कविता, कर्मा दोर्जी, भूटान
उन सुंदर ओठों से मुस्कुराओ मुझ पर,
मैं कहता हूँ कि बतियाओ मुझसे जब मैं रहूँ निकट,
किंतु रहो सावधान उन शब्दों से जो कहती तुम
वे तान कर कर सकते हैं हमें दूर बहुत
ध्वस्त कर सकते वह भव्यता जो है होने में ‘हम’;
मुझे चाहो और न करने दो कभी रूदन,
मेरा दिन करो शुभ प्रतिदिन मैं करूँ याचन
मैं वही करूँ तुम्हारे लिये, यह है मेरी शपथ;
न करे मन्यु या वैरस कोई हमारी मुस्कानें सिक्त,
किन्तु साम्मनस्य से हो हमारा नेह भूषित
क्षणभङ्गुर जीवन अपना है मेरा अनुरोध
कि हम बितायेंगे इसे आनन्दपूर्ण;
क्यों कि जब मेरा हो रहेगा प्रस्थान, मैं तुमसे ओझल,
तुम्हारे अनसुने शब्द हो रहेंगे तिरोहित मात्र,
तुम्हारी ऊष्मा हो रहेगी यूँ ही शीतल
और बेड़ियों में बच रहेगा तुम्हारा स्व शोकार्त।
तो न छिपाओ, अपने हृदय पट दो खोल,
दिखा दो कि तुम सच में रखती मेरा ध्यान
कि तुम करती मेरा सम्मान, मुझसे प्यार
मैं जैसे हूँ वैसे ही, और करो मुझसे ऐसे बात
कि मैं कर सकूँ तुम्हारे हर शब्द पर विश्वास,
क्यों कि जब मैं नहीं रहूँगा, और तुम वियोगसिक्त,
जब मैं हो रहूँगा तुम्हारी पहुँच से दूर बहुत
तुम्हारे अनसुने शब्द हो रहेंगे तिरोहित मात्र,
तुम्हारी ऊष्मा हो रहेगी यूँ ही शीतल
और बेड़ियों में बच रहेगा तुम्हारा स्व शोकार्त।
अत: जब हो सक्षम, मुझसे करो प्यार!!!