लघु दीप अँधेरों में , पिछली कड़ियाँ : 1 , 2 , 3 , 4, 5, 6 , 7
सुभाषित (गौतम बुद्ध के उपदेश संग्रह ‘धम्मपद’ से)
अत्तानञ्चे तथा कयिरा यथञ्ञमनुसासती।
सुदन्सो वत दम्मेथ अत्ता हि किर दुद्दमो॥
अपने को वैसा बनावे, जैसा दूसरे का अनुशासन करता है; (पहले) अपने को भली प्रकार दमन करके दूसरे का दमन करे, वस्तुत: अपने को करना (ही) कठिन है।
यस्सच्चन्तदुस्सील्यं मालुवा सोलमिवोततं।
करोति सो तथत्तानं यथा’नं इच्छति दिसो॥
मालुवा लता से वेष्टित साखू के पेड़ की भाँति जिसका दुराचार पसरा हुआ है; वह अपने को वैसा ही कर लेता है, जैसा कि उसके शत्रु चाहते हैं।
सुदस्सं वज्जमञ्ञसं अत्तनो पन दुद्दसं।
परेसं हि सो वज्जानि ओपुणाति यथाभुसं।
अत्तनो पन छादेति कलिं’व कितवा सठो॥
दूसरे का दोष देखना सरल है, किन्तु अपना (दोष) देखना कठिन है। वह (पुरुष) दूसरों के ही दोषों को भूसे की भाँति उड़ाता रहता है किंतु अपने (दोषों) को वैसे ही ढकता है, जैसे व्याध शाखाओं से अपनी देह को।
उट्ठानकालम्हि अनुट्ठाहानो युवा बली आलसियं उपतो।
संसन्नसंकप्यमनो कुसीतो पञ्ञाय मग्गं अलसो न विदन्ति॥
जो उद्योग करने के समय उद्योग न करने वाला, युवा एवं बली हो कर भी आलस्य से युक्त होता है, जिसने उच्च आकांक्षाओं को छोड़ दिया है एवं जो दीर्घसूत्री है, वह आलसी प्रज्ञा के मार्ग को प्राप्त नहीं होता।
योगा वे जायति भूरि आयोगा भूरि सङ्खयो।
एतं द्वेधापथं ञत्वा भवाय विभवाय च।
तथत्ता निवेसेय्य यथा भूरि पवड्ढति॥
योगाभ्यास से प्रज्ञा उत्पन्न होती है, एवं उसके अभाव से उसका क्षय होता है। उन्नति एवं विनाश के इन दो भिन्न मार्गों को जान अपने को ऐसा लगावे, जिससे प्रज्ञा की वृद्धि हो।
सेय्यो अयोगुलो मुत्तो तत्तो अग्गिसिखूपमो।
यञ्चे मुञ्जेय्य दुस्सीलो रट्ठपिण्डं असञ्ञतो॥
असंयमी दुराचारी हो राष्ट्र का पिण्ड खाने से अग्निशिखा के समान तप्त लोहे का गोला खाना उत्तम है (अर्थात ऐसा जीवन नहीं जीना चाहिये जिससे राष्ट्र की क्षति हो।)
अलज्जिता ये लज्जन्ति लज्जिता ये न लज्जरे।
मिच्छादिट्ठिसमादाना सत्ता गच्छन्ति दुग्गतिं॥
लज्जा न करने की बात में जो लज्जित होते हैं एवं लज्जा करने की बात में लज्जित नहीं होते; वे प्राणी मिथ्यादृष्टि को ग्रहण करने से दुर्गति को प्राप्त होते हैं।
एक माँ जिन्होंने भारतीय प्रशासनिक सेवा में उच्च स्थान प्राप्त किया।
सोनीपत, हरियाणा की 31 वर्षीया अनु कुमारी ने भारतीय प्रशासनिक सेवा परीक्षा में अपने दूसरे प्रयास में अखिल भारतीय स्तर पर दूसरा स्थान प्राप्त किया।
अपने प्रथम प्रयास में वह मात्र एक अङ्क से चूक गयी थीं किन्तु उन्होंने हार नहीं मानी। बिना किसी कोचिंग के स्वाध्याय के बल पर चार वर्ष के एक बच्चे की माँ अनु कुमारी ने प्रतिदिन लगभग 10 घण्टे पढ़ाई कर इस प्रतिष्ठित परीक्षा में सफलता प्राप्त की। उनके दृढ़ निश्चय, उद्योग एवं लक्ष्य के प्रति सतत समर्पण सम्माननीय एवं अनुकरणीय हैं।
इस वर्ष कुल 990 सफल प्रतिभागियों में से 240 महिलायें हैं।
