्प निकलकर नहीं आता। प्रत्येक परिणाम में उन्हें अनेक टेक्नोलॉजी और भाषाएँ ऐसी मिलती हैं जो समान आय के लक्ष्यों तक पहुँचने की बात करती दिखाई देती हैं।
यहाँ से अपने क्षेत्र के अनुभवी जनों से फर्स्ट, सेकंड, थर्ड और न जाने कितनी ‘ओपिनियन’ लेने हेतु वे चर्चाएँ भी करते हैं। वस्तुत: उन्हें सभी के भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण प्राप्त होते हैं। अर्थात पुन: परिणाम ‘ढाक के वही तीन पात’ पर आ जाता है क्योंकि उन्हें तो कोई एक सर्वोत्तम उत्तर चाहिए होता है। वे मोटे-मोटे उपलब्ध विषयों में भी अध्ययन प्रारंभ न कर पुन: पुन: गूगल सर्च करते रहते हैं और ऊपर बताये गए चक्र को चलाते रहते हैं। वास्तविक परिदृश्य में तो हर क्षण नए तकनीकी आयाम बनते बिगड़ते रहते हैं। कल किसी और तकनीकी का बोलबाला था, आज किसी और का है और कल पुन: किसी और नयी का हो सकता है। सार्वकालिक जैसा कुछ भी नहीं। कभी रेडिफ मेल था, तो कभी याहू सर्च इंजन का बोलबाला। तब किसे पता था कि इनसे भी अधिक शक्तिशाली कुछ आगे आ जायेगा। ऐसा कोई निश्चित नियम नहीं है क्योंकि संसार में सब कुछ गतिशील और निरंतर परिवर्तनशील है।
यहाँ सार रूप में मैं यह कहना चाहता हूँ कि कुछ लोग केवल यही सोचते रह जाते हैं कि सर्वोत्तम तकनीकी या भाषा मिल जाए तो उस पर अध्ययन प्रारम्भ करें। अनुभवी जन ऐसे लोगों को कुछ समय समझा भी देते हैं परन्तु शीघ्र सफलता और अल्प श्रम में कुछ शॉर्टकट मिल जाए ऐसा सोचने वाले अधिक संख्या में ही होते हैं। अनुभवी जन यह भी जानते हैं कि वे किसी भी एक से प्रारम्भ कर लें तब शनैः शनैः स्वयं जान जायेंगे कि अनेक विकल्पों में किसी एक को श्रेष्ठ बताना कठिन है। जहाँ तक आय या अन्य सफलताओं की बात है, वह भी प्रत्येक क्षेत्र में व्यक्ति द्वारा किये जाने वाले श्रम पर निर्भर करती है। सभी लोकप्रिय भाषाओंं में अनेक व्यक्ति अपनी दक्षता, योग्यता, श्रम के अनुरूप आय और सफलता के उन प्रतिमानों को छूते रहे हैं जिनके स्वप्नों में वह विद्यार्थी खोया रहता है।
ऊपर इतना पढ़ने के पश्चात इसका साम्य (analogy) मैं बहुदेववाद, आध्यात्मिक साधना के साथ जोड़ना चाहता हूँ जो इस लेख का मूल उद्देश्य है। अनेक जन अपने जीवन में इधर-उधर प्रवचन सुनते हैं, कुछ लोग पूरा जीवन व्यतीत कर देते हैं, मर भी जाते हैं परन्तु ब्रह्म कैसे प्राप्त हो या किस देवी/देवता की साधना से एक दिन वह परम तत्व/सिद्धि मिल जाएगी, इसी में उलझे रह जाते हैं। वे भी उन विद्यार्थियों की भाँति सोचते रह जाते हैं कि हो सके तो बहुत सी तकनीकियाँ एक साथ सीख लूँ। कुछ लोग तो अपने घर में या कार्यालय की टेबल पर नाना प्रकार के देवी-देवताओं के चित्र आदि लगाकर समझ लेते हैं कि सबकी कृपा आएगी। इस डॉक्टर की औषधि काम न कर रही हो तो उस वाले की ले लूँ, इस देवता से मुझे कुछ कृपा नहीं मिली तो एक दो और देवताओं को पूजा स्थान पर स्थापित कर लूँ। कुछ लोग को पूरा घर भरे रहने पर भी संतुष्टि नहीं मिलती!
कारण स्पष्ट है, ये वे लोग हैं जो मन को एक विषय पर स्थिर कर लक्ष्य प्राप्ति के लिए श्रम नहीं करना चाहते। बहुदेववाद का अर्थ या गुण ही यह है कि जो आपको अपनी रूचि और स्वभाव से समझ में आ जाये, आप उस एक का चुनाव कर लीजिये और साधना में मन लगाइये। बहुदेववाद भ्रमित करने वाली अवधारणा नहीं है जैसा कि लोग कह देते हैं – किस किस को मानेंं या किस किस को पूजें! नहीं, वह आप के तप पर निर्भर है। किसी भी देवता या मूर्ति की शक्ति वास्तव में आपकी निजी साधना या तप की शक्ति है। नाम व प्रतीक सहायता हेतु युक्तियाँ हैं।
आप जितने सामर्थ्यवान और तपोनिष्ठ होंगे उतने ही सामर्थ्यवान आपके आराध्य हो जायेंगे, चाहे आप अपने घर मात्र एक पूर्व पितृ या पितर की उपासना या साधना ही क्यों न करते हों। साधना और तप ही वे कारक हैं जो एक दिन आपको उस परम तक ले जायेगा। देवी-देवता व सम्प्रदाय आपके सबजेक्ट या तकनीकी की भाँति ही हैं जो आपकी रुचि अनुसार विकसित व तिरोहित होते हैं। बहुत से सम्प्रदाय प्राचीन काल में थे, जो आज नहीं हैं। कभी कोई जन इतना तप करता है कि उसका संप्रदाय या परम्परा लोकप्रिय हो जाती है तो कभी ऐसा ही किसी अन्य के साथ हो जाता है। सब कुछ लगन, तप व श्रम पर निर्भर है। कभी ऑरकुट(orkut) और माय स्पेस (myspace) सोशल मीडिया का युग था जिनके निर्माता अपने श्रम से उन्हें लोकप्रिय बनाने में जुटे थे। तब किसने सोचा था कि कुछ ही वर्षों में वे लुप्त हो जायेंगे। यदि आज हम फेसबुक या ट्विटर या गूगल को बड़े रूप में जानते हैं और यह सोचते हैं कि ये ही अंतिम हैं और कुछ नया अब इनके सामने नहीं आ सकता तो हम भ्रम में हैं। ऐसा ही पंथ/संप्रदाय/परम्परा आदि के बारे में है। कुछ लोग अकेले ही अनेकों के तुल्य तप करके किसी साधना पद्धति का अविष्कार कर लेते हैं तो कहीं व कभी अनेक लोग अनेक वर्षों तक मिलकर किसी मंदिर को प्राणवान बनाते हैं।
जिस प्रकार देवी देवताओं में कोई अल्प या अधिक शक्तिमान नहीं है, वैसे ही कोई प्रोग्रामिंग भाषा या तकनीकी किसी अन्य से कमतर या उच्चतर नहीं है। आप जो भी सीखते या करते हैं आपके विषय या देवता की शक्ति भी उतनी ही होती है। एक ही प्रोग्रामिंग भाषा में कार्य करने वाले अनेक व्यक्तियों की आय भिन्न-भिन्न भी होती है क्योंकि उनका अनुभव और विषय पर पकड़ समय के साथ बढ़ते जाते हैं, जैसे आप एक ही देवी या देवता के अनेक साधकों की भिन्न-भिन्न सामर्थ्यों का भिन्न-भिन्न अनुभव करते हैं। प्रोग्रामिंग भाषा एक होने पर भी प्रोग्रामर की मानसिक क्षमता विभेदकारी महत्त्व रखती है, जिस प्रकार देवता एक ही होने पर भी साधक की क्षमता और तप भिन्न-भिन्न स्तर के होने पर उनको मिलने वाली कृपा या सिद्धि लाभ भी भिन्न भिन्न हो सकते हैं।
जिस प्रकार बहुदेववाद को भ्रम की भाँति न देखते हुए अपने इष्ट का चुनाव कर स्वयम की साधना/श्रम/लगन पर ध्यान देना ही सफलता दिलाने में सहायक होता है, उसी प्रकार कोई अकेला प्रसिद्ध विषय या प्रोग्रामिंग भाषा का चयन अपने आप से सफलता नहीं दिलाता। मूल मन्त्र एक ही है – आलस्य त्याग कर श्रम, साधना प्रारम्भ करने पर ही आपको अपना अभीष्ट प्राप्त होगा। उसी से चाहे आपके देवता हों या विषय, प्रसिद्ध और विकासमान होते हैं।
पाठकों को रुचिकर लगने पर अगली कड़ियों में अन्य ऐसे ही साम्यों के विश्लेषण पर लेख प्रस्तुत करूँगा।
अस्तु।