कोरोना विषाणु जनित महामारी से उपजे भय की चर्चा हमने पिछले लेखांश में की। इस महामारी तथा इससे उपजी विशेष स्थिति से मनोवैज्ञानिकों में दो अन्य विषयों की चर्चा है – मानसिक स्वास्थ्य तथा प्रतिकूल परिस्थिति में यथोचित मानव व्यवहार। विरोधाभासी बातों, एकाकीपन, वित्तीय संकट तथा अनिश्चितता के बीच मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ना स्वभाविक ही है। साथ ही इस परिस्थिति में मानव व्यवहार भी महामारी से लड़ने में अत्यंत महत्त्वपूर्ण सिद्ध हो रहा है। अमेरिकन साइकोलोजिकल असोसिएशन ने इस विषय पर चिंता के साथ दिशा निर्देश भी दिए हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी महामारी के संदर्भ में मानसिक स्वास्थ्य से सम्बंधित निर्देश दिए हैं।
वर्षों से इस प्रकार का अज्ञात या अनिश्चित भय नहीं होने से इस प्रकोप से व्यग्रता विषम अनुपात में बढ़ी प्रतीत होती है। परंतु मानव स्वभाव में व्यग्रता का होना चिंता का विषय नहीं है। अनिश्चित से व्यग्रता की उपज मानव स्वभाव है। व्यग्रता का कार्य है – हमें समुचित उपाय करने को प्रेरित करना। आँकड़ों को देखते हुए स्पष्ट है कि संकट लघु नहीं है। यदि देश ठप हो जा रहे हैं तो स्वभाविक है कि ऐसे समाचार एवं घटनाएँ हमारे मस्तिष्क पर प्रभाव डालेंगी ही। प्रत्येक व्यक्ति के लिए स्पष्ट रूप से जानलेवा न होते हुए भी समाज, देश तथा अर्थव्यवस्था के लिए यह संकट अत्यधिक घातक है। इसे समझकर प्रत्येक व्यक्ति को सामूहिक रूप से अपना योगदान करने की आवश्यकता है।
महामारी की स्थिति में व्यग्रता उन व्यक्तियों को भी समझाने में उपयोगी है जिन्हें लगता है कि उन्हें कोई संकट नहीं है। सामाजिक मनोविज्ञान तथा व्यक्तिगत मानसिक स्वास्थ्य के लिए ये बातें विरोधाभासी प्रतीत होती हैं कि सम्भवतः व्यक्ति विशेष यथा एक स्वस्थ युवक के लिए स्पष्ट रूप से प्राणघातक नहीं होते हुए भी यह संकट समाज, देश तथा अर्थव्यवस्था के लिए अत्यंत गम्भीर है। ऐसे में व्यग्रता यदि व्यक्ति को अपने कर्तव्यपालन के लिए प्रेरित करे तो वह लाभकारी है। यथा, स्वस्थ रहते हुए भी पृथक रहना एवं स्वास्थ्यपरक निर्देशों का पालन करना परंतु साथ ही व्यक्ति विशेष की व्यग्रता तथा मनोवैज्ञानिक भ्रांतियाँ मनोरोग का रूप ले लें तो वह अत्यंत हानिकारक भी है।
व्यक्तिगत रूप से महत्त्वपूर्ण है कि हम यथास्थिति का उचित आकलन कर भ्रामक समाचारों से बचें। यदि पूर्ण रूप से दीर्घकाल के लिए स्वयं को पृथक करना पड़े तो उपयोगी कार्यों में संलग्न रहें तथा निर्देशों का पालन करें।
पृथक रहने की अवस्था में एकाकीपन से स्वास्थ्य पर होने वाले प्रभाव पर अनेक अध्ययन उपलब्ध हैं। इस महामारी के काल में हमें ऐसी अवस्थाओं में रहना पड़ सकता है। हमारी सामाजिकता संकीर्ण हो सकती है। वर्ष २०१९ में प्रकाशित एक अन्य अध्ययन में पाया गया कि सामाजिक रूप से पृथक होने पर व्यक्ति ना केवल मानसिक रूप से परंतु शारीरिक रूप से भी प्रभावित होते हैं।
यह अनिश्चित ही है कि ऐसी अवस्था में हमें कितने समय तक रहना पड़ सकता है। ऐसे में व्यक्तियों में तनाव होना भी सम्भव है। तनाव से बचने के लिए किए जाने वाले उपाय यथा व्यायामशाला, सामाजिकता, पार्क इत्यादि भी बंद रहेंगे। ऐसे में मनोवैज्ञानिकों के अनुसार कुछ ऐसे सहज कार्य हैं जो हमें मानसिक रूप से स्वस्थ एवं प्रसन्न रख सकते हैं।
वैज्ञानिक अध्ययनों से भी वही कार्य सामने आए हैं जो सदा सर्वदा से मानसिक स्वास्थ्य के लिए सर्वोत्तम उपाय रहे हैं, जिनमें प्रमुख है – ध्यान (mindfulness )। अध्ययनों के इस संकलन में भी यह स्पष्ट है – Effects of mindfulness exercises as stand-alone intervention on symptoms of anxiety and depression: Systematic review and meta-analysis
इसके अतिरिक्त प्रतिकूल परिस्थिति में अवसर भी तो होते हैं। कितने ही उपयोगी तथा रचनात्मक कार्य हैं जिनके लिए समय का अभाव होता है। ऐसे में उन कार्यों के लिए इससे अधिक उपयुक्त अवसर क्या होगा? इसके साथ पृथकावस्था में भी वे कार्य तो कर ही सकते हैं जिनसे मानसिक स्वास्थ्य को प्रत्यक्ष लाभ होते हैं यथा – संतुलित आहार एवं सामाजिक सहायता। संचार माध्यमों के उपयोग से सामाजिक सहायता तथा दूसरों से सम्पर्क में रहना भी सरल है। सामाजिक दूरी (social distancing) एक प्रकार से सम्पर्क में रहने का भी साधन हो सकती है तथा मनोवैज्ञानिक विकास का मार्ग भी प्रशस्त कर सकती है। स्वजनों के साथ समय व्यतीत करने तथा सम्पर्क करने का भी यह समय एक अवसर बन सकता है। सामाजिक संचार माध्यमों के उपयोग पर नियंत्रण कर यदि हम आधुनिक तकनीक की सहायता से स्वजनों और मित्रों से सम्पर्क करें तो वह अधिक लाभदायक होगा। यहाँ रोचक यह भी है कि तनाव तथा नकारात्मक भावनाएँ अर्थात संघर्ष से होकर निकले व्यक्ति के लिए इसके सकारात्मक प्रभाव भी होते हैं। वर्ष २००९ में Psychological Inquiry में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार जो व्यक्ति जीवन के प्रतिकूल अनुभवों को पार करते हैं, वे मनोवैज्ञानिक रूप से अधिक प्रतिरोधी (resilient) होते हैं। उनके सम्बंध अधिक स्वस्थ होते हैं तथा वे जीवन को अधिक सार्थक रूप में देखते हैं अर्थात इस समय हमें मानसिक रूप से बलवान एवं स्वस्थ होने की आवश्यकता है। यह कार्य सुनने में सहज परंतु वास्तव में कठिन हो सकता है।
ऐसे में लम्बी अवधि से स्थगित कार्यों पर ध्यान दें। अपने आपको तथा घर को संयोजित करें। समय सारणी बनाएँ। व्यायाम करें । अध्ययनों में व्यायाम तथा प्रसन्नता में स्पष्ट सम्बंध दर्शाये गये हैं। दूसरों की यथा सम्भव सहायता करें। यहाँ ध्यान देने की बात यह है कि दूरी शारीरिक रखनी है, सामाजिक नहीं। इस प्रकार एकाकीपन से होने वाले दुष्परिणाम की चिंता के विपरीत तकनीक के इस युग में हम दूरी बनाए रखते हुए भी अधिक सामाजिक हो सकते हैं। इस वैश्विक महामारी से सभी प्रभावित हैं और हल भी सभी के एक साथ आने से ही सम्भव है।
मनोविज्ञान के अनुसार व्यक्तिगत स्वास्थ्य के साथ यह भी अति आवश्यक है कि हम परहितवाद (altruistic behavior) का ध्यान रखें। ऐसी संकट की अवस्था में हमें सहयोग तथा करुणा की भावना से कार्य करना चाहिए। कुछ अपवादों को छोड़ दें तो मनुष्य में यह भावना स्वतः ही होती है। एक रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका में ग्यारह सितम्बर की घटना के समय अनेक व्यक्तियों ने स्वयं के प्राण संकट में डाल कर भी दूसरों की सहायता की। वर्ष २०११ में प्रकाशित एक अन्य अध्ययन में यह पाया गया कि चिकित्सालयोंं में हाथ धोने के लिए ‘हाथ धोने से आपको व्याधि नहीं होगी’ की तुलना में ‘हाथ धोने से रोगी सुरक्षित रहेंगे’ लिखना अधिक प्रभावी होता है अर्थात दूसरों की सहायता करना मानवीय प्रवृति है जिसे कुछ लोग भूल जाते हैं। इस महामारी में इसी मानवी प्रवृत्ति का ध्यान रखना है।