स्रोत : thebetterindia.com
भारत-चीन अक्षय ऊर्जा, ‘हजार की यात्रा, पाँव के नीचे आरम्भ 千里之行,始於足下’
सांख्यिकीय अनुमानों के अनुसार भारत एवं चीन में वैश्विक जनसंख्या की लगभग 36% निवास करती है। चीन में नगरीय प्रतिशत 58 है तो भारत में लगभग 33। वैश्विक औसत 55% से तुलना करें तो भारत नगरीकरण की दृष्टि से अभी बहुत पीछे है एवं नगरीकरण की गति भी यहाँ धीमी है।
परन्तु यदि विश्व की सकल नागर जनसंख्या का प्रतिशत देखें तो इन दो महादेशों का प्रतिशत 30 बैठता है। विश्व की कुल लगभग सवा चार अरब नगरीय जनसंख्या में से सवा अरब लोग इन दो देशों में रहते हैं। क्या हो यदि ये दो देश जोकि कच्चे तेल के उत्पादन में प्रमुखता से आयात पर निर्भर हैं; वैकल्पिक अक्षय ऊर्जा (renewable energy) में अपना भाग बढ़ाते जायें? विश्व की अर्थव्यवस्था तो प्रभावित होगी ही, पर्यावरण पर भी बहुत अच्छा प्रभाव पड़ेगा। चीन का घरेलू तेल उत्पादन 25% से अधिक नहीं, भारत के लिये तो यह प्रतिशत मात्र 19 है।चीन कच्चा तेल आयात बढ़ा, उससे प्रसंस्कृत उत्पाद का निर्यात बढ़ा zero sum ‘शून्य योग’ अर्थात अर्थव्यवस्था पर शून्य दुष्प्रभाव की स्थिति लगभग प्राप्त कर चुका है। डॉलर के स्थान पर युआन आधारित व्यापार की दिशा में भी अग्रसर है। भारत के साथ ऐसा कुछ नहीं। डॉलर विनिमय दर में 1 रुपये की वृद्धि या प्रति बैरल 1 डॉलर की बढ़त सवा आठ सौ करोड़ रुपयों की चपत लगा देती है। गत वर्ष भारत ने लगभग 87 अरब डॉलर तेल आयात में लगाये जोकि प्रति व्यक्ति ₹ 4500 पड़ता है। इन दोनों देशों में व्याप्त निर्धनता को देखें तो आयात पर होने वाला व्यय बहुत भारी है। आयात पर निर्भरता सामरिक नीतियों को भी प्रभावित करती है। चीन अब अमेरिका से आगे विश्व का सबसे बड़ा तेल आयातक हो गया है। त्वरित विकास के कारण भारत पर भी बहुत दबाव है।
ऐसे में बिजली (बैटरी) से चलने वाली बसों का प्रतिशत बढ़ाने के लिये दोनों देश लगे हुये हैं। चीन के शेंझेन नगर ने एक उदाहरण प्रस्तुत करते हुये अपनी समस्त बसों को बिजली चालित कर दिया। वहाँ की कुल 16359 संख्या अमेरिका के पाँच सबसे बड़े नगरों की कुल विद्युत चालित बसों की संख्या से भी अधिक हो गयी है! नगर की 63% टैक्सियाँ भी विद्युत चालित हैं।
वहाँ का सबसे बड़ा उत्पादक BYD, भारत के बीदर, कर्नाटक में ₹ 2 अरब की लागत से 100 एकड़ में फैला कारखाना लगा रहा है। आरम्भ में इसकी क्षमता 1000 बसें वार्षिक होगी। 25% तक का आरम्भिक स्थानीय निर्माण प्रतिशत 2020 तक 50% कर दिया जायेगा। आरम्भ में जो नगर इसके लक्ष्य पर होंगे, वे हैं – मुम्बई, अहमदाबाद, जम्मू, दिल्ली, लखनऊ, कोलकाता, गुवाहाटी, हैदराबाद, इंदौर एवं बंगलुरु।
प्राचीन चीनी दार्शनिक लाओज़ी के कथन ‘हजार की यात्रा, पाँव के नीचे आरम्भ 千里之行,始於足下’ से तुलना करें तो इन दो महादेशों द्वारा अक्षय ऊर्जा को अपनाने की दिशा में उठाये गये लघु पग भविष्य के बृहद परिवर्तनों के सूचक हो सकते हैं।चित्र स्रोत : qz.com