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परोपकार सनातन दर्शन का मूल है और यह स्पष्ट रूप से वर्णित भी है :
अष्टादश पुराणेषु व्यासस्य वचनद्वयम्।
परोपकारः पुण्याय पापाय परपीडनम्॥
अर्थात अठारह पुराणों के सार के रूप में महर्षि व्यास के दो ही वचन हैं। परोपकार से बड़ा पुण्य नहीं और दूसरों को पीड़ा देने से बड़ा पाप नहीं – परहित सरिस धरम नहिं भाई, परपीड़ा सम नहिं अधमाई।
सज्जनों की तो प्रवृत्ति ही बतायी गयी है परोपकारी होना, परमारथ के कारने, साधुन धरा शरीर। उनके लिए तो परोपकार से बड़ा कोई धर्म नहीं परंतु ऐसी अनेक कथायें भी मिलती हैं, जिनमें परोपकार से दुर्जन व्यक्ति भी सज्जन बन जाता है तथा ईश्वर को प्राप्त कर लेता है। पापी से पापी व्यक्ति को भी अनजाने में परोपकार किए जाने से पुण्य मिलने की कथाएँ हैं। सम्भवतः इस कारण से भी वर्ष के कुछ विशेष दिनों एवं पर्व इत्यादि में सभी के लिए ही दान देने की अनिवार्यता निश्चित थी, अतिथि इत्यादि की सेवा निस्संकोच करने के मूल्य तो थे ही। परोपकार की महत्ता से कोई सनातन ग्रंथ अछूता नहीं।
मात्र प्रवचन समान प्रतीत होने वाले इन दर्शन वाक्यों का मनोविज्ञान एवं आधुनिक विज्ञान से भला क्या लेना देना? इस प्रश्न का उत्तर आधुनिक मनोविज्ञान के उन नवीन शोधों को पढ़ने से मिलता है, जो नीतिशास्त्र से प्रतीत होते हैं। परोपकार से सुख, प्रसन्नता जैसे लाभ होने के अनेकानेक मनोवैज्ञानिक अध्ययन हैं किन्तु उन व्यक्तियों का क्या जो स्वभाव से ही असामाजिक होते हैं, या अपराधी प्रवृति के होते हैं? क्या उन्हें भी परोपकार से लाभ सम्भव है?
इसी वर्ष पिछले महीने, मई २०१९ में Journal of Experimental Social Psychology में प्रकाशित एक शोध Does helping promote well-being in at-risk youth and ex-offender samples? के अनुसार परोपकार का लाभ असामाजिक तत्वों तथा अपराधियों को भी होता है। इस अध्ययन में उन व्यक्तियों को केंद्र बनाया गया जो आपराधिक गतिविधियों में संलग्न रह चुके हैं या वैसे व्यक्ति जो मादक द्रव्य व्यसनी (drug addict) थे, अवैध मारपीट या धोखाधड़ी इत्यादि में सम्मिलित थे अर्थात जिनका परोपकार से कोई लेना देना नहीं था। ऐसे व्यक्तियों से भी जब छोटे परोपकार के कार्य कराए गए तो उनकी प्रसन्नता में वृद्धि हुई। जिन व्यक्तियों ने ऐसा किया उनमें सकारात्मक भावनाओं में भी वृद्धि पायी गयी।
वर्ष २००८ में Science पत्रिका में प्रकाशित शोध Spending money on others promotes happiness के अनुसार स्वयं पर किए जाने वाले व्यय की तुलना में अन्य व्यक्तियों के लिए किए जाने वाले व्यय व्यक्ति को अधिक सुखी बनाते हैं। इस शोध निष्कर्ष का भला किस सनातन ग्रंथ में वर्णन नहीं मिलता?
इसी प्रकार वर्ष २०१० में The Journal of Personality and Social Psychology में एक अन्य रोचक शोध प्रकाशित हुआ। इस विस्तृत अध्ययन में परोपकार से होने वाले लाभों का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण किया गया। इस शोध के अनुसार जब व्यक्ति परोपकार के कार्य करता है तो इससे व्यक्ति के मूलभूत मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं की पूर्ति होती है, यथा स्वायत्तता, क्षमता, पर्याप्तता तथा सम्बद्धता। इन मनोवैज्ञानिक भावनाओं की पूर्ति से व्यक्ति को अनेक प्रकार के लाभ होते हैं। इसी प्रकार The Journal of Positive Psychology में वर्ष २०१५ में प्रकाशित एक अध्ययन में यह पाया गया कि परोपकार से अर्थहीन जीवन को भी अर्थ मिलता है। इस अध्ययन में भी व्यक्तित्व तथा आत्मसम्मान जैसे कारकों के परे हर प्रकार के व्यक्ति को परोपकार से लाभ होने के साक्ष्य पाए गए।
जैसे असामाजिक व्यक्ति को भी परोपकार के लाभ मिलते हैं, उसी प्रकार इन मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं की पूर्ति तथा सुख की प्राप्ति के लाभ के अतिरिक्त परोपकार के प्रत्यक्ष शारीरिक तथा स्वास्थ्य से जुड़े लाभ भी पाए गए हैं। वर्ष २०१६ में Health Psychology Journal में प्रकाशित अध्ययन Is spending money on others good for your heart? के अनुसार दूसरों की सहायता करने वाले व्यक्तियों का रक्तचाप नियंत्रित रहता है तथा उसमें घटोत्तरी भी होती है!
इन अध्ययनों के अतिरिक्त एक प्रमुख अध्ययन है, Nature पत्रिका में वर्ष २०१७ में प्रकाशित A neural link between generosity and happiness, जिसमें व्यक्तियों के ऊपर किए गए सीमित प्रयोगों से परे तंत्रिका विज्ञान के परिप्रेक्ष्य में परोपकार का अध्ययन किया गया। ऐसा पाया गया कि परोकार से, भले ही वह कोई छोटा कार्य ही क्यों न हो या कल्पना में ही परोपकार क्यों न किया गया हो, व्यक्ति के मस्तिष्क की गतिविधियों में जो परिवर्तन होता वह, प्रसन्नता तथा सकारात्मक भावनाओं का द्योतक होता है। शोधकर्ताओं में से एक तंत्रिका विज्ञान (neurology) के प्रोफ़ेसर थोर्स्टेन कैंट इसे विकासवाद से जोड़कर देखते हैं। उनके अनुसार हमारे पूर्वजों को यदि किसी प्रकार का मनोवैज्ञानिक लाभ नहीं मिलता तो वे अपना कार्य तथा भोजन किसी अन्य के साथ बाँटने में रुचि नहीं रखते, जो कि उस युग में उत्तरजीविता के लिए अत्यावश्यक था।
व्याख्या किसी भी प्रकार से की जाय, सार स्पष्ट है। आधुनिक मनोविज्ञान में इस विषय का अत्यंत विस्तृत अध्ययन हुआ है। बर्कली स्थित कैलिफ़ोर्निया विश्वविद्यालय के ग्रेटर गुड साइयन्स सेंटर ने वर्ष २०१८ में The Science of Generosity नामक श्वेत पत्र प्रकाशित किया जिसमें सैकड़ो अध्ययनों का संदर्भ तथा समीक्षा है। ये अध्ययन केवल मनोविज्ञान ही नहीं, अर्थशास्त्र, तंत्रिका विज्ञान, समाज शास्त्र तथा परिस्थितिकी जैसे विषयों से लिए गए हैं। इन आधुनिक विषयों एवं रोचक विस्तृत अध्ययनों का सार प्रस्तुत करते हैं ये दो शब्द ही – परोपकारः पुण्याय।