महामारी के समय में मानव व्यवहार पर भी अनेक अध्ययन हो रहे हैं। आयरलैंड के प्रो लुन्न ने १२० शोधपत्रों का त्वरित अध्ययन कर पिछले दिनों इस विषय पर कार्य किया, जिसके प्रमुख निष्कर्ष मानव व्यवहार के रूप में हैं – सामूहिक प्रयास तथा परहितवाद की भावना। इस शोध में यह भी प्रस्तावित है कि इस भावना को बढ़ाने के तीन प्रमुख कारक हैं – स्पष्ट संदेश, देश/समाज हित की भावना तथा दंड। दंड अर्थात जो व्यक्ति नियमों का पालन न करे, दिशा निर्देशों की अवहेलना करे उसके लिए समुचित तथा त्वरित दंड का प्रावधान भी आवश्यक है।
इसके अतिरिक्त भी इस विषय पर अनेक अध्ययन हो रहे हैं जिनमें विश्व के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों के शोधकर्ता एक साथ कार्य कर रहे हैं। शोधकर्ताओं ने संचार माध्यमों पर प्रसारित मिथ्या सूचनाओं के लिए भी अध्ययन किए हैं।
इन अध्ययनों के संदेश सरल हैं। लोगों को उनके मूल्यों की स्मृति दिलाना कि यह एक सामूहिक प्रयास है – वे विवेकपूर्ण कार्य करने हेतु जो हमें सदैव करने चाहिए; पृथक रहना पड़े तो उन छोटी छोटी बातों को करने का अवसर जो हमें प्रसन्नता देती हैं; निरंतर समाचार न देखने तथा बुद्धिमत्ता से व्यावहारिक उपाय करने का; संतुलित आहार एवं व्यायाम का जिससे प्रतिरक्षी तंत्र तथा मन भी स्वस्थ रहे। मिथ्या तथा सनसनी पूर्ण समाचारों से बचने का; संचार माध्यमों का संतुलित उपयोग करते हुए अपने जीवन के अन्य पक्षों पर ध्यान देने का; भयमुक्त हो समाज हित में दिशा निर्देशों का पालन करने का। यह महामारी एक संदेश है कि मानव एकाकी नहीं, प्रकृति में सब कुछ एक दूसरे पर निर्भर एवं परस्पर अन्योन्याश्रित है, मानव प्रजाति ही नहीं अन्य प्राणियों पर भी। दिशा निर्देशों का पालन करें – महाजनो येन गतः स पन्थाः की भाँति।
गुणी व्यक्ति की बातों का अनुकरण करें क्योंकि पिको वसन्तस्य गुणं न वायसः करी च सिंहस्य बलं न मूषकः॥ (कोयल ही वसन्त का आकलन कर सकती है, कौआ नहीं। हाथी ही सिंह की शक्ति का आकलन कर सकता है,चूहा नहीं।)
प्रतिकूल परिस्थिति के लिए संदेश अभी भी वही हैं नया कुछ नहीं- तुलसी साथी विपत्ति के विद्या विनय विवेक।
धैर्य बनाएँ रखें, नकारात्मक विचारों से दूर रहें तथा समय का सदुपयोग करें – विपदि धैर्यमथाभ्युदये क्षमा, सदसि वाक्पटुता युधि विक्रमः ।
प्रतिकूल परिस्थितियों में भी प्रसन्न रह सकने को ही तो चिरस्थित कहते हैं! परहित का ध्यान रहे – सर्वे भवन्तु सुखिन:, सर्वे सन्तु निरामया। सनातन दर्शन तो कहता ही है कि प्रतिकूल परिस्थितियों का यदि समुचित रूप से सामना किया जाए तो मनुष्य का और भी आत्मिक विकास होगा, विपदा झेल लेने वाला व्यक्ति वैसा ही हो जाता है जैसे तपने के पश्चात सोना और धैर्यवान विचलित कहाँ होते हैं? –
निन्दन्तु नीतिनिपुणा: यदि वा स्तुवन्तु,
लक्ष्मी समाविषतु गच्छति वा यथेष्ठम् ।
अद्यैव वा मरणमस्तु युगान्तरे वा,
न्यायात् पथ: प्रविचलन्ति पदं न धीरा: ॥