अघोष घोष एवं विसर्ग संधि। पिछले अङ्क में विसर्ग अनुवर्ती स्वर एवं अर्द्धस्वर होने पर संधि देखी गई, यदि व्यञ्जन हों तो संधि कैसे होगी?
इस पर आगे बढ़ने से पूर्व वर्णमाला सारिणी में व्यञ्जनों के इस वर्गीकरण पर अघोष एवं सघोष वर्णों के भेद सहित ध्यान दें :
सघोष को केवल घोष भी कहा जाता है। नाम से ही स्पष्ट है कि जिन व्यञ्जनों के उच्चारण के समय वाक् तंतु में कम्पन न हो वे अघोष कहलाते हैं, जिनके उच्चारण में कम्पन हो वे सघोष या घोष कहलाते हैं।
- किसी भी वर्ग के प्रथम दो अक्षर एवं ऊष्म वर्ण श, ष, स तथा स्वयं विसर्ग (:) अघोष की श्रेणी में आते हैं।
- सघोष की श्रेणी में वर्ग के तीसरे से पाँचवें वर्ण, चारो अर्द्धस्वर य, र, ल, व एवं ह आते हैं।
यह वर्गीकरण संधि के नियमों को समझने में बहुत उपयोगी होगा।
पिछले लेख में त्रिगुट ‘ओ, आ, र’ के बारे में बताया था, इस अंश में एक अन्य त्रिगुट श्रेणी भी महत्त्वपूर्ण होगी जो कि ‘अ, आ, रिक्ति’ के क्रमश: तीन अघोष ऊष्म व्यञ्जनों ‘श, ष एवं स’ के संयोग समुच्चय से बनेगी :
अश्, आश्, श्
अष्, आष्, ष्
अस्, आस्, स्
(१) यदि ये तीन श, ष एवं स इतने महत्त्वपूर्ण हैं तो पहले यही देख लेते हैं कि यदि किसी शब्द के अंत के विसर्ग के पश्चात आने वाले दूसरे शब्द का प्रथम वर्ण इनमें से कोई एक हो तो संधि कैसे होगी?
यह संधि बहुत सरल होगी। दो चलन हैं, या तो विसर्ग में कोई परिवर्तन ही न कर यथावत लिख देते हैं या विसर्ग अपने आगे के अक्षर के अनुकरण में उसी का अर्द्ध रूप हो जाता है। उदाहरण :
दु:+शासन = दु:शासन या दु+(श्+शासन), दुश्शासन ; नि:+सर्ग = नि:सर्ग या नि+(स्+सर्ग), निस्सर्ग ।
(२) अब स्पर्श समूह के पाँच वर्ग अनुनासिक सहित देखें अर्थात क-वर्ग से प-वर्ग तक।
(क) अघोष वर्ण (श, ष एवं स के अतिरिक्त) :
– इस समूह के पहले क-वर्ग एवं अंतिम प-वर्ग के दो दो आरम्भिक अघोष अक्षर (अर्थात क, ख एवं प, फ) यदि विसर्ग के पश्चात आयें तो संधि पश्चात विसर्ग में कोई परिवर्तन नहीं होगा। उदाहरण :
अंत:+प्रमाण = अंत:प्रमाण, अन्त:+करण = अंत:करण ।
– बीच के तीन वर्गों च-वर्ग, ट-वर्ग एवं त-वर्ग के साथ क्रमश: श, ष एवं स वाली त्रिगुट श्रेणी इस प्रकार काम में आती है (अश्, आश्, श्; अष्, आष्, ष्; अस्, आस्, स्) :
अ(:)+च/छ > अश् । उदाहरण – राम:+चलति =राम्+(:)+चलति = राम्+(अश्)+चलति = (राम्+अ)+(श्+चलति) = रामश्चलति।
आ(:)+च/छ > आश् । उदाहरण – बालका:+चलन्ति = बालका+(:)+चलति = बालका+(आश्)+चलन्ति = (बालका+आ)+(श्+चलन्ति) = बालकाश्चलन्ति।
(कोई अन्य स्वर)(:)+च/छ > श् । उदाहरण – नि:+छल = नि+(:)+छल = नि+श्+छल = निश्छल।अ(:)+ट/ठ > अष् । उदाहरण – श्याम: + टीकाम् = श्याम्+(:)+टीकाम् = श्याम्+(अष्)+टीकाम् = (श्याम्+अ)+(ष्+टीकाम्) = श्यामष्टीकाम्।
इसी प्रकार आ(:)+ट/ठ > आष् एवं (कोई अन्य स्वर)(:)+ट/ठ > ष् हेतु भी संधियाँ की जा सकती हैं।अ(:)+त/थ > अस् । उदाहरण – नम:+ते = नम्+(:)+ते = नम्+(अस्)+ते = (नम्+अ)+(स्+ते) = नमस्ते।
इसी प्रकार आ(:)+त/थ > आस् एवं (कोई अन्य स्वर)(:)+त/थ > स् हेतु भी संधियाँ की जा सकती हैं।
(ख) सघोष वर्ण :
विसर्ग के पश्चात पाँच वर्गों के समस्त सघोष व्यञ्जनों एवं अनुनासिक के होने की स्थिति में संधि हेतु त्रिगुट (ओ, आ, र्) प्रयुक्त होगा जिसकी चर्चा हम पहले भी कर चुके हैं। विसर्ग वाले समूह वही तीन रहेंगे – अ(:), आ(:) एवं (कोई अन्य स्वर)(:) जिनके पश्चात किसी सघोष या अनुनासिक के आने पर संधि पश्चात विसर्ग का परिवर्तन क्रमश: ओ, आ एवं र् में हो जायेगा। प्रक्रिया हम इससे पहले के लेख में स्वरों के साथ विसर्ग की संधि के समय भी देख चुके हैं।
अ(:)+ सघोष > ओ । उदाहरण – अधः + गति = अध्+अ+(:)+गति = अध्+(अ+उ)+गति = अध्+ओ+गति = (अध्+ओ)+गति = अधोगति ।
आ(:)+ सघोष > आ । उदाहरण – देवा:+ गायन्ति = देवा+(:)+गायन्ति = देवा+(आ)+गायन्ति = (देवा+आ)+गायन्ति = देवा गायन्ति ।
(कोई अन्य स्वर)(:)+ सघोष > र् । उदाहरण – भू:+भुवस् = भू+(:)+भुवस् = भू+(र्)+भुव: = भू+र्+भुव: = भूर्भुव: ।
इस संधि के विविध रूपों हेतु निम्न प्रसिद्ध श्लोक में गुरु: के पश्चात ब, व, द एवं स के आने पर संधि-परिवर्तनों पर ध्यान दें :
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वर: । गुरुस्साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नम: ॥
इसी प्रकार संधियों के अन्य क्रमचय आगे बढ़ाये जा सकते हैं।
अगले अंक में व्यञ्जन संधि